हिंदी के प्रख्यात कवि एवं कथाकार विनोद कुमार शुक्ला को 59 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की आज घोषणा की गई।
88 वर्षीय श्री शुक्ला को यह पुरस्कार उनके आजीवन लेखन के लिए दिया जा रहा है। पुरस्कार में 11 लाख रुपए की राशि स्मृति चिन्ह प्रशस्ति पत्र तथा वाग्देवी की प्रतिमा शामिल है। ज्ञानपीठ की चयन समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया।
विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर-2023 से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसकी राशि 41 लाख रुपए है। इस सम्मानके बाद विनोद कुमार शुक्ल ने कहा था कि वह सम्मान पाने के लिए नहीं लिखते।
उन्होंने तब कहा था कि मैं तो इस पुरस्कार के बारे में जानता ही नहीं था। मैंने कभी भी पुरस्कार के बारे में सोचकर नहीं लिखा। मैं तो बस लिखता था, और हो गया। पाठकों के बारे में भी नहीं सोचता था कि कौन पढ़ेगा, कौन नहीं पढ़ेगा। लंबे समय तक लिखता रहा। पिछले 8 साल से बच्चों के लिए लिख रहा हूं। बच्चों के लिए लिखते समय सोचना पड़ता है कि कितने बड़े बच्चों के लिए लिखूं। बच्चों के लिए लिखना कठिन काम है। मैं यही सोच कर लिखता रहा कि जितने बड़े बच्चों के लिए लिख रहा हूं, बच्चे उससे जयादा समझदार हैं। इसलिए यदि मैं 6 साल के बच्चे के बारे में लिखता रहा तो 12 साल के बच्चे के लायक लिखा। जो बच्चे मेरे पाठक हैं, जो छोटे हैं, उनकी समझ बड़े बच्चों के पाठक की होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के रायपुर में कृषि कालेज से रिटायर विनोद जी को उनके दूसरे उपन्यास दीवार में खिड़की रहा करती थी के लिए 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है और वह साहित्य अकादमी के फेलो भी हैं ।
श्री शुक्ला ने सातवें दशक में अपना लेखन शुरू किया था और अपने पहले कविता संग्रह “वह आदमी चला गया गरम कोट पहनकर विचार की तरह” से हिंदी में चर्चित हुए थे .इससे पहले 1971 में उनकी काव्य पुस्तिका “लगभग जय हिंद “नाम से पहचान सीरीज में छप चुकी थी .
श्री शुक्ला 1981 में प्रकाशित “ नौकर की कमीज “उपन्यास से साहित्य में स्थापित हुए थे। इस उपन्यास पर एक फ़िल्म भी बन चुकी है।
1 जनवरी 1937 में जन्मे श्री शुक्ल ने जबलपुर से कृषि विज्ञान से एमए सी किया था।उसके बाद वह रायपुर में लेक्चरर बन गए थे।
Posted Date:
March 22, 2025
2:53 pm Tags: विनोद कुमार शुक्ल, ज्ञानपीठ पुरस्कार