तीर्थस्थानों के चोर दरवाजों में सजी ‘भक्ति’ की दुकानें

वरिष्ठ पत्रकार श्रीचंद्र कुमार पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के कुछ तीर्थ और पर्यटन स्थलों पर गए। मुख्य रूप से उनका मकसद गंगा सागर जाना था और वो वहां गए भी। लेकिन वहां जाने से पहले उन्होंने कई और धार्मिक स्थलों को घुमक्कड़ी और पत्रकार वाले अंदाज़ में देखा। पहले वो बंगाल के बीरभूम जिले के मशहूर तीर्थ तारापीठ गए फिर कोलकाता के शक्तिपीठ यानी काली मंदिर। बरसों से इस देश में पंडितों औत पंडों ने कैसे इन तीर्थस्थलों को कमाई का ज़रिया बना रखा है और कैसे वीआईपी दर्शन के नाम पर इनकी दुकान चलती है, इसका एक आंखों देखा हाल श्रीचंद्र जी ने इस यात्रा वृतांत में बताने की कोशिश की है। आप भी पढ़िए।

बीरभूम का मशहूर तारापीठ मंदिर

पिछले दिनों जब हमने कुछ यात्राओं की प्लानिंग की तब यह नहीं पता था कि इन यात्राओं के दौरान हमारा साबका चोर दरवाजों से पड़ेगा और हम इसका इस्तेमाल भी करेंगे। सबसे बड़ी बात तो यह कि हमें अनुमान नहीं था कि ये चोर दरवाजे तीर्थस्थलों पर मिलेंगे। पिछली यात्रा में कई तीर्थस्‍थल भी शामिल थे। इनमें दो की चर्चा यहां कर रहा हूं जहां हमें ऐसे दरवाजे मिले। इनमें बंगाल स्थित दो तीर्थस्थल शामिल हैं। एक मां तारा का सिद्ध स्थान तारापीठ और दूसरा है बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित शक्तिपीठ काली मंदिर।

हम झारखंड के बाबाधाम यानी देवघर, बाबा बासुकीनाथ और दुमका के रास्ते सड़क मार्ग से तारापीठ जा रहे थे, इसलिए झारखंड के आदिवासी जीवन की झलक रास्ते भर हमें मिलती रही। हालांकि इस झलक को देखकर मन हर्षित नहीं हो पा रहा था बल्कि पूछ रहा था कि पहले जब यह इलाका दक्षिण बिहार के नाम से जाना जाता था, तब भी ऐसा ही दृष्य दिखाई पड़ता था और आज जब झारखंड राज्य को बने उन्नीस साल हो गए (सन् 2000 में झारखंड बना था) तब भी वैसा ही है तो फिर अपना राज्य मिलने से बदला क्या? लेकिन हम इस सवाल को यहीं छोड़कर आगे बढ़ते गए। हमारा लक्ष्य था कि हम लगभग सौ किलोमीटर की दूरी को सांझ का अंधेरा शुरू होने के पहले पूरी कर लें। इसलिए बिना रुके हम बढ़ते जा रहे थे लेकिन दुमका से करीब 31 किलोमीटर आगे बढ़ने पर हमें अपनी गाड़ी को तब रोकना पड़ा जब हम मसानजोर डैम के सामने से गुजरे। मसानजोर डैम के आकर्षण ने हमें इसलिए रोक दिया क्योंकि हम देखना चाहते थे कि यहां भी कुछ बदला है या नहीं। पिछली बार कब आना हुआ था, याद तो नहीं आया लेकिन आकर जो देखा था कुछ बदलाव के साथ लगभग वही नजारा अब भी दिखा। इस बार रंग-रोगन कुछ ज्यादा थी। हां, उस समय हमें झालमुड़ी वाला न‌हीं मिला था लेकिन इस बार डैम के ऊपर ही एक झालमुड़ी बेचता इंसान मिला जिससे हमने झालमुड़ी बनवाया और खाते हुए डैम पर घूमने लगे। आसपास की दुकानों की संख्या में भी काफी इजाफा हो गया था और दुकानों का स्तर भी ऊंचा हो गया था।

मसानजोर झारखंड-बंगाल की सीमा पर स्थित है। यहां पर मयूराक्षी नदी पर बने डैम के साथ मयूराक्षी सिंचाई परियोजना है और जल विद्युत का उत्पादन भी होता है लेकिन यह जगह एक पिकनिक स्पॉट के रूप में ज्यादा चर्चित है। हाल के दिनों में यह स्‍थान झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों के बीच झगड़े का कारण भी बनता जा रहा है।

मसानजोर बांध पर पर्यटक

झारखंड में स्थित होने के वाबजूद यहां बंगाल का अच्छा खासा दखल है और इस पर वर्चस्व की लड़ाई को लेकर हमेशा बयानवाजी चलती रहती है। आज से 28 साल पहले यह स्‍थान भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्‍ण आडवाणी के कारण भी चर्चित हुआ था। तब झारखंड नहीं बना था। यह इलाका बिहार था जहां लालू प्रसाद की सरकार थी। आडवाणी ने रामजन्म भूमि को लेकर 1990 में अपनी राम रथयात्रा शुरू की थी। यह यात्रा जब समस्तीपुर पहुंची तब उन्हें 23 अक्टूबर 1990 को गिरफ्तार कर लिया गया और मसानजोर के सिंचाई परियोजना के निरीक्षण भवन में रखा गया था। इसके बाद ही यह जगह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गई थी। खैर, कुछ देर इस डैम पर ठहरकर हम आगे बढ़ गए।

शाम के पहले हम बंगाल के बीरभूमि जिले में स्थित तारापीठ पहुंच गए। सड़क पर दोनों तरफ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग को देखकर लगा कि यह इलाका काफी समृद्ध होगा लेकिन तुरंत ही हमारा भ्रम टूट गया जब हमें पता चला कि ये सारी बिल्डिंग घर नहीं गेस्ट हाउस हैं और यहां आनेवाले भक्तों को ठहरने की सुविधा देती हैं। दूसरी एक और बात फौरन ही पता चल गई कि यह इलाका गरीब है और इलाके का हर आदमी आपके लिए दो काम करने के लिए आतुर दिखाई पड़ेगा। पहला काम तो गेस्ट हाउस के इंतजाम से लेकर मां तारा के दर्शन-पूजन तक की जिम्मेवारी उठाने का था और दूसरा काम था शराब के इंतजाम का। मां तारा के मंदिर में मांस-मदिरा का प्रसाद चढाया जाता था, इसलिए हमें ऐसा महसूस हुआ कि यहां आनेवाले भक्तगण भी इन दोनों का भरपूर सेवन करते थे। हमने भी एक गेस्ट हाउस में स्‍थान ग्रहण किया और ‌आसपास का मुआयना करने में जुट गए।

दूसरे दिन सुबह-सुबह मां तारा के मंदिर पहुंचे तबतक मंदिर में भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। पता चला कि आज कोई पवित्र दिन है, इसलिए भक्तों की अपार भीड़ दर्शन के लिए पहुंची थी। भक्तों की लंबी लाइन देखकर हमारे हौसले पस्त होने लगे तभी हमारे साथ के पंडित ने हमें राहत पहुंचाते हुए कहा कि आपलोग वीआईपी दर्शन कर लें। इस लाइन में तो शाम हो जाएगी। हम समझे कि जैसे बड़े-बड़े मंदिरों में वीआईपी दर्शन के लिए सरकार ने व्यसव्‍था कर रखी है, यहां भी वैसा ही होगा। हम सब जानते हैं कि अनेक मंदिरों में वीआईपी दर्शन की व्यवस्‍था है। पैसा सरकार लेती है और एक कूपन देती है। भीड़ को देखकर हम पहले ही हिम्मत खो चुके थे, इसलिए फौरन तैयार हो गए। आठ सौ प्रति व्य‌क्ति के हिसाब से हमने टोल चुका दिया। हमें उम्मीद थी कि वह हमें आठ कूपन देगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पं‌डित हमें लेकर एक छोटे से गेट की ओर बढ़ा। गेट बंद था। वहां मौजूद दूसरे पंडित के हाथ में उसने कुछ नोट थमाए और बताया आठ हैं। फौरन गेट खोल दिया गया और हम मंदिर के मुख्य चबूतरे पर पहुंच गए जहां पहुंचने के लिए दूसरे लोग घंटों लाइन में धक्के खानेवाले थे। हमने कूपन की मांग की तो पंडित ने साफ तौर पर कहा यहां तो यही व्यवस्‍था है। यानी यह व्यवस्‍था एक तरह से पंडितों का चोर दरवाजा है जो पैसे की चाबी से खुलता है और यह पैसा सरकार के खजाने में न जाकर पंडितों के पेट में जाता है। आस्‍था औेर भक्ति के बोझ से दबे दो तरह के ‌लोग तीर्थस्‍थलों पर आते हैं। एक तो हम जैसे सुविधाभोगी खुद को भक्त साबित करने के लिए पैसे की ताकत के बल पर देव दर्शन को सुविधाजनक बना डालते हैं और दूसरी तरफ भक्तों का वह विशाल हुजूम है जो अपनी आस्था को ज्यादा सच्चा साबित करता हुआ देवी-देवताओं के जयकारे लगाता हुआ भीड़ में धक्के खाता भी थक नहीं रहा था। खैर, धन की चाबी से चोर दरवाजा खुला और हमने माता के दर्शन-पूजन किए।

हमें एक दूसरी यात्रा के दौरान बंगाल के प्रसिद्ध मंदिर में ऐसे दरवाजे से दर्शन-पूजन करने का मौका अगले माह ही मिला जब हम कोलकाता गए। कोलकाता में प्रसिद्ध काली मंदिर है जो शक्तिपीठ भी है। हम गंगासागर की यात्रा संपन्न कर कोलकाता लौटने के दूसरे दिन जब मां काली के दर्शन करने मंदिर पहुंचे तो वहां भी वही नजारा थ। भक्तों की अपार भीड़ थी और लंबी लाइन। बताया गया कि आज भी कोई पवित्र दिन है जिस दिन देव-देवी दर्शन करना सौभाग्य की बात माना जाता है। यहां भी हमें भीड़ से बचाने का फार्मूला लेकर पंडित आया और पैसे देकर वीआईपी दर्शन की बात कही। हमने फिर सोचा, शायद यहां हमें कूपन मिलेगा क्योंकि यह पश्चिम बंगाल की राजधानी है। हमारा भम्र जल्दी ही टूट गया जब पैसे लेकर पंडित हमें एक छोटे से दरवाजे की तरफ बढ़े और उसी तरह हमें दर्शन कराया जैसे तारापीठ में कराया गया था। हम सोच रहे थे कि यदि ये चोर दरवाजे न होते तो हम जैसे सुविधाभोगी भक्तों का क्या होता। मन में दूसरा सवाल यह भी था कि पैसे के बल पर सुवधाजनक पूजन और लाइन में लगने का कष्ट उठाकर किए गए पूजन में कौन श्रेष्ठ है। इसका जवाब कौन देगा, पता नहीं।

Posted Date:

January 19, 2019

9:24 am

One thought on “तीर्थस्थानों के चोर दरवाजों में सजी ‘भक्ति’ की दुकानें”

  1. Nice post. I was checking continuously this blog and I’m impressed!
    Very helpful information specially the last part :
    ) I care for such info a lot. I was looking for this certain information for
    a very long time. Thank you and good luck.

Comments are closed.

Copyright 2024 @ Vaidehi Media- All rights reserved. Managed by iPistis