लीजिए साहब, यह रहा मेरा माफ़ीनामा…
नेताओं का माफी मांगना, वोट की खातिर जनता के आगे नतमस्तक हो जाना, खुद को निरीह और वक्त का मारा बता कर रोना और सहानुभूति लेना आम बात है… लेकिन जब कोई ‘सर्वशक्तिशाली विश्वगुरु’ या परालौकिक प्राणी की जुबान पर माफी जैसा शब्द आ जाए तो सोचिए वह किस मानसिक द्वंद्व और मजबूरी का शिकार होगा.. जिसके अहंकार की मिसालें दी जाती हों, जिसे ईश्वर का अवतार साबित किया जाता रहा हो, वह गांधी जी बन जाए, उसके भीतर का इंसान जाग जाए…तो बात कुछ हजम होती नहीं.. लेकिन साहब माफी तो माफी है.. हमारे लोगों का दिल बहुत बड़ा है और माफ़ कर देना हमारी संस्कृति है…नेताजी को अपनी माफी पर भरोसा है… इस बार नेता जी की माफी पर हमारे वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार अनिल त्रिवेदी की तीखी नज़र 
मैंने अब तक कभी माफी नहीं मांगी। इसकी दो वजह रहीं। पहली यह कि मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैंने कोई गलती की है। जब कोई गलती ही नहीं हुई तो माफी मांगने का क्या तुक। दूसरी यह कि अगर जाने-अनजाने कोई गलती हो भी गई तो माफी मांगने का क्या मतलब। अगला अगर चाहेगा तो बिना मांगे ही माफ कर देगा। उसका मूड रत्ती भर भी माफ करने का नहीं हुआ तो हम उसका क्या बिगाड़ लेंगे। माफी मांगने का रिवाज मुझे कतई पसंद नहीं रहा। इसीलिए मैंने न खुद कभी माफी मांगी न किसी दूसरे से बड़ी गलती के लिए भी सॉरी बोलने को कहा।
अब मुझे प्रतीत होता है कि मेरा यह रवैया उचित नहीं था। इसलिए सबसे पहले मैं अब तक के अपने अनुचित व्यवहार के लिए माफी मांगता हूं। जब मैं गुजरे दिनों पर नजर डालता हूं तो पाता हूं कि मैंने कई गलतियां की हैं। मुझे हर गलती के बाद तत्काल माफी मांगनी चाहिए थी लेकिन मैं तब यह साहस नहीं कर सका। मैं अब इसके लिए शत-प्रतिशत क्षमाप्रार्थी हूं। मुझे माफी मांगने में देर अवश्य हो गई है पर उम्मीद है कि सभी लोग मुझे माफ करने की कृपा करेंगे। मेरा इरादा कभी गलती करने का नहीं रहा इसलिए मुझे माफ करने में किसी को भी कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।
देर से ही सही पर मुझे अब यह अहसास हो गया है कि माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। दरअसल माफी मांगना बड़प्पन का प्रमुख लक्षण है। जब माफी मांगने में बड़प्पन झलकता हो तो मैं छुटपन का काम क्यों करूं। इसलिए मैंने बिना शर्त क्षमा मांगने का निर्णय लिया है।
सबसे पहले मैं अपने उन दोस्तों, परिचितों, निकट और दूर के संबंधियों से माफी चाहता हूं जिनकी उन्नति और सुख-समृद्धि से मुझे गहरी जलन है। दूसरों से ईर्ष्या करना हर किसी का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी अधिकार के तहत मैं लगभग सभी के प्रति घनघोर ईर्ष्यालु हूं। मेरी हमेशा कामना है कि मैं भले ही दुख के सागर में डूबा रहूं लेकिन दूसरे को छटांक भर भी खुशी न मिले। अब इसके लिए मुझे माफ किया जाए। मैं प्रयास करूंगा कि मेरी जिंदगी मजे में कटे बाकी की वे खुद जानें।
मैं पासपोर्ट बनवाने पासपोर्ट ऑफिस गया था। एक दलाल महोदय ने पकड़ लिया, बोले- बिना नंबर के अंदर पहुंचा दूंगा। दिन भर का काम घंटे भर में हो जाएगा। केवल पांच सौ रुपये देने होंगे। मैंने ईमानदारी दिखाई और उसे साफ मना कर दिया। एक घंटे के काम में दिनभर लगा दिया। तीन दिन बाद पुलिस वेरिफिकेशन के लिए थाने से बुलावा आया। थाने जाकर जरूरी दस्तावेज जमा किए लेकिन दरोगा ने ललचाई नजरों से इशारा किया, मैंने इनकार कर दिया। अब पासपोर्ट का क्या होगा पता नहीं। कुर्सी में एक जोरदार लात मारने की इच्छा हुई लेकिन हिम्मत न कर पाने के लिए मैं माफी मांगता हूं।
रोज-रोज सुनते हैं कि देश विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है। सड़कें बन रही हैं, हाईवे लगातार हाई होते जा रहे हैं, पुलों का निर्माण धड़ाधड़ हो रहा है। इस काम में इंजीनियर, ठेकेदार और प्रशासन दिनरात लगे हुए हैं। छह महीने में ही सड़कें टूट या बह जाती हैं, हाईवे धंसक रहे हैं और करोड़ों से बने पुल नदियों में समा जाते हैं। भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए सरकार 77 साल से जुटी हुई है लेकिन जड़ तो दूर भ्रष्टाचार की एक फुनगी भी अब तक नहीं टूट सकी। एक संवेदनशील मतदाता होने के नाते मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूं और चाहता हूं कि आप मुझे क्षमा कर दें।
हिमाचल और उत्तराखंड में पहाड़ दरक रहे हैं। देश के आधे हिस्से में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है। तमाम शहर जलमग्न हैं। हजारों घर, इंसान, जानवर तबाह हो गए हैं। हम आजादी के बाद से ही बाढ़ से निपटने के पुख्ता इंतजाम करने में लगे हैं लेकिन रत्ती भर भी कामयाबी नहीं मिल सकी। देश की कृपालु जनता हमें इसके लिए माफ करे।
चोरी, डकैती, लूट और हत्या जैसे अपराध तो बहुत पहले से आम बात हैं इसलिए मैं इन घटनाओं के लिए माफी मांगने को तैयार नहीं हूं। दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सरकार ने यह सोचकर कानून सख्त किया था कि ऐसी घटनाओं में कुछ कमी आएगी। लेकिन लगता है अपराधी और निर्भय हो गए हैं। अयोध्या और कन्नौज में मासूमों से हुई दरिंदगी के मामले इसके सबूत हैं। उन्नाव और हाथरस में भी ऐसी घटनाएं हुई थीं। इंसाफ न मिलने और पुलिस के रवैये से आहत होकर कुछ बेटियों ने तो जान भी दे दी। तब माफी मांगने की सोच रहा था लेकिन चूक गया। अब मैं भरे दिल से माफी मांगता हूं।
मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज से कांपते हैं। अब कोलकाता के एक बड़े मेडिकल कॉलेज में दरिंदगी के बाद महिला डॉक्टर की हत्या ने यह खौफ दुगुना कर दिया है। इस पर चल रहे सियासी बवाल के बीच बंगाल के दो और अस्पतालों में ऐसी ही घटनाएं हो गईं। वहां की पुलिस और सरकार तो पता नहीं माफी मांगेगी या नहीं लेकिन उनकी ओर से मैं दंडवत हूं। आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के बाद भी हम ऐसी व्यवस्था और समाज नहीं बना पाए जहां बेटियों को आजादी और सुरक्षा नसीब होती। नए कानून बन गए हैं लेकिन पुलिस व्यवस्था पहले जैसी ही लुंजपुंज है। सो कृपया मुझे क्षमा करें।
मेरी माफी मांगने के और भी कई कारण होंगे। याद आने पर उनके लिए भी क्षमा मांग लूंगा। मेरा निवेदन है कि भविष्य में मुझसे ऐसी ही गलतियां होती रहेंगी तो मेरा अग्रिम माफीनामा स्वीकार करें।
अनिल त्रिवेदी
वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार
Posted Date:

September 3, 2024

8:21 am

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