नीलिमा डालमिया आधार की चर्चित किताब ‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’
अपनी किताबों के ज़रिये मौजूदा समाज की असलियत तलाशती नीलिमा डालमिया आधार की नई किताब ‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’ मौजूदा समाज में किसी के ‘महान’ बनने की प्रक्रिया और पुरुषवादी सोच का बारीकी से विश्लेषण करती है। गांधी को ‘गांधी’ बनाने में कस्तूरबा ने अपना क्या क्या खोया होगा, किन इम्तिहानों से गुज़री होंगी, खुद को कैसे परदे के पीछे रखकर एक ‘पतिव्रता’ और ‘आदर्श पारंपरिक’ पत्नी का धर्म निभाया होगा, उसे बेशक काल्पनिक तौर पर लेकिन बेहद दिलचस्प अंदाज़ में नीलिमा आधार ने इस किताब में उतारा है। किताब को आए कुछ महीने गुज़र गए, पिछले साल 2 अक्तूबर को न्यूयार्क लिटरेचर फेस्टिवल में यह रिलीज़ भी हुई लेकिन इतने महीनों से यह किताब लगातार चर्चा में रही।
आज के दौर में जब देश के राजनीतिक और सांस्कृतिक हालात एक नई दिशा में जा चुके हैं, पारंपरिक सोच अपनी नई परिभाषा के साथ फिर से स्थापित की जा रही है और महिलाओं की आज़ादी को लेकर नज़रिये में भी बदलाव आया है, ऐसे में कस्तूरबा को केन्द्र में रखकर उस हकीकत को रखना एक चुनौती का काम है। नीलिमा आधार जब लिखती हैं तो उसमें कोई दिखावा या आडंबर नहीं होता, किस्सागोई तो होती है लेकिन सामाजिक परिवेश की हकीकत ज्यादा होती है। चाहे वो अपने पिता पर लिखी उनकी किताब ‘फादर डियरेस्ट – द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ आर के डालमिया’ हो या फिर मारवाड़ी समाज की सोच और परंपराओं की हकीकत टटोलती ‘मर्चेंट्स ऑफ डेथ’ ।
बेशक नीलिमा ने यह किताब डायरी शैली में लिखी हो, लेकिन ये पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्यों और कस्तूरबा पर किए गए शोध के आधार पर लिखी गई है। मोहनदास के साथ बचपन में शादी हो जाना, पति से उम्र में बड़ी होना, पति को पढ़ाई के लिए विदेश भेज देना और पति के नाम और शोहरत के लिए अपनी इच्छाओं का गला घोंट देना, औरत होने, बच्चों को पालने, घर चलाने से लेकर पति और परंपरागत परिवार की विसंगतियों के दंश झेलना… जाहिर है उस दौर की सामाजिक रूढ़ियों को महसूस करने और एक महिला के दर्द को समझते हुए उसे काल्पनिक तौर पर एक डायरी की शक्ल देना कोई आसान काम नहीं है। और वह भी तब जब मुख्य चरित्र देश और दुनिया में मशहूर हो चुके अहिंसा के पुजारी और राष्ट्रपिता का दर्जा पा चुके बापू की पत्नी का हो। जाहिर है कस्तूरबा के बारे में इतनी बेबाकी के साथ लिखना किसी चुनौती से कम नहीं। साथ ही तमाम कथित गांधीवादियों के बीच विवादों और आलोचनाओं के शिकार होने का खतरा मोल लेने की चुनौती भी कम बड़ी नहीं।
‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’ को ट्रैंकबार प्रेस ने छापा है। किताब एक हिस्से में उस पल का ज़िक्र किया गया है जब मोहनदास ने कस्तूरबा से कहा कि ‘हम अब पति पत्नी के रूप में नहीं रहेंगे. कस्तूरबा समझ गयीं कि उन्हें एक वफादार हिन्दू पत्नी की तरह अपने पति के पदचिन्हों पर चलना पड़ेगा. तब से अपनी संवेदनाओं को हाशिये पर रखकर कस्तूरबा को 62 साल तक एक समर्पित पत्नी, ‘सत्याग्रही’ और त्याग करने वाली महान मां के रूप में रहना पड़ा. वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि एक व्यक्ति देश के बहुसंख्यकों के लिए महात्मा बन गया था. किताब में दावा किया गया है कि गांधी अपने बेटे हरिलाल के लिए एक असहिष्णु पिता थे. उनके स्वच्छंद पुत्र भ्रष्ट आचरण से प्रेरित थे, जिसकी कीमत कस्तूरबा को मां के रूप असीम दुख सहकर चुकानी पड़ी.
जाहिर है नीलिमा डालमिया आधार की यह किताब लगातार अलग अलग मंचों पर चर्चा में रहेगी। बेशक यह अंग्रेजी में है लेकिन इसके हिन्दी और दूसरी भाषाओं में अनुवाद की भी पूरी पूरी गुंजाइश बरकरार है।
June 8, 2017
8:14 pm
One thought on “डायरी के बहाने कस्तूरबा का दर्द…”
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