रोहित वेमुला की आत्महत्या और उसके बाद उठे जनाक्रोश ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। दलित राजनीति के नाम पर वेमुला की खुदकुशी एक बड़ा मुद्दा बनी लेकिन इस घटना के पीछे के सच को तलाशने की कोशिश सही तरीके से कभी नहीं हुई। इस घटना के चार साल बाद फिल्मकार दीपा धनराज ने इस पूरी घटना पर और इसके तमाम पहलुओं पर फिल्म बनाई – वी हैव नॉट कम हियर टू डाई ।
जन संस्कृति मंच ने ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ की पहली कड़ी के तौर पर इस फिल्म का प्रदर्शन लखनऊ के लोहिया भवन में किया। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को 17 जनवरी को रोहित वेमुला की चौथी पुण्यतिथि के मौके पर रिलीज किया गया था। जन संस्कृति मंच के साथ प्रगतिशील महिला एसोसिएशन और आइसा ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें शहर के तमाम जाने माने बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया।
यह फिल्म उन स्थितियों और परिस्थितियों को सामने लाती हैं जिसमें रोहित वेमुला को आत्महत्या करने को बाध्य किया गया। फिल्म उन घटनाओं को बड़े तार्किक व यथार्थपरक तरीके से सामने लाती है जो रोहित की हत्या के बाद घटित हुई। हैदराबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति, केन्द्रीय सरकार के मंत्री, प्रशासन, संघ परिवार, एबीवीपी व भाजपा की साठगांठ और साजिश को फिल्म के माध्यम से सामने लाने की कोशिश की गई है। प्रशासन लगातार झूठ गढ़ता रहा तथा यह साबित करने में लगा रहा कि इसके लिए रोहित जिम्मेदार है और उसे जो दलित कहा जा रहा है, वह वास्तव में दलित समुदाय से नहीं आता। फिल्म सत्ता के इस सांठगांठ और उसकी साजिश को बेनकाब करती है और पूरी घटना के सच को सामने लाती है।
रोहित एक लेखक बनना चाहता है, वह वैज्ञानिक बनना चाहता है, वह सपने देखता है। पर उसके सपने की हत्या कर दी जाती है। वह मरना नहीं जीना चाहता है, पर हालात ऐसे बनाये गये जहां उसने मौत का रास्ता चुना। अर्थात व्यवस्था ने उसे मारा। उसकी हत्या की गयी, सांस्थानिक हत्या। इसीलिए देश के छात्रों और नौजवानों ने उसे शहीद का दर्जा दिया। वे उस व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए। न सिर्फ हैदराबाद बल्कि कैम्पसों से लेकर सड़कों तक एक जुझारू संघर्ष उठ खड़ा हुआ। आंदोलन को सत्ता के दमन का सामना करना पड़ा। रोहित की मां को यदि सबमें अपना रोहित नजर आता है तो अस्वाभाविक नहीं।
कितनी जटिल और प्रतिकूल हालात हैं जिसमें समाज के दलित जातियों के नौजवान उच्च शिक्षा तक पहुंच पाते हैं। कहने को तो भारत का संविधान सभी को बराबरी का अधिकार देता है लेकिन अन्दर खाते बहुत गहरी खाई है और तब और गहरी हो जाती है जब दलित और कमजोर जातियों के नौजवान बराबरी पर पहुंचने लगते हैं, अपने अधिकार की बात करते हैं।
करीब दो घंटे की यह फिल्म अपनी लय को बरकारार रखती है। फिल्म प्रदर्शन से पहले ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ के गीतेश ने सभी का स्वागत किया और कहा कि लखनऊ मे ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ को रोहित वेमुला पर बनी इस फिल्म से शुरू कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि यह सिलसिला आगे बढ़े। जल्दी ही हम लखनऊ में फिल्म समारोह भी करेंगे। उन्होंने कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में जो रोहित के साथ घटित हुआ, आज कैम्पसों में वैसा ही हो रहा है। छात्रों के जनतांत्रिक अधिकारों को दमित किया जा रहा है। आइसा के नितीन राज का कहना था कि शैक्षिक संस्थानों में ब्राहम्णवादी व मनुवादी सोच हावी है। यह सामान्य स्थिति में बहुत ज्यादा नहीं दिखता लेकिन जब दलित छात्र अपने अधिकारों की बात करते हैं, दावेदारी जताते हैं और अपने साथ होने वाले भेदभाव का विरोध करते हैं, उन्हें निशाना बनाया जाता है। उन पर हमले बढ़ जाते हैं।
इस मौके पर भगवान स्वरूप कटियार ने रोहित वेमुला पर लिखी कविता ‘टूटना एक तारे का’ सुनाई। कविता में वे कहते है ‘तुम्हारी शहादत की धमक से/हुकूमत इतनी बेचैन हो गयी/कि शंहंशाह को भी रोने का अभिनय करना पड़ा/जबकि शहंशाह कभी रोया नहीं करते’। और आगे वे कहते हैं ‘इस संभावनाहीन समय में/तुम एक बड़ी संभावना थे रोहित/एक वैज्ञानिक, लेखक और एक यो़द्धा के बीज/फूट रहे थे तुम्हारे अन्दर’।
यह कार्यक्रम हिन्दी के मशहूर कथाकार अमरकान्त की स्मृति को समर्पित था। ज्ञात हो कि 17 फरवरी को ही उनकी पांचवीं पुण्यतिथि थी। उन्हें याद करते हुए जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने कहा कि अमरकान्त प्रेमचंद की यथार्थवादी परम्परा को आगे बढ़ाते हैं। वे ‘नयी कहानी’ आंदोलन की त्रयी हैं जिसमें मार्कण्डेय और शेखर जोशी शामिल हैं। इनका कथा साहित्य आम आदमी की जिन्दगी, संघर्ष और जिजीविषा का सृजनात्मक उदाहरण है।
इस मौके पर एपवा लखनऊ की संयोजक मीना सिंह, संदीप पाण्डेय, सुधाकर यादव, कृष्णा अधिकारी, रमेश सिंह सेंगर, रूचि दीक्षित, विमल किशोर, कलीम खान, श्याम अंकुरम, आर के सिन्हा, मधुसूदन मगन, अनिल कुमार, प्रमोद प्रसाद, शिवा रजवार, कमला देवी, विश्वास यादव, अतुल, ओम प्रकाश, आर बी सिंह, राजीव गुप्ता, राम किशोर शर्मा आदि उपस्थित थे।
(लखनऊ से कौशल किशोर की रिपोर्ट)
Posted Date:February 20, 2019
7:27 pm Tags: कौशल किशोर, जन संस्कृति मंच, रोहित वेमुला, एपवा, आइसा, प्रतिरोध का सिनेमा, वी हैव नॉट कम हियर टू डाई, दीपा धनराज