‘चांदनी’ का असमय ढल जाना…

श्रीदेवी का जाना एक ऐसे दुखद सपने जैसा है जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। बचपन से हमसब ने उनकी खूबसूरती, उनकी अदाकारी के तमाम शेड्स, उनका अल्हड़पन और उनकी आंखों में नागिन वाला गुस्सा सिल्वर स्क्रीन पर देखा है। उनकी नृत्य शैलियां, उनका गुस्सा, उनका प्यार, उनका अपनापन और वो सबकुछ जो उन्हें एक संपूर्ण अदाकार, एक बेहतरीन इंसान, एक आदर्श मां और एक शानदार व्यक्तित्व बनाता था… एक कलाकार अपने बचपन से ही कुछ ऐसे हुनर लेकर आता है जो निखरते निखरते उसे एक संपूर्ण कलाकार बना देता है, श्रीदेवी इसकी मिसाल रही हैं।

4 साल की उम्र में एक तमिल फिल्म ‘थुनाइवन’ में पहली झलक दिखाने वाली श्रीदेवी को हिन्दी में पहली बार लोगों ने 1975 में फिल्म ‘जूली’ में बतौर बाल कलाकार देखा, फिर आई सोलहवां सावन, हिम्मतवाला, सदमा, नागिन, निगाहें, मिस्टर इंडिया, लम्हे, चांदनी, रूप की रानी, चोरों का राजा… और 15 साल के ब्रेक के बाद उनकी कमबैक पर आई इंग्लिश विंगलिश और मॉम। करीब 50 साल का फिल्मी सफ़र और 100 से भी ज्यादा फिल्में – अभिनय के इतने आयाम जो कम ही दिखाई देता है।

लेकिन महज 54 साल की उम्र में अचानक सबको छोड़कर चली जाने वाली श्रीदेवी ने जाने से पहले हंसते मुस्कराते यही संदेश दिया कि ज़िंदगी को खुलकर जियो, हमेशा आज में जियो और आपकी मुस्कराहट ही आपकी पूंजी है, इसे बरकरार रखो… कल किसने देखा है….

7 रंग  परिवार की ओर से इस महान अदाकारा को नमन… श्रद्धांजलि…

 

Posted Date:

February 25, 2018

10:15 am
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