रामनिहाल गुंजन का निधन जन सांस्कृतिक आंदोलन के लिए बड़ा धक्का
जाने-माने मार्क्सवादी आलोचक और साहित्यकार रामनिहाल गुंजन का उनके निवास आरा (भोजपुर, बिहार) में 18 अप्रैल की रात निधन हो गया। उनकी उम्र 86 के आसपास थी। इस उम्र में भी वे जिस तरह सक्रिय थे, वह बेमिसाल है। वे कई किताबों पर काम कर रहे थे। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे थे। आलोचना के साथ-साथ उन्होंने कविताएं भी लिखीं और अनुवाद व संपादन भी किया। साहित्य समाज में अपने मृदुल स्वभाव और व्यवहार की वजह से वे काफी प्रतिष्ठित थे। उनके मित्र व चाहने वाले अच्छा-खासा हैं। अचानक चले जाने से साहित्य समाज की दुनिया को गहरा आघात लगा है।
राम निहाल गुंजन का जन्म 9 नवंबर 1936 को आरा (भोजपुर, बिहार) के एक सामान्य परिवार में हुआ था। आरंभिक व उच्चतर शिक्षा उन्होंने स्थानीय शिक्षण संस्थानों में ग्रहण की। उनकी पहली रचना कविता थी जिसका शीर्षक था ‘कवि’। यह स्थानीय मासिक पत्र ‘नागरिक’ में 1955 में छपी। लघु पत्रिका आंदोलन के दौरान 1970 के आसपास ‘विचार’ नाम से उन्होंने पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया। 2001 से 2007 तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी की शोध पत्रिका ‘नया मानदंड’ के 7 अंकों का संपादन भी किया।
रामनिहाल गुंजन ने कविताएं भी लिखीं। उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। वे हैं – ‘बच्चे जो कविता के बाहर हैं’, ‘इस संकट काल में’, ‘समयांतर तथा अन्य कविताएं’ तथा ‘समय के शब्द’। उन्होंने कविता की विभिन्न शैलियों में रचनाएं की। उनकी मूल पहचान मार्क्सवादी आलोचक और साहित्य चिंतक की रही है। 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन ने जिस क्रांतिकारी वैचारिकी को आधार दिया था उससे रामनिहाल गुंजन का शुरू से लेकर जीवन के अंतिम समय तक जुड़ाव रहा। इस वैचारिकी ने उन्हें मजबूत बनाया था तभी तो पारिवारिक विपत्तियों का भी उन्होंने चट्टान की तरह अडिग रहकर सामना किया। करीब दर्जन के आसपास उनकी आलोचनात्मक कृतियां हैं। वे हैं : ‘रचना और परंपरा’, ‘राहुल सांकृत्यायन : व्यक्ति और विचार’, ‘निराला : आत्मसंघर्ष और दृष्टि’, ‘विश्व कविता की क्रांतिकारी विरासत’, ‘शमशेर नागार्जुन मुक्तिबोध’, ‘प्रखर आलोचक रामविलास शर्मा’, ‘हिंदी कविता का जनतंत्र’, ‘कविता और संस्कृति’, ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिंदी नवजागरण’ आदि। इन दिनों वे प्रगतिशील आलोचक अलख नारायण के निबंधों के संकलन तथा गजल एकादश का संपादन कर रहे थे।
राम निहाल गुंजन विश्व साहित्य के गंभीर अध्येता थे। उन्होंने हिंदी के पाठकों तक विश्व के प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचकों के विचारों को पहुंचाने का काम किया। जार्ज थामसन की पुस्तक ‘मार्क्सिज्म एंड पोएट्री’ का हिंदी अनुवाद ‘मार्क्सवाद और कविता’ के साथ एंटोनियो ग्राम्शी के चुने हुए निबंधों का संग्रह ‘साहित्य, संस्कृति और विचारधारा’ का अनुवाद व संपादन किया। गुंजन जी के साहित्य के मूल में मानव जीवन का संघर्ष, उसकी गरिमा तथा बेहतर की आकांक्षा है। उनकी मान्यता रही कि लेखक के लिए जनवादी विचारों तथा जनजीवन के साथ गहरे जुड़ाव का होना आवश्यक है। लेखन के साथ-साथ उनकी स्वयं की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां गतिविधियों में सक्रियता थी। वे जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। वे काफी समय तक मंच की बिहार इकाई के अध्यक्ष रहे। कुछ साल पहले आरा, जो उनकी कर्मभूमि रही है, में जन संस्कृति मंच की ओर से वहां की नागरी प्रचारिणी सभा में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इसमें बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों से साहित्यकार जुटे और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा की।
राम निहाल गुंजन जैसे वरिष्ठ प्रतिबद्ध रचनाकार का असमय निधन जन सांस्कृतिक आंदोलन के लिए बड़ा धक्का है। उनका योगदान अप्रतिम है।
♦ कौशल किशोर
कार्यकारी अध्यक्ष, जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश
Posted Date:
April 19, 2022
8:54 pm
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