– अनिल त्रिवेदी
मैं सड़क का एक अच्छा और प्यारा सा गड्ढा हूं। सड़क पर गड्ढे तो और भी हैं। सड़क है तो गड्ढे भी होंगे, लेकिन मैं सबसे थोड़ा अलग दिखता हूं। मेरा दायरा अन्य गड्ढों से विस्तृत है। गहराई भी कुछ ज्यादा है। मैं सड़क के एकदम बीचोबीच हूं, इसलिए आने-जाने वालों का सबसे ज्यादा प्यार मुझे ही मिलता है। साइकिल-बाइक वाले अक्सर मुझे दंडवत करते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी मेरे पास आते ही नरम पड़ जाती हैं और सिर झुकाकर ही गुजरती हैं। इतना सम्मान आखिर किसको बुरा लगेगा सो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है। फूलकर कुप्पा हो जाता हूं।
गड्ढे हर सड़क का सौंदर्य हैं। गड्ढायमान सड़कें एक मजबूत लोकतंत्र की निशानी हैं। संसद में विपक्ष जैसे सरकार के लिए नियंत्रक का काम करता है वैसे ही सड़क के गड्ढे भी चलने वालों की निरंकुश स्पीड पर काबू रखते हैं। गड्डे आपको गठबंधन सरकार की तरह संभलकर चलना सिखाते हैं। इधर सरकार ने बिना गड्ढे वाले कुछ एक्सप्रेसवे तैयार किए हैं, लेकिन उन पर गाड़ियां प्राय: इधर-उधर लुढ़कीं या एकदूसरे से भिड़ीं देखी जा सकती हैं। ऐसे दृश्य देखकर ही गड्ढों की महत्ता का पता चलता है। फिर आप सोचते हैं काश, यहां भी कुछ गड्ढे होते तो संभलकर चलते और दुर्घटना से बच जाते।
मैं जिस सड़क पर पसरा हूं वह शहर की प्रमुख सड़क है। पार्षद से लेकर मंत्रीजी तक सभी मुझे अक्सर देखते हैं। वे नजरें नीचे करके मुस्कराते हुए आहिस्ता से गुजर जाते हैं। गर्व से मेरा सीना 56 इंच का हो जाता है। हाल के चुनाव से कुछ दिन पहले अचानक मुझ पर सभी का ध्यान गया था। एक दिन ठेकेदार मौका मुआयना करने आ धमका। सड़क के छोटे-बड़े सभी गड्ढे सकते में आ गए कि कुछ अनहोनी होने वाली है। मैं भी अंदर तक सहम गया। मैंने हौले से ठेकेदार से पूछ लिया- आज आप इतना गौर से हम पर निगाह क्यों डाल रहे हैं, कहीं कोई संकट आने वाला तो नहीं है? ठेकेदार बोला- चुनाव आ गए हैं। हमें सड़क के सभी गड्ढे तत्काल भरने का निर्देश मिला है। चुनाव के दौरान नेताओं, मंत्रियों की आवाजाही बढ़ेगी। इसलिए जल्द ही सड़क ठीक-ठाक करनी पड़ेगी।
ठेकेदार गड्ढों को आगाह करके चला गया। अचानक एक रात मजदूरों के साथ वह गिट्टी-तारकोल और रोलर लेकर आ गया। सभी गड्ढे समझ गए कि अब उन पर गाज गिरेगी। वैसे तो लोगों की तमाम शिकायतों और बार-बार के धरना-प्रदर्शन के बावजूद गड्ढों की तरफ कोई ध्यान नहीं देता था लेकिन इस बार ठेकेदार रातोंरात सभी गड्ढों का वजूद मिटाने पर उतारू था।
सबसे पहले मैं ही उसकी निगाह में खटका। मैंने हर बार की तरह चाल चली। वह मेरे पास आया तो मैं नतमस्तक हो गया। उससे प्रार्थना की कि हम गड्ढों के साथ पहले की तरह अच्छा बर्ताव करे। उसने कहा कि चिंता की बात नहीं है। चुनाव के कारण सड़क की थोड़ी मरहम पट्टी करनी पड़ रही है। प्रचार में हो सकता है सीएम या पीएम भी पधारें, तो क्या सोचेंगे। बस मतदान तक सड़क चकाचक दिखती रहे। ठेकेदार ने अपना वायदा पूरा किया। चुनाव नतीजे आने के पहले ही सड़क के सभी गड्ढे खिलकर सामने आ गए। मैं भी पहले की तरह ही हृष्ट-पुष्ट दिखने लगा।
मेंढकों के साथ-साथ सड़क के गड्ढों को भी मानसून का बेसब्री से इंतजार था। बारिश शुरू हुई तो गड्ढों में नई जान आ गई। बारिश और सड़क के गड्डों का गहरा नाता है। बादलों को देखते ही गड्ढे खुशी से झूमने लगते हैं। बारिश होते ही पानी सबसे पहले गड्ढों को गले लगाने दौड़ता है। गड्ढे भी लगता है जैसे बरसों से प्यासे हों। बांहें पसारकर बारिश के पानी का स्वागत करते हैं और उसमें खो जाते हैं।
कई दिन बाद आज जमकर बारिश हुई। छोटे-बड़े सभी गड्ढे तृप्त हो गए। वे जलमग्न होकर खुशी मना रहे हैं। मेरा भी मल्हार गाने का मन हो आया। मैंने तान छेड़ी, बाकी गड्ढों ने भी साथ दिया। फिर सड़क पर सभी गड्ढों की खिलखिलाहट गूंजने लगी। बारिश भी खुशी से नाच उठी। थोड़ी ही देर में गड्ढे क्या पूरी सड़क ही डूब गई। किनारे का एक गड्ढा खुशी से ताली बजा रहा था कि एक साइकिल वाला उसके ऊपर से गुजरा और धड़ाम से गिर गया। बाकी गड्ढों की हंसी फूट पड़ी। तब तक एक बाइक सवार दूसरे गड्डे में गुड़ीमुड़ी हो गया। गड्ढे आनंदित हो गए। एक स्कूटी वाली लड़की ने होशियारी दिखाई तो वह किनारे के बजाय बीचोबीच चली आ रही थी। मेरी ओर देखकर दूसरे गड्ढे चीखे-संभालना स्कूटी को। जब तक मैं समझता तब तक वह स्कूटी समेत फचाक से आकर पलट पड़ी। मेरी हंसी निकलने वाली थी लेकिन मैं सिर्फ मुस्कराकर रह गया।
थोड़ी देर में एक अच्छी सी कार मुझे आती दिखी। मैं खुश हुआ कि अब आएगा मजा। बारिश में कार वाले खुद को ट्रंप से कम नहीं समझते हैं। पानी को चीरते हुए कार मेरे ऊपर से धड़धड़ाकर गुजरने ही वाली थी कि उसका एक पहिया मेरी पकड़ में आ गया। कार थम गई और हूं-हूं करके हांफने लगी। तभी पास वाले एक गड्ढे ने इशारा किया कि कार को ध्यान से देखो। इसमें तो मंत्री जी ही बैठे हैं। मैं सकपका गया। मन ही मन सोचा गलती हो गई। मैंने कार के पहिये पर पकड़ ढीली की और उसे जाने दिया। ज्यादा रोकना ठीक नहीं था। क्या पता गुस्से में कल फिर ठेकेदार को रोलर लेकर भिजवा दें।
थोड़ी देर बाद सभी गड्ढे मगन होकर बारिश में नहाते हुए फिर हंसी में डूब गए। गनीमत थी कि उनके कहकहे बारिश के अलावा कोई और नहीं सुन पा रहा था। उधर ठेकेदार और अधिकारी भी ठहाके लगाने में मगन थे।
अनिल त्रिवेदी
वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार
Posted Date:
August 5, 2024
10:31 pm
Tags:
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