भगदड़ नहीं यह तो ‘भागदौड़’ थी…
कुंभ अब सामान्य कुंभ नहीं रहा.. महासमुद्र की तरह महाकुंभ हो गया है… वैसे तो फिल्मों में अक्सर कुंभ के मेले में बिछड़ने के किस्से सुने जाते रहे… रही भगदड़ की बात तो भला वो तो सियासत की भाषा में होती ही रहती है.. जहां भीड़ है वहां भगदड़ है और जहां भगदड़ है वहां मरना, गुम होना, डूबना, उतराना तो आम बात है… मंत्री संतरी तो यही कहते हैं भाई कि जहां इतनी भीड़ होगी, जहां इतना बड़ा आयोजन होगा, वहां तो ये सब छोटी मोटी घटनाएं आम बात हैं, परेशान क्या होना, कोई कहता है कि कुंभ में मरने वालों को मोक्ष मिल गया… वाह रे दुनिया, वाह रे सियासत… मोक्ष पाना है तो चलिए कुंभ की भगदड़ में और भगवान के प्यारे हो जाइए…बहरहाल…इस भगदड़ पर चूंचूं अंकल की जांच रिपोर्ट आ गई है… क्या है इस जांच रिपोर्ट में सुना रहे हैं जाने माने व्यंग्यकार अनिल त्रिवेदी
महाकुंभ में भगदड़ की खबर मिलने के बाद से चूंचूं अंकल बेचैन हैं। वे घर में भीतर से बाहर और बाहर से भीतर तेज कदमताल कर रहे हैं। अचानक टीवी खोलते हैं फिर बंद कर देते हैं। अखबार के पन्ने तेजी से पलटते हैं फिर एक तरफ पटक देते हैं। जब वे ऐसा करते हैं तो घरवाले तत्काल समझ जाते हैं कि कोई घटना उन्हें चिंतित कर रही है। अंकल की ताजा हालत देखकर सब सतर्क हो गए और बिना जांचे परखे पहले उन्हें बीपी की गोली खिला दी। फिर मौका देखकर आहिस्ते से उनसे बेचैनी की वजह पूछी।
उन्होंने अपनी चिंता प्रकट की- महाकुंभ में सरकार के इतने तगड़े इंतजाम के बाद भी भगदड़ मच गई। आखिर ऐसा कैसे हो गया? आंटी ने समझाने की कोशिश की- हो सकता है भगदड़ की कोई छोटी मोटी घटना हुई हो। महाकुंभ में करोड़ों की भीड़ जमा है तो कुछ अनहोनी तो हो ही सकती है। तुम्हें ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन चूंचूं अंकल की चिंता कतई कम नहीं हो रही है। उनका दिल महाकुंभ में भगदड़ की बात मानने को तैयार नहीं है। लग रहा है जरूर कुछ गड़बड़ है।
 
चूंचूं अंकल अपने इटावा के हैं। यानी वही जिला जिसने दो-दो मुख्यमंत्री दिए हैं। उम्मीदें और भी हैं। वे होमगार्ड के एक निष्ठावान और सम्मानित जवान रहे हैं। उन्होंने उस जमाने में देश की सेवा की थी जब होमगार्ड का डंडा एसपी की रिवाल्वर से ज्यादा रौब रखता था। उन्हें उनकी महत्वपूर्ण सेवा के लिए भारत रत्न जैसा कोई बड़ा सम्मान मिलना चाहिए था लेकिन वे बिना कोई पदक लिए ही रिटायर हो लिए। उनमें ऊर्जा और ठसक पहले जैसी ही है। उन्हें जब जोश कुछ ठंडा पड़ता दिखता है तो वे चंबल में डुबकी लगाकर तरोताजा हो जाते हैं।
अब महाकुंभ में भगदड़ का मामला उन्हें रह रहकर चिंतित किए जा रहा था। अचानक वे उठे और बोले- मैं संगम जा रहा हूं, भगदड़ की जांच करने। पूरे मामले की गंभीरता से जांच बहुत जरूरी है। आंटी ने फिर समझाया- तुम्हें इससे क्या लेना-देना, चुप होकर घर में बैठो। जांच का काम सरकार का है, वह गंभीरता से कराए या मजाक में। तुम महाकुंभ नहाने तो गए नहीं अब बेमतलब टांग डुबो रहे हो। लेकिन अंकल जिद पर अड़ गए। होमगार्ड की सेवा में रहते उन्होंने बहुत भगदड़ देखी हैं। कइयों की जांच की है। वे खुद को भगदड़ जांच का विशेषज्ञ मानते हैं। ऐसे में वे घर बैठे रहें यह देशप्रेम नहीं।
फिर चूंचूं अंकल महाकुंभ पहुंच गए, अपने स्तर पर जांच करने। उन्होंने पूरे पांच दिन लगा दिए जांच में। भगदड़ के पीड़ितों से बात की और सुरक्षा में लगे जवानों-अफसरों से भी। सबूतों की तलाश में तमाम कैमरों की रिकार्डिंग भी खंगाली और कहीं-कहीं रेत भी छानी। अखाड़ों के साधु-संतों से बातचीत में सुराग टटोले। वे मोनालिसा और आईआईटीएन बाबा का बयान भी लेना चाहते थे लेकिन सफलता नहीं मिली। आखिर उन्होंने जांच पूरी कर ली है। उनका दावा है कि जांच रिपोर्ट नीर-क्षीर विवेक से सराबोर है।
ये हैं चूंचूं अंकल की जांच रिपोर्ट के कुछ अहम बिंदु-
-जिसे भगदड़ बताया जा रहा है वह असल में भक्तों की भीड़ की भागदौड़ थी। यही भागदौड़ जब तेज हो गई तो कुछ-कुछ भगदड़ जैसा लगने लगा था। इसी में कुछ हत हो गए और कुछ आहत। अपने देश में ऐसी घटनाएं आमतौर पर होती रहती हैं।
-सुरक्षा में लगे अधिकारी मानकर चल रहे थे कि भगदड़ जब होगी तो दिन में ही होगी। इससे निपटने की तैयारी भी उनकी इसी हिसाब से थी इसलिए वे रात में निश्चिंत होकर सो रहे थे। लेकिन उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि भगदड़ रात में ही उन्हें गच्चा दे जाएगी।
-भगदड़ के वक्त हजारों लोग वहां सो रहे थे। ये भक्त संगम में आस्था की डुबकी लगाने गए थे या नींद पूरी करने? अरे, डुबकी लगाते और खिसक लेते। अगर वहां सोते नहीं तो भगदड़ उनका क्या बिगाड़ लेती।
-वहां लगे कैमरे और ड्रोन महाकुंभ में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या गिनने में लगे थे इसलिए भगदड़ में कितने गिरे, कितने मरे यह आंकड़ा पता नहीं चल पाया। सरकार भी शाम तक ही हिसाब-किताब निकलवा पाई। इसलिए सरकार के आंकड़े पर भरोसा करना चाहिए।
-महाकुंभ में चिमटा वाले साधुओं की कमी नहीं थी। मेरा मानना है कि श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अगर जगह-जगह कुछ चिमटाधारी साधुओं को तैनात कर दिया जाता तो भगदड़ नहीं हो सकती थी।
-भविष्य में जब कभी ऐसे आयोजन हों तो श्रद्धालु-भक्तों को अपने रिस्क पर ही आना-जाना चाहिए। आखिर सरकार के पास और भी काम हैं। सुरक्षा में तैनात जवानों को वीआईपी ड्यूटी भी देखनी होती है या आपको ही संभालते रहेंगे।
चूंचूं अंकल की जांच रिपोर्ट से मेरे मुहल्ले के लोग पूरी तरह सहमत हैं। आप हैं कि नहीं बताइएगा जरूर।
अनिल त्रिवेदी
वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार
Posted Date:

February 6, 2025

11:37 pm Tags: , ,

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