लेखक और गीतकार संतोषानंद की कलम से गीतकार श्याम निर्मम की दसवीं पुण्यतिथि पर खास पेशकश…
‘श्याम नवगीत और ग़ज़ल का शिल्पी था, सिद्धहस्त सम्पादक, मधुर रचनाओं का रचयिता और संवेदनशील व्यक्ति, उसके रोम-रोम से आत्मीयता छलकती थी। जब-जब मेरी और श्याम की मुलाकात होती वो पल मेरे लिए बहुत सुखद होते उसके पीछे बहुत से कारण हैं।…’
ज़िन्दगी एक ऐसा सफर है जिसमें कुछ भी नियोजित नहीं। कब, क्यों और क्या घट जाए यह अनुमान लगाना सरल नहीं। ज़िन्दगी कभी पर्वतों के शिखरों को छूती है तो कभी समुद्र की गहराई में डूबती-सी मालूम पड़ती है। जिन्दगी की आँख मिचौली के मध्य मनुष्य की दशा उस कठपुतली की भाँति है, जो नाचती तो है किन्तु धागा किसी और के हाथ में होता है। अथवा यों कहिए कि नाचना कठपुतली की लाचारी है, स्वेच्छा नहीं। ऐसी दशा में कई बार ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब मनुष्य को उसकी परिस्थितियाँ ही चटकाकर तोड़ देती हैं तो वह अन्दर ही अन्दर चूर-चूर होता चला जाता है। जीना उसकी लाचारी मात्र रह जाता है, किन्तु मनुष्य के वे सारे सपने खण्डित हो जाते हैं जो उसकी जीवन्तता के प्रतीक होते हैं और जीने के लिए रह जाती हैं घुटन, पीड़ा और निराशा। मैं इस पीड़ा को एक नहीं कई बार वहन कर चुका हूं इसलिए जानता हूं कि निर्मम की निर्ममता से बच्चों पर क्या बीती होगी, उषा पर क्या बीती होगी।
श्याम की पत्नी उषा मेरी बहिन की पुत्री है इस नाते मैं उसका मामा हूं। श्याम और उषा का विवाह सन् 1973 में हुआ। उससे पहले ही श्याम कवि रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था। श्याम को दामाद के रूप में पाना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। लेकिन श्याम को मैं और भी पहले से जानता हूं जब श्याम बहुत छोटा था तब से। लेकिन उसे जानने वाला कोई भी व्यक्ति ठीक-ठीक अनुमान लगाकर यह बता नहीं कर सकता कि वो उसे बहुत अच्छी तरह से जानता है क्योंकि उसका व्यक्तित्व ‘असीम’ की भांति विराट था जिसे समझना किसी के बूते की बात नहीं थी। किसी भी मनुष्य को मनुष्य बनाती है उसकी रागात्मकता, मनुष्य को मनुष्य बनाती है उसकी जीवन शैली, उसका व्यवहार, आचार, कठिन परिश्रम नैतिक मूल्य। ये सब श्याम के अन्दर ऐसे थे जैसे नदिया में वारि… वो अपने से बड़ों का आदर सत्कार करता, समवयस्कों से मित्रवत् रहता और छोटों को प्रेम और आशीष देता।
श्याम नवगीत और ग़ज़ल का शिल्पी था, सिद्धहस्त सम्पादक, मधुर रचनाओं का रचयिता और संवेदनशील व्यक्ति, उसके रोम-रोम से आत्मीयता छलकती थी। जब-जब मेरी और श्याम की मुलाकात होती वो पल मेरे लिए बहुत सुखद होते उसके पीछे बहुत से कारण हैं। पहला कारण मैं उपर बता चुका कि वो मेरा दामाद था और ऐसा दामाद जो पुत्र से भी बढ़कर था। दूसरे कारण को भी मैं विस्तार पूर्वक बयां करना चाहूंगा। श्याम मेरी तरह के गीतकारों की श्रेणी में था और साथ ही साथ मेरी और श्याम की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि भी एक ही थी। जिला बुलन्दशहर के एक कस्बे सिकन्द्राबाद में, मैं और श्याम पले-बढ़े हालांकि मेरी और श्याम की उम्र में करीबन 20 वर्ष का अन्तर होगा फिर भी उसकी और मेरी घनिष्टता और निकटता रही। यह बात उतनी ही सत्य है जितना सूर्य का पृथ्वी को आलौकित करना और चन्द्रमा का शीतलता प्रदान करना। श्याम के पिता और मेरे पिता दोनों एक ही विद्यालय में शिक्षण कार्य करते थे। एक ही विद्यालय मे कार्यरत होने के साथ-साथ दोनों एक ही मौहल्ले कायस्थवाड़े में रहते थे। वो दोनों घर आज भी वहाँ स्थिति हैं। स्वाभाविक-सी बात है कि दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध थे।
मेरे पिताजी को गीत लिखने और गाने का बहुत शौक था। श्याम के पिताजी को नाटक निर्देशन का अच्छा ज्ञान और शौक था। मुझसे और श्याम से परिचित अधिकांश लोग इस बात को जानते होंगे। पिता का प्रभाव श्याम पर पूरी तरह दिखाई देता था यही कारण था कि उसके अन्दर अनेक कलाओं का समागम था। कक्षा नौ से ही उसके अन्दर काव्य के प्रति रूचि दिखाई देने लगी थी। विज्ञान विषय का होनहार छात्र होने पर भी साहित्य के प्रति उसकी रूचि का होना विरोधाभास सा है श्याम ने मुझे बताया था कि उसके मित्रों मे भी कुछ इस श्रेणी में आते हैं।
बचपन से ही गाँव की सहजता, सरलता, मधुर व्यवहार, परस्पर प्रेम सौहाद्र के भावों से संचित उसका मन हमेशा ज्ञानातिरेक के कारण पृथक लक्ष्य साधने में लगा रहा और देखते-देखते श्याम के काव्य की गंध सिकन्द्राबाद, खुर्जा की गली-मौहल्लों से होती हुई ग़ाज़ियाबाद, दिल्ली, भोपाल, ग्वालियर, इन्दौर और भारत के न जाने किन-किन शहरों की आबोहवा को महकाने लगी। श्याम का व्यक्तित्व कुछ हटकर था उसने कभी अकेले आगे बढ़ने के विषय में नहीं सोचा हमेशा साहित्यिक मित्रोें और सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना उसकी खासियत थी। नए कवि, लेखक तथा साहित्य की किसी भी विधा से जुड़े हुए लोग ख्याति प्राप्त कर सकें यह श्याम का ध्येय था। अपने अनुभव प्रकाशन से पूर्व भी उसने ‘गीतों के सार्थवाह’ पुस्तक का संपादन कर नवगीतकारों को एक श्रृंखला में लाकर खड़ा करने का भरसक प्रयास किया और ये प्रयास एक सफल प्रयास सिद्ध हुआ क्योंकि इसे नवगीत की उल्लेखनीय उपलब्धि माना गया। श्याम का अचानक चले जाना साहित्य जगत की बहुत बड़ी क्षति है। जिसको पूरा करना किसी के बस में नहीं।
श्याम की आत्मीयता के कारण श्याम द्वारा आयोजित साहित्यिक एवं घरेलू कार्यक्रमों मे मुझे निमन्त्रित किया जाता रहा और मुझे सहजता से स्वीकृति प्रदान कर इन कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती। अपनी बीमारी के कारण मैं श्याम को अन्तिम विदाई देने के लिए हिण्डन नहीं पहुँच सका क्योंकि उसकी निर्ममता और निष्ठुरता ने मेरे हदय को चूर-चूर कर दिया।