एक प्रतिभा सम्पन्न रचनाकार : डॉ. श्याम निर्मम
प्रख्यात गीतकार डॉ. श्याम निर्मम की 9वीं पुण्यतिथि पर विशेष प्रस्तुति
(जाने माने वयोवृद्ध कवि कृष्ण मित्र 88 साल के हो चुके हैं… उनकी यादों में तमाम साहित्यकार और कवियों के ढेर सारे अनुभव हैं। कृष्ण मित्र जी ने प्रख्यात गीतकार श्याम निर्मम को बहुत करीब से देखा और महसूस किया.. उनकी रचनाओं से लेकर उनके व्यक्तित्व के बारे में उनकी अपनी राय है। आदरणीय श्याम निर्मम जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए 7 रंग के पाठकों के लिए कृष्ण मित्र जी का ये आलेख बहुत मायने रखता है।) 
– कृष्ण मित्र
साहित्य को अपने कृतित्व से निरन्तर समृद्धि की ओर ले जाने को तत्पर, लेखन के नवीन संदर्भों को व्याख्यायित करने में संलग्न, गीत, ग़ज़ल, नवगीत, पत्रकारिता और समीक्षा के अनेक आयामों को संदर्भित करने वाले श्रेष्ठ कवि डॉ. श्याम निर्मम अचानक जब बैकुण्ठ धाम सिधारे तो लगा कि जैसे वज्रपात हुआ। परन्तु ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध कोई कुछ नहीं कर सकता, इन भावनाओं से स्वयं को आश्वस्त करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।
डॉ. श्याम निर्मम बहुमुखी प्रतिभा के  धनी साहित्य के पारखी थे। वे प्रत्येक पग पर रचनाधर्मिता की पगडंडियों पर जो पैरों के निशान वे छोड़ गये हैं उन पर विचार करते हुए भूतकाल के क्षणों की स्मरणीय रेखाओं में से कुछ तलाशने का प्रयास किया जा सकता है। वे एक सुशिक्षित और सरल स्वभावी रचनाकार थे। उनके गीतों की स्वर लहरियां स्मरण कर अभिभूत होने को जी चाहता है। मुझे अनेक कवि सम्मेलनों में उनका सानिध्य प्राप्त हुआ। गीत और ग़ज़ल के वे अद्भुत पारखी थे। गुनगुनाने का उनका अपना ही अन्दाज था।
अनेक आयोजनों में उनके साथ जो यात्राएं की हैं उनकी स्मृतियों की अद्भुत ताजगी आज भी महसूस होती है। डॉ. श्याम निर्मम व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से अपने सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में आज भी वैचारिक प्रतिबद्धता के नये आयाम सौंपने को आतुर दिखाई देते हैं। गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में उनके बिना अधूरापन लगता था। अनेक गीतों और नवगीतों के अतिरिक्त ग़ज़लों की अनुगूंज निरन्तर सुनाई देती रहती थी। वे यद्यपि नई दिल्ली नगर पालिका की पत्रिका के सम्पादन के संबंध में पत्रकारिता से जुड़े हुए थे, मगर गीत कवि का उनका रूप अपनी विशेष आभा रखता था। समर्थ गीत कवि का स्वरूप डॉ. श्याम निर्मम की विशेष पहचान थी। गीत, नवगीत लेखन और सृजन तो उनकी आत्मा में बसे थे। उसी में उन्होंने अपना शोध-प्रबंध प्रस्तुत किया था। सरलता और सहृदयता तो मानो उनका और उनके काव्य का श्रृंगार थीं।
‘हाशिये पर हम’ डॉ. श्याम निर्मम का बेहद चर्चित नवगीत संग्रह है। इसमें उनके नवगीतों की मधुरिमा देखी जा सकती है। उनके प्रत्येक संकलन और कविता संग्रह में डॉ. श्याम निर्मम का अनुभव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उनके ग़ज़ल संग्रह ‘पंछी गुमसुम पिंजरे में’ की प्रत्येक ग़ज़ल में नई अनुभूतियों के दर्शन होते हैं। वे केवल ग़ज़लों और गीतों के ही प्रणेता नहीं थे, वे मुक्तछन्दों के भी रचनाकार थे। इस संबंध में उनका संकलन ‘चक्रव्यूह तोड़ते हुए’ देखा जा सकता है। गौतम बुद्ध पर आधारित संग्रह ‘लो, मैं आ गया तथागत’ अपने शीर्षक से ही कौतूहल के रूप में देखा जा सकता है। यह गौतम बुद्ध पर केन्द्रित कविताओं का संग्रह है जिसमें उनके बुद्धि सौष्ठव का विशेष उदाहरण देखने को मिलता है।
    
डॉ. श्याम निर्मम की अनेक स्मरणीय रचनाएं देखी जा सकती हैं। देश के मूर्धन्य कवि पंडित वीरेन्द्र मिश्र की ‘गीत पंचम’, ‘बरसे रस की फुहार’, ‘चंदन है माटी मेरे देश की’ और ‘गीत विविधा’ तथा ‘वीरेन्द्र मिश्र का गद्य लेखन’ जैसे विषयों पर पठनीय साहित्य रचा गया है। प्रख्यात विद्वान देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ द्वारा संपादित ‘हरियर धान रुपहरे चावल’ और ‘वसन्त के अग्रदूत : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में भी उनकी रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं।
डॉ. श्याम निर्मम काव्य मंचों के सुविख्यात कवि स्वीकार किये गये हैं। आज यद्यपि वे हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी रचनाएं हमारी धरोहर बनीं हमें निरन्तर कुछ नया करने की प्रेरणा प्रदान करती रहेेंगी। अनेक कवि बंधुओं की रचनाओं की भूमिकाएं और आमुख भी डॉ. श्याम निर्मम ने लिखकर उन पुस्तकों का गौरव बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई है। आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भी उनकी मधुर ग़ज़लों और गीतों की ध्वनियों को अपने में ही समाहित किया है। देश की अनेक सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं ने डॉ. श्याम निर्मम को सम्मान प्रदान किये हैं। वे साहित्य के ऐसे गीत कवि थे जिनको मंचों की कीर्ति के अतिरिक्त लेखन की विभिन्न विधाओं के श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में भी जाना जाता रहेगा।
अनुभव प्रकाशन संस्थान उनका कीर्ति स्तम्भ है। साहित्य की दुनिया के लिए यह एक स्तुत्य और प्रशंसनीय प्रयास भी है। इसके माध्यम से डॉ. श्याम निर्मम सदैव हमारे आस–पास अपनी सुगंध को बिखरते हुए सृजन के सेतुबंध बनने का स्वप्न साकार करते रहेेंगे।
(इस आलेख के लेखक)
जाने माने कवि और साहित्यकार कृष्ण मित्र

 

Posted Date:

December 24, 2021

11:02 am Tags: , ,
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