

क्या आप सुंदरी के श्रीधरणी को जानते हैं ? शायद नहीं जानते होंगे लेकिन जब आप दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में कभी गए होंगे तो आपने यह जरूर सोचा होगा कि यह सुंदर कला परिसर किसने बनाया है जो देश की राजधानी का सबसे प्रतिष्ठित कला परिसर है।
हां, हम बात कर रहे हैं सुंदरी के श्रीधरणी आर्ट गैलरी की जिनका यह शताब्दी वर्ष है। 7 अप्रैल 1925 को हैदराबाद (सिंध प्रांत )में जन्मी सुंदरी जी एक नृत्यांगना थीं और प्रख्यात नर्तक उदय शंकर की मंडली में भी थीं। उन्होंने 1950 में दिल्ली के कनॉट प्लेस के एक कैफे हाउस से त्रिवेणी कला संगम की शुरुआत की थी। जब बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उनके काम के बारे में पता चला तो उन्होंने मंडी हाउस के पास त्रिवेणी कला संगम के लिए जमीन आवंटित कर दी जो आज देश की जानी मानी कला दीर्घा है और अग्रणी सांस्कृतिक परिसर है। उनके पति भी अपने समय के प्रसिद्ध कवि पत्रकार और संस्कृतिकर्मी थे।
उसी सुंदरी जी की स्मृति में सुप्रसिद्ध चित्रकार और कला शिक्षक रामेश्वर ब्रूटा के नेतृत्व में 13 चित्रकारों की एक प्रदर्शन त्रिवेणी कला संगम की श्रीधरणी आर्ट गैलरी में लगाई गई जिसका औपचारिक उद्घाटन मंगलवार को हुआ।
इस प्रदर्शनी की खास बात यह थी कि इसमें 10 महिला कलाकार थीं और उनमें से कई तो आज की चर्चित महिला चित्रकार मानी जाती हैं जिन्होंने चित्रकला की दुनिया में एक मुकाम हासिल किया है। जैसे वसुंधरा तिवारी जो आज देश की जानी-मानी आर्टिस्ट हैं। इस चित्र प्रदर्शनी में जैनेंद्र कुमार की नतिनी श्रुति की भी पेंटिंग्स हैं। साथ ही हिंदी की चर्चित कवयित्री वाज़दा खान की भी पेंटिंग्स लगी है।
इन महिला चित्रकारों ने अलग-अलग माध्यमों में अपनी पेंटिंग्स बनाई है और उनके विषय वस्तु तथा चित्रों के संयोजन भी अलग-अलग हैं जिससे समकालीन स्त्री चित्रकला का एक परिदृश्य सामने उभरता है और पता चलता है कि महिला चित्रकार किस तरह से जीवन समाज तथा प्रकृति को देखती हैं और अपने रंगों से किस तरह का संवाद कायम करती हैं। इनमें खास बात यह है कि इनमें ज्यादातर महिला चित्रकार पूर्णकालिक पेंटर हैं और उन्होंने त्रिवेणी कला संगम में श्री ब्रूटा से पेंटिंग की शिक्षा दीक्षा ली है। ज्यादातर महिला कलाकार हाउसवाइफ हैं लेकिन उन्होंने उसी में से अपना समय निकालकर अपनी जिंदगी को चित्रकला की दुनिया में समर्पित कर दिया है।
इनमें से बनारस की प्रतिभा सिंह हैं जो अब दिल्ली में ही बस गई हैं तो वसुंधरा जी भी हैं जो मूलतः उत्तर प्रदेश की हैं। उनके माता-पिता लखनऊ तथा कानपुर के थे लेकिन उनका जन्म कोलकाता में हुआ और वह 70 के दशक में दिल्ली आकर बस गईं । 1998 में उनकी पहली प्रदर्शनी लगी थी। बाद में उनकी एक एकल प्रदर्शनी अमेरिका में भी लगी और कई ग्रुप शो में उनके चित्र लग चुके हैं ।
श्रुति गुप्ता चंद्रा अपनी पेंटिंग के बारे में बात करते हुए अपने नाना जैनेंद्र कुमार को बहुत शिद्दत से याद करती हैं और कहती हैं कि उन्हें नाना से बहुत प्यार मिला। जब वह 28 वर्ष की थीं तो उनके नाना गुजर गए लेकिन नाना ने मेरी पेंटिंग में बड़ी दिलचस्पी दिखाई और मुझे बहुत ही प्रोत्साहित किया। आज मैं जो कुछ भी हूं अपने नाना की वजह से ही हूं। मैंने अब तक कई पेंटिंग्स बनाई है। मेरी पेंटिंग्स नेशनल गैलेरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में भी है। मेरे चार-पांच सोलो हो चुके हैं। मैंने अपनी पेंटिंग में यही दिखाने की कोशिश की कि जरूरी नहीं की हर व्यक्ति किसी एक ही पहचान और दायरे में हो। हर व्यक्ति बने बनाये खाँचे और ढांचे से अलग दिखता है और वह स्वाधीन भी है तथा उसकी अपनी अस्मिता है। कला की दुनिया में सब कुछ चीजों से परे देखते हैं जैसे एक स्त्री जीवन को देह से परे देखती है। उनकी पेंटिंग्स एक्रेलिक से कैनवास पर बनी है। उन्होंने अपनी पेंटिंग में कबूतर जाली का भी प्रयोग किया है और दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह मनुष्य की उड़ान एक कबूतर की उड़ान की तरह है अपनी स्वत्रंतता के लिए।
कश्मीरी पेंटर अवनी बकाया वैसे तो कॉलेज ऑफ आर्ट से पढ़ी हैं लेकिन वह भी रामेश्वर बूटा की छात्रा रही हैं। वह ज्यादातर फिगरेटिव आर्ट बनाती हैं और उन्होंने अपनी पेंटिंग में अपनी दादी का एक चित्र बनाया है और एक दूसरी पेंटिंग में खुद अपनी ही तस्वीर बनाई है। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे वक्त ने कितना सब कुछ बदल दिया। दादी से उनका जो एक रिश्ता था उसकी स्मृति उनकी पेंटिंग में तो है ही लेकिन जब वह अपनी पेंटिंग में खुद को देखती हैं तो वह दादी और अपने के बीच के फर्क को बताना चाहती हैं। उनकी भी एक सोलो प्रदर्शनी लग चुकी है ।
नीरजा जी अपनी पेंटिंग में प्रकृति से संवाद कायम करती हैं और बारिश की बूंद को चित्रित करती हैं। उनकी चित्रकला की खास बात है कि वह पेपर और लकड़ी से बनी है। उन्होंने अपनी पेंटिंग में बारिश को याद किया है और बारिश की बूंद को दिखाने की कोशिश की है जैसे तमाम बूंद के बीच एकता में अनेकता काम कर रही हो ।
अंजू कौशिक के चित्रों की खासियत यह है कि वह बेकार पड़ी चीजों को अपनी कला का सुंदर माध्यम बनती हैं और उसे एक तरह से वह रीसायकल करती हैं। हम लोग जो चीजें फेंक देते हैं जैसे थर्मोकोल को ही दीजिए लेकिन अंजू कौशिक उस फेंके हुए थर्माकोल में अपने लिए कला ढूंढ लेती हैं और उनसे अपनी पेंटिंग बनाती हैं। उन्होंने अपनी पेंटिंग में एक्रेलिक और सीमेंट का भी प्रयोग किया है। यह बिल्कुल नया प्रयोग है उनका कहना है कि वह जब स्कल्पचर बनाती हैं तो उसमें भी इन्हीं वेस्ट मटेरियल का इस्तेमाल कर उसे एक कलाकृति का रूप देती है। वह रामेश्वर ब्रूटा की छात्रा हैं।
अलका झाम्ब यूं तो पंजाब की है लेकिन दिल्ली में ही पैदा हुईं और रामेश्वर बूटा से उन्होंने कला सीखी। वह भी एक फुल टाइम आर्टिस्ट हैं। उनके अब तक चार एकल प्रदर्शनियां हो चुकी हैं और करीब 25 ग्रुप शो हो चुके हैं। वह अपनी पेंटिंग में शिल्प की भाषा और शिल्प की गूंज को खोजती हैं। उन्होंने अपनी चित्रकला में 3D का प्रयोग किया है। वह कहती हैं कि दिल्ली में रहते हुए जब वह किसी इमारत को और ढांचे को देखती हैं तो उनमें वह कला ढूंढती हैं और अपनी चित्रकला में उसे एक शिल्प के रूप में डालने की कोशिश करती हैं।
श्रुति विनय गुड़गांव में रहती हैं और वह पिछले 12-13 सालों से पेंटिंग कर रही हैं। उनकी एक एकल प्रदर्शनी हो चुकी है। वह भी अपनी पेंटिंग में रोजमर्रा औरतों की जिंदगी को चित्रित करती हैं। वह दिखाना चाहती हैं कि एक स्त्री अपने जीवन में किस तरह काम धाम में फंसी है और उसमें वह अपने लिए सुकून ढूंढना चाह रही है। अपनी अस्मिता विकसित करती हैं। प्रतिभा सिंह भी पल्प पेपर और नारियल के जूट को मिलाकर अपनी कलाकृति बनाती हैं। उन्होंने मंगल ग्रह पर जीवन की कल्पना को अपनी पेंटिंग में दिखाने की कोशिश की है।
सारी महिलाएं चित्रकला की एक नई भाषा खोजने में लगी हैं और अपनी पेंटिंग का एक नया मुहावरा विकसित कर रही है। इस तरह से देखा जाए तो उनकी पेंटिंग में प्रकृति स्त्री और चीजों के परे जाकर दुनिया को देखने और समझने की दृष्टि दिखाई पड़ती है और जीवन की गहरी ललक स्वप्न और आकांक्षा भी उनमें नजर आती है।
प्रख्यात चित्रकार रामेश्वर ब्रूटा कहते हैं कि मैं पिछले 50 साल से यहां लोगों को पेंटिंग की क्लास लेता हूं। सुबह की क्लास में तो सब महिलाएं होती हैं करीब 20 25 छात्राएं आती हैं । शाम को जब क्लास होती है तो उसमें पुरुष और महिला चित्रकार दोनों शामिल होते हैं। उन्होंने अब तक हजारों छात्रों को पढ़ाया है और उन्हें कलाकार बनाया है। उनमें से कई तो देश के जाने-माने चित्रकार बन चुके हैं। मुझे खुशी है कि आज सुंदरी जी की स्मृति में लगी इस चित्र प्रदर्शनी में 10 महिला चित्रकारों की पेंटिंग लगी है जिनमें से कई ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मैंने तो यह गौर नहीं किया कि दिल्ली में कब महिला चित्रकारों की संख्या अधिक बढ़ी है लेकिन मैं पिछले कुछ सालों से देख रहा हूं कि चित्रकला की दुनिया में अधिक महिलाएं आ रही हैं और उन्होंने चित्रकला में नए-नए तरह के प्रयोग किए हैं। उनके विषय वस्तु भी थोड़े अलग हैं और उन्होंने समकालीन चित्रकला के परिदृश्य को अपनी कला के जरिये परिदृश्य को उत्तेजक बनाया है।
अरविंद कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:
April 2, 2025
3:25 pm
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