वीरेनियत से हिंदी कविता के लिए उम्मीद जगी है
धारदार, मार्मिक और राजनीतिक रूप से सचेत कविताएं
शहर का नाम बदलने से इतिहास नहीं बदल जाता
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हिंदी के दिवंगत कवि वीरेन डंगवाल धीरे धीरे एक प्रतीक में बदलते जा रहे हैं। धूमिल के बाद युवा वर्ग में वह लोकप्रिय होते जा रहे हैं।इसके पीछे युवा कवियों नए पाठकों और छात्रों का प्यार और श्रद्धा छिपी हुई है।
वीरेनियत 6 ने 15 नवंबर को यह सिद्ध कर दिया कि हिंदी कविता अपने समय में बहुत हस्तक्षेप कर रही है और उससे निराश होने की जरूरत नहीं हैं। कविता का भविष्य उज्ज्वल है। समारोह में दरअसल कवयित्रियों ने अपना गहरा प्रभाव छोड़ा। पूनम वासम और कविता कादम्बरी ने बहुत धरधार दृष्टि सम्पन्न और मार्मिक कविताएं सुनाकर हिंदी कविता से बहुत उम्मीद जगाई और महफ़िल को भी लूट लिया। उन दोनों ने आज के माहौल में वंचित समुदाय की तकलीफों का बहुत मार्मिक चित्रण किया। एक गहरी प्रतिबद्धता के साथ इन कविताओं ने एक नया मुहावरा भी प्रस्तुत किया।
पूनम ने आदिवासी समाज की विसंगतियों को चित्रित करते हुए विकास के भी सवाल उठाए।उनकी प्रेम कविताएं भी गहरा राजनीतिक अर्थ लिए थी और उसका सौंदर्यबोध भी अलग था।उन्होंने कविता की भाषा और मुहावरे में भी नवाचार किया है।जसिंता केरकेटा के बाद छत्तीसगढ़ के बीजापुर की कवयित्री पूनम एक भरोसेमंद आवाज़ बनकर उभरी हैं। उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां यादगार बन कर स्मृति में दर्ज हो गयी हैं —
मैँ तुम्हारे पैरें के लिए इंद्रवती नदी का पानी लेकर आऊं…
तुम्हारा माथा नहीं तुम्हारे पैर चूमना चाहूँगी ….
मेरे पुरखे मरते नहीं पत्थर बन जाते हैं…
: में पहाड़ों को देखती हूँ उम्मीद की तरह
नदी अपना दुख किससे कहती होगी
मेरे वाद्ययंत्र तोड़े गए …
इलाहाबाद की नई कवयित्री कविता कादम्बरी ने भी अपनी जोरदार उपस्तिथि दर्ज की । उन्होंने बच्चों पर युद्ध की विभीषिका के प्रभाव को रेखाँकित करते हुए कहा –
मेरी बिटिया जिस दुनिया मे आई है वहां बम की बरसात हो रही है….
दुनिया के सभी बच्चे अब इन्कलाब करनेवाले हैं…
उन्होंने “आधा हिन्दू आधा मुसलमान” शीर्षक से शानदार कविताएं सुनाई। उन्होंने एक कविता में तो टूक शब्दों में कहा —
शहर का नाम बदलने से इतिहास नही बदल जायेगा। उन्होंने मुहावरा जो लागू नहीं होता कविता के अलावा
दुनिया के सबसे शानदार पुरुष  तथा मेरे बेटे नामक अद्भुत कविता सुनाई।
उनकी इस कविता की धारदार पँक्तियां लोगों को छू गयी।
–किसी घायल को उठाने लिए न रख सको झंडा, इतने देशभक्त न बनना….
समारोह के आरम्भ में युवा आलोचक मृत्युंजय ने वीरेन डंगवाल की मशहूर कविता “रामपुर बाग की प्रेम कहानी ” से समारोह की शुरुआत की। समारोह में वरिष्ठ कवि हरिश्चन्द्र पांडेय सत्यपाल सहगल विजया सिंह अंचित आदि ने भी अच्छी कविताएं सुनाई। समारोह का संचालन आलोचक आशुतोष ने किया। समारोह में वरिष्ठ कवि असद ज़ैदी शुभा अनामिका मदन कश्यप देवी प्रसाद मिश्र योगेंद्र आहूजा आदि मौजूद थे।
(स्त्री दर्पण के फेसबुक पेज से साभार)
फोटो –नितिन गुप्ता
Posted Date:

November 16, 2024

12:12 pm Tags: , , ,

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