संस्कृति और कला के क्षेत्र में खास दखल रखने वाले जाने माने पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी का मौजूदा दौर की पत्रकारिता में कला-संस्कृति को एक हद तक बचाए रखने में अहम भूमिका है। जनसत्ता समेत तमाम अखबारों में नियमित रूप से इस क्षेत्र में लिखते हुए रवीन्द्र त्रिपाठी ने इस यात्रा को बदस्तूर जारी रखा है। अखबार के साथ साथ खबरिया चैनलों में भी अपने लेखन के ज़रिए रवीन्द्र त्रिपाठी ने कला-संस्कृति को जीवित रखने की कोशिश की है। ‘7 रंग ‘के पाठकों के लिए अब हम नियमित रूप से रवीन्द्र त्रिपाठी के आलेख ला रहे हैं। सबसे पहली कड़ी में पढ़िए बच्चों के रंगमंच के लिए समर्पित रहीं जानी मानी रंगकर्मी रेखा जैन के बारे में। 2010 में रेखा जी ने अपनी जीवन यात्रा को विराम दिया। इसके नौ साल बाद प्रकाशित हुई उनकी दो किताबों ने एक बार फिर बाल रंगमंच और रेखा जैन को आज के संदर्भ में जीवंत कर दिया।
एक महिला रंगकर्मी की जीवन यात्रा
हिंदी रंगमंच से जुड़े कई मुद्दे रहे हैं जो समय समय पर उठते रहे हैं और कुछ ऐसे भी रहे हों जो अब तक नही उठे थे या अब धीरे धीरे उठ रहे हैं। इनमें एक है हिंदी में सक्रिय रही महिला रंगकर्मियों का जीवन और उनकी कलायात्रा। सूर्य प्रकाशन मंदिर बीकानेर से प्रकाशित रेखा जैन (1924-2010) की दो कृतियां `यादघर’ और `बच्चों की दुनिया’ इस प्रसंग में दो महत्वपूर्ण प्रयास हैं। `यादघर’ रेखा जैन की संस्मरणात्मक जीवन यात्रा है और `बच्चों की दुनिया’ उनके लिखे 31 नाटकों का संकलन है।
रेखा जैन हिंदी रंगमंच के एक महत्त्वपूर्ण रंग-परिवार से जुड़ी रहीं। उनके पति नेमिचंद्र जैन हिंदी के अति महत्त्वपूर्ण रंग आलोचक, साहित्य समीक्षक और कवि रहे (संयोग से 2019 उनका जन्मसदी वर्ष भी है)। पर रेखा जैन की अलग से शख्सियत रही। खासकर बाल रंगमंच के क्षेत्र में। जिस `उमंग’ संस्था की शुरुआत उन्होंने की उसनें दिल्ली के बाल रंगमंच में एक ऐतिहासिक भूमिका अदा की। अक्सर रंगमंच की चर्चा के क्रम में बाल-रंगमंच पर ध्यान नहीं दिया जाता है या कम दिया जाता है। खासकर हिदी भाषी समाज में। पर बाल-रंगमंच वह आधारशिला है जिस पर रंगमंच का भवन खड़ा होता है। बाल-रंगमंच समाज में रंग-संस्कार पैदा करता है और बच्चों के माता-पिता को भी नाटक के प्रति उत्सुक बनाता है। इस लिहाज से रेखा जैन की एक बड़ी भूमिका है। उन्होंने नाटक लिखे, नाटकों के लिए गीत लिखे और उनको निर्देशित भी किया। इस दृष्टि से वे एक बहु-प्रतिभा की धनी रंगकर्मी थीं। और उनके लिखे नाटकों का विषय भी व्यापक रहा। भारतींय स्वाधीनता संग्राम और प्रकृति प्रेम से लेकर गणित की गुत्थियों तक। रगमंच ज्ञानात्मक भी होता है और इसकी पहचान करनेवालों में रेखा जैन भी थी।
पर उनकी संस्मरणात्मक जीवनी `यादघर’ सिर्फ एक रंगकर्मी की जीवनगाथा भर नहीं है। ये एक ऐसी कृति है जिसका रंगमंचीय महत्त्व तो है ही, समाजशात्रीय अहमियत भी है। पारंपरिक भारतीय परिवार में लड़कियो और औरतों की जिंदगी कैसी रही है, उन पर किस तरह के बंधन रहे हैं उस सबका वृतांत भी यहां हैं। पारंपरिक उत्तर भारतीय समाज में संयुक्त परिवार की कई खूबियां रही हैं पर उसने औऱतों पर कई बंधन भी बांधे। इनमें एक नृत्य को लेकर रहा है। सेंट्रल ट्रूप (अविभाजित कम्यूनिस्ट पार्टी की सांस्कृतिक टीम) में सक्रियता के दौर में जब नेमि जी ने रेखा जी नृत्य सीखने को कहा तो वे अपने को तैयार नही कर सकीं। हां, सीखना शुरू किया लेकिन जारी नहीं रख सकीं। इसलिए कि एक बार पिता ने घर में नृत्य करते देख लिया और काफी डांट पिलाई। वह डांट ही एक मानसिक अवरोध बन गया। ये और ऐसे कुछ प्रसंग उत्तर भारतीय समाज में महिलाओ की कलात्मक सक्रियता में राह में खड़ी बाधाओं की तऱफ संकेत करते हे।
रेखा जैन की नेमिजी शादी से तब हुई थी जब सिर्फ तेरह साल की थीं। पंद्रह साल की उम्र मे वे मां बन गई। यानी पत्नी और मां के रूप मे अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए वे कलासाधना करती रहीं। कला की दुनिया मे अपने छल-प्रपंच भी है। यहां भी गलाकाटू दांवपेंच है। ये सब भी इस पुस्तक में है। एक बार रेखा जैन `गोदान’ पर आधारित नाटक में धनिया की भूमिका करनेवाली थीं। रिहर्सल शुरू भी हो गए। फिर अचानक से उनका पत्ता कट गया। काटा किसने? शीला भाटिया ने जो खुद उस नाटक का निर्देशन कर रही थीं। और रेखा जी को उस भूमिका से बाहर करने के बाद धनिया की भूमिका खुद उन्होंने की।
`यादघर’ की स्मृतियां सिर्फ रेखा जी के परिवार और अपने रंगमंचीय कर्म से जुड़ी नहीं है। हिंदी साहित्य और भारतीय रंगमंच के कई शख्सियतों का जिक्र और उनसे जुड़ी बातें भी यहां हैं। जैसे भारत भूषण अग्रवाल, जगदीश चंद्र माथुर, अज्ञेय, बव कारंत, हबीव तनवीर जैसों को लेकर में कई यादें हैं।
(‘राष्ट्रीय सहारा’ से साभार)
Posted Date:April 22, 2019
6:17 pm Tags: Ravindra Tripathi, Rekha Jain, Children Theatre, Nemi Chandra Jain, Bachchcon ki duniyaComments are closed.
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