बातें अतीत की, विषाद की, सुखद भी !
करीब तीन दशक बाद गत सप्ताह गायकवाड़ी नगर बडौदा (आज बड़ोदरा) प्रवास का मौका मिला| पत्रकार सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय कानून को लेकर गुजरात और महाराष्ट्र के दौरे पर गया था| कुल आधी सदीवाले अपने पत्रकारी जीवन का श्रेष्ठतम दौर यहीं गुजरा था| कवि जार्ज बायरन ने लिखा था कि सुखद स्मृतियों के मुकाबले दर्दभरी यादें अधिक स्थायी होती हैं| इसीलिए इस यात्रा में घनीभूत पीड़ा (प्रसाद की कामायनी वाली) स्मृति बनकर बरसीं| मेरे अनुनय का मान रखकर वहाँ पत्रकार साथी मुझे बड़ौदा सेंट्रल जेल ले गये| यही सर्वाधिक स्मरणीय स्थल रहा था|
अपने यौवन के छः माह मैंने यहीं बिताये थे| शेष सात महीने मुंबई, बंगलूरू और दिल्ली के तिहाड़ जेल में गुजारे| बड़ौदा जेल में सौ वर्गफीट की तन्हा कोठरी थी| दो लौह फाटकों से बंद| सवा सौ साल (1861) पूर्व फांसी के सजायाफ्ता कैदियों हेतु बनी इसी इमारत के अड़तीस नम्बर की कोठरी में मेरा अड़तीसवाँ जन्मदिन गुजरा था, बिलकुल एकाकी| मैं प्रमुदित हुआ जब जेल अध्यक्ष विष्णु पटेल ने बताया कि मुख्यमंत्री मोदी ने इन कोठरियों को, जिन्हें अँधेरी कहते थे, तोड़कर विस्तृत बैरक बनाने का आदेश दिया था| इतिहास मिट गया था| अमानवीयता के प्रतीक भी ख़त्म हो गए थे| यहीं बालुई जमीन पर क्यारियां बनाकर हम सात कैदियों ने तुलसी की खेती लगाई थी| श्याम भी, हरित भी| तब हमें जलपान में भुने चावल और गुड़ मिलते थे| पक्षियों को दाने और चीटियों को गुड़ मैं खिलाता था| नाम जप में रत हो जाने से अकेलापन कट जाता था|
मगर समाचारपत्र नहीं मिलते थे| जल बिन मछली की गति थी| पत्रकार बिन अख़बारों के ! जेल अधीक्षक मोहम्मद मालिक (खुदा के नेक बन्दे) से मैंने अपना दुखड़ा गाया| तरस आयी तो सप्ताह बाद से दैनिकों का बंडल मिलने लगा| अचरज मधुर था| मगर रहस्य उजागर हुआ, मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016 के दिन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर| तब दिल्ली के विज्ञान भवन में इमरजेंसी में नजरबंद रहे लोगों (लोकतंत्र प्रहरी) का सम्मान हुआ| उस वक्त के काबीना मंत्री और आज उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू अध्यक्षता कर रहे थे| कल्याण सिंह (राजस्थान के राज्यपाल), ओमप्रकाश कोहली (गुजरात राज्यपाल) आदि के साथ मुझे भी मंच पर बैठाया गया था| मुख्य अतिथि ने तब मेरा उल्लेख करते हुए बताया पच्चीस वर्ष के स्वयंसेवक के रोल में वे बड़ौदा जेल में कैदियों को मदद पहुंचाते थे| अख़बारवाली मेरी तलब को समझकर वे मुझे जेल में बण्डल पहुंचाते थे| इस मुख्य अतिथि का नाम है नरेंद्र दामोदरदास मोदी|
Posted Date:January 21, 2019
2:50 pm