रघुवीर सहाय का दौर और आज की पत्रकारिता

    

वो दौर ही कुछ और था… हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य का गहरा रिश्ता हुआ करता था…पत्र पत्रिकाओं के संपादक भी आम तौर पर वही होते थे जिनकी दखल साहित्य में होती थी.. तब अखबार मालिकों के लिए अखबार या पत्र पत्रिकाएं सिर्फ कमाई का ज़रिया नहीं पत्रकारिता, साहित्य और सृजन का एक असरदार मंच हुआ करती थी। उसी दौर में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे संपादक होते थे जिनका गहरा रिश्ता साहित्य से होता था।

उसी कड़ी में आज हम याद कर रहे हैं रघुवीर सहाय को। लखनऊ में 9 दिसंबर 1929 को जन्मे रघुवीर सहाय ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 से एमए किया, लेकिन बीए करने के बाद से ही उन्होंने उस वक्त के मशहूर अखबार नवजीवन में काम करना शुरु कर दिया। सोलह सत्रह साल की उम्र से ही उन्होंने कविताएं औऱ कहानियां लिखनी शुरु कर दी थीं। एमए करने के बाद दिल्ली आए और प्रतीक पत्रिका में काम करने के बाद आकाशवाणी के समाचार विभाग में नौकरी करने लगे।

उनकी कविताएं तमाम पत्र पत्रिकाओं में छपतीं और बाद में वो अज्ञेय के प्रिय कवियों में शामिल हो गए। अज्ञेय तार स्तक के बाद 1951 में दूसरा सप्तक निकाल रहे थे जिसमें उन्होंने रघुवीर सहाय को भी शामिल किया। बाद में दिनमान का प्रकाशन शुरु होने के बाद अज्ञेय की संपादकीय टीम में रघुवीर सहाय भी शामिल हो गए। रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण स्तम्भ माने जाते हैं।

साहित्य और पत्रकारिता के बीच तालमेल बिठाते हुए उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता में साहित्य को बेहद गहराई से शामिल किया वहीं उनके साहित्य में एक पत्रकारीय दृष्टि भी लगातार नजर आती रही। उनकी कविताएं मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों को करीब से महसूस करती है और गैरबराबरी, अन्याय और गुलामी के खिलाफ खड़ी होती है.. शोषण, अन्याय, हत्या, आत्महत्या, जाति धर्म में बंटा समाज उन्हें हमेशा उद्वेलित करता और उनकी रचनाओं में झलकता रहा। दूसरा सप्तक के अलावा उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं – सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो जबकि कहानी संग्रह – रास्ता इधर से है .. भी काफी चर्चित रहा है।

उनके निबंध संग्रह दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण हो या फिर हंगरी, पोलिश, युगोस्लाविया के मशहूर उपन्यासों का अनुवाद, लेखन के उनके तमाम आयाम हैं। आज बेशक रघुवीर सहाय के बारे में कम लिखा पढ़ा जाता हो, लेकिन पिछले दिनों जाने माने लेखक-पत्रकार विष्णु नागर ने रघुवीर सहाय पर एक बेहतरीन किताब लिखी है – असहमति में उठा एक हाथ… रघुवीर सहाय की जीवनी। इसमें उनके पत्रकारीय जीवन से लेकर एक कवि और साहित्यकार का पूरा खाका पेश किया गया है। जाने माने पत्रकार, लेखक, अनुवादक और समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा बताते हैं कि कैसे सबसे पहले रघुवीर सहाय ने उन्हें दिनमान में लिखने को कहा और पहले ही आलेख को अपनी कवर स्टोरी बनाया, ये बेशक किसी भी पत्रकार के लिए कितने गौरव की बात थी…रघुवीर सहाय एक ऐसे संपादक थे जिनकी अगुवाई में दिनमान ने पत्रकारिता की नई ऊंचाइयां हासिल की और जनता से जुड़े सवालों से लेकर भारत के कोने कोने समेत दुनिया के तमाम देशों के अहम सवालों पर गहराई से चर्चा होती, पड़ताल होती।

आज के दौर और नई पीढ़ी के पत्रकार उस दौर को महसूस तक नहीं कर सकते क्योंकि हालात और मीडिया के परिदृश्य पूरी तरह बदल चुके हैं। व्यापारीकरण के इस  गलाकाट दौर में पत्रकारिता की परिभाषा ही कहीं गुम हो गई है या इसके मायने बदल गए हैं। बेशक वक्त की जरूरतों, सोशल मीडिया के अथाह संसार और इंटरनेट के जमाने में हम उस दौर की बात करके अफसोस नहीं जता सकते, लेकिन कम से कम सोचने, समझने और ईमानदारी से पत्रकारिता की जरूरत पर चर्चा तो हो ही सकती है।

— अतुल सिन्हा

रघुवीर सरहाय पर विशेष कार्यक्रम देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें….

https://www.youtube.com/watch?v=JkW3_9B_P_w

 

Posted Date:

December 9, 2021

3:51 pm Tags: , , ,
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