हिन्दुस्तानियत को बचाने की चुनौती…

लखनऊ के सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों ने शहीदों को याद किया
23 मार्च की खास अहमियत है। देश भर में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन तीन क्रान्तिकारियों – भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गयी थी। इसी दिन पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश को खालिस्तानी आतंकवादियों ने अपनी गोली का निशाना बनाया था। 25 मार्च को  दंगाइयों ने गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कर दी थी। इन शहीदों की याद में लखनऊ कें कैसरबाग स्थित इप्टा के प्रांगण में शहीद दिवस का आयोजन किया गया जो ‘देश मेरा, वोट मेरा, मुद्दा मेरा’ के तहत देशभर में चलाए जा रहे अभियान की कड़ी था।

इप्टा और साझी दुनिया की पहल पर यह साझा कार्यक्रम था।कार्यक्रम का आरम्भ करते हुए इप्टा के महासचिव राकेश ने कहा कि इस चुनौतीपूर्ण दौर में शहीद भगत सिंह और क्रांतिकारियों के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। यह दौर है जब सत्य को झूठा साबित किया जा रहा है और झूठ को सच के रूप में पेश किया जा रहा है। इतिहास की गलत व्याख्या की जा रही है। लोकसभा चुनाव सामने है और धमकी भरे स्वर में कहा जा रहा है कि यह आखिरी चुनाव है। लोकतंत्र और संविधान के लिए वास्तविक खतरा हमारे सामने है। चुनौती हिंदुस्तानियत को बचाने की है।

कार्यक्रम में गीत-गायन, कविता पाठ के अलावा क्रांतिकारियों के आलेखों का पाठ भी किया गया। अतमजीत सिंह ने सुरजीत पातर की दो कविताएं सुनाएं। साझी दुनिया की अंकिता, रश्मि काला, तंजीम आदि ने इस गीत से समा बांध दिया ‘लड़ रहे हैं इसलिए कि प्यार जग में जी सके/आदमी का खून कोई आदमी न पी सके’। वहीं संध्या दीप ने मजाज की मशहूर नज़्म सुनाई ‘बोल री वो धरती बोल, राज सिंहासन डांवाडोल’। इस मौके पर कल्पना पांडे ने भी अपनी कविता सुनाई। इप्टा के प्रदीप घोष ने डॉक्टर अंबेडकर के उस संपादकीय आलेख का पाठ किया जिसे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दिए जाने के बाद उस घटना का विश्लेषण करते हुए उन्होंने लिखा था। गौरतलब है कि भगत सिंह ने अपने समय की राजनीति पर ही नहीं लिखा बल्कि उस समय की सामाजिक, आर्थिक व अन्य समस्याओं पर भी अपने विचार प्रकट किए थे जैसे सांप्रदायिकता, धर्म, अछूत समस्या, भाषा समस्या आदि। इस अवसर पर भगत सिंह का मशहूर लेख  ‘सांप्रदायिकता और धर्म’ का इप्टा के सुशील बनर्जी ने पाठ किया।  धर्म, साम्प्रदायिकता, समाज व राजनीति के हालात पर केन्द्रित गणेश शंकर विद्यार्थी का आलेख रश्मि काला और तंजीम द्वारा पढ़ा गया। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना का कहना था की जरूरत इस बात की है कि हम अपने दायरे का विस्तार करें और जो बड़ा जन समुदाय है उसके साथ हमारा संवाद हो। उन्होंने अपनी एक कविता भी सुनायी जिसके माध्यम से उनका कहना था कि मरना तो है ही एक दिन फिर मरने से क्या डरना और अगर मरना ही है तो मार के मरना, मच्छर काटने से क्या मरना।

कवि और जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने पाश को याद करते हुए भगत सिंह पर लिखी उनकी कविता सुनाई जो इस प्रकार थी ‘जिस दिन फांसी दी गई/उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली/जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था/पंजाब की जवानी को/उसके आखिरी दिन से/उस मुड़ेे पन्ने से बढ़ना है आगे/चलना है आगे’। कौशल किशोर ने पाकिस्तान में वहां का नागरिक समाज भगत सिंह को कैसे याद करता है इस पर अपनी बात रखी। उनका कहना था कि जहां भारत में उन्हें शहीद ए आजम का दर्जा मिला है वहीं पाकिस्तान के लोग उन्हें ‘सन आफ स्वॉयल’ – धरती का लाल कहते हैं। वहां उन्हें वीरता का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-हैदर दिए जाने की मांग उठी है।इस मौके पर उदय खत्री ने भी अपनी बात रखी। समापन वक्तव्य साझी दुनिया की रूपरेखा वर्मा ने दिया। उनका कहना था कि हालात बहुत खराब है। देशभक्ति को प्रहसन बना दिया गया है। समय की मांग है कि हम हस्तक्षेप करें। कमलाकांत के गीत से कार्यक्रम खत्म हुआ। इस अवसर पर वेदा राकेश, रवि प्रकाश, सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, नलिन रंजन, विमल किशोर, कान्ति मिश्रा, अजय शर्मा, कलीम खान, अजय शर्मा, नितीन राज, आजाद शेखर आदि मौजूद थे।

Posted Date:

March 24, 2019

9:16 pm Tags: , , , , ,
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