नई दिल्ली 15 फरवरी। हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने कहा है कि रंगमंच ऐसी कला है जिसमें सारी कलाएं रूपांतरित होकर मिल जाती हैं और मिलकर एक नई कला बन जाती है। शुक्ल ने भारंगम समारोह के दौरान” श्रुति” कार्यक्रम के तहत ” रंग प्रसंग “पत्रिका के युवा अंक का लोकार्पण करते हुए यह बात कही। प्रयाग शुक्ल ने ही इस पत्रिका का शुभारंभ किया था और इस इस अंक के अतिथि संपादक भी वहीं हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में इस पत्रिका के 36 अंक निकाले।
प्रयाग जी ने अपनी सांस्कृतिक पत्रकारिता के सफर को याद करते हुए “रंग प्रसंग ” पत्रिका की शुरुआत का जिक्र किया और इसका श्रेय रामगोपाल बजाज को दिया। उन्होंने बताया कि इस पत्रिका के संपादन के सिलसिले में उन्होंने न केवल देशभर की यात्रा की बल्कि देश के विभिन्न प्रान्तों में हो रहे रंगकर्म को जाना समझा और देखा भी। इसके लिए वह एनएसडी के पूर्व निदेशक रामगोपाल बजाज के आभारी हैं जिनके कार्यकाल में यह पत्रिका निकली और श्रुति कार्यक्रम शुरू हुआ जिसके तहत करीब 100 आयोजन हो चुके हैं।

शुक्ल ने बताया कि उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में हैदराबाद से “कल्पना” जैसी पत्रिका में नौकरी कर अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी और आज भी उसके यशस्वी संपादक प्रसिद्ध समाजवादी बद्री विशाल पित्ती की याद आती है। उन्होंने कल्पना में काम के दौरान ही हुसैन जैसे कलाकार से भी मुलाकात की। कल्पना हिंदी की एक उच्च स्तर की पत्रिका थी। उसमें वीरेंद्र नारायण के लेख छपते थे। उसकी गुणवत्ता कैसी थी यह निर्मल वर्मा के एक वक्तव्य से जाना जा सकता है। जब निर्मल वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो उन्होंने कहा कि उन्हें साहित्य में इस से बड़ा सम्मान कल्पना में कहानी छपकर मिला था। प्रयाग शुक्ल एक साल तक “कल्पना” पत्रिका में काम करते रहे लेकिन उनके मित्र महेंद्र भल्ला ,जो उन दिनों दिल्ली में रहते थे, उन्हें पत्रों में लगातार दिल्ली की सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचना देते थे जहां पंडित रविशंकर , इब्राहिम अलकाजी और यामिनी कृष्णमूर्ति जैसी हस्तियां रहती थी। उन्होंने कहा कि इसी आकर्षण के कारण वे दिल्ली में अपनी सांस्कृतिक पत्रकारिता को विकसित करने के लिए आए और यहां रहकर कई लोगों से आत्मीय सम्पर्क बना।
जब प्रसिद्ध कथाकार चित्रकार रामकुमार को पता चला कि मैं दिल्ली में अपने ठिकाने के लिए मारा मारा फिर रहा हूँ तो उन्होंने बंगाली मार्केट में अपने स्टूडियो में रहने का अवसर दिया। शुक्ल ने बताया कि वे उन दिनो नाटक देखा करते थे और उसके बारे में लिखा भी करते थे। इसके लिए उन्होंने मनोहर श्याम जोशी को विशेष रूप से याद किया और बताया कि उन्होंने किस तरह उन्हें नाटकों पर लिखने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने यह भी बताया कि दिनमान में अज्ञेय और रघुवीर सहाय ने उन्हें कला के बारे में लिखने का काफी मौका दिया। रघुवीर सहाय ने उन्हें उन दिनों निराला के गांव गढ़कोला भेजा और उसकी रिपोर्ट दिनमान में प्रकाशित की। जब अलाउद्दीन खान बहुत बीमार पड़े तो उन्हें वहां जाकर उनसे मिलने और रिपोर्ट लिखने का अवसर दिया। इब्राहम अल्काजी का भी इंटरव्यू किया।
प्रयाग जी ने राजेन्द्र माथुर को भी बड़ी शिद्दत से याद किया और कहा कि माथुर साहब ने ही प्रबंधन से कहा था कि मुझे प्रयाग शुक्ल चाहिए और तब मेंने नवभारत टाइम्स ज्वाइन किया। उन्होंने मुझे संपादकीय बैठक में बुलाना शुरू किया जबकि मैं तब केवल उप संपादक के पद पर था जबकि उस बैठक में सहायक संपादक स्तर के पत्रकार भाग देते थे। माथुर साहब ने मुझे न केवल साहित्य फीचर संपादित करने का काम दिया बल्कि संपादकीय लिखने की भी जिम्मेदारी दी। तब मैं 10 साल तक रोज 10 पेज हाथ से लिखता था, तब कंप्यूटर और मोबाइल आदि का जमाना नहीं था। मुझे तब ऐसा भी लगा आखिर मैँ कहाँ फंस गया हूँ।
प्रयाग शुक्ल ने रंग प्रसंग के युवा अंक का जिक्र करते हुए बताया कि रंगमंच में हर कोई युवा होता है। कई बड़े कलाकार युवा होते हैं। वे उम्र से भले ही युवा न हों पर युवा लोगों के साथ काम करते हुए युवा ही बने रहते हैं। इस सम्बंध में उन्होंने हबीब तनवीर से जुड़ी एक घटना का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि एक बार हबीब तनवीर के नाटक के दृश्य के लिए सरकारी आयोजकों को गड्ढा खोदना था लेकिन जब यह काम नहीं हुआ तो तनवीर साहब नाराज़ हो गए और उंन्होने जिला कलेक्टर को शिकायत की। जब युवा कलेक्टर आये तो तनवीर साहब ने खूब डांट पिलाई जिसका नतीजा हुआ कि वह खुद गड्ढा खोदने में लग गया।
जाने माने पत्रकार रवींद्र त्रिपाठी ने प्रयाग शुक्ल के सांस्कृतिक पत्रकारिता में योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि उनके जैसा कोई पत्रकार और संपादक हिंदी में नहीं जिसका अनुभव इतना विस्तृत और बहुआयामी हो। उनके पास एक गहरी संपादकीय दृष्टि है। उन्होंने कहा कि शुक्ल ने उन्हें भी प्रेरित किया और लिखने का अवसर दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रकाश झा ने किया जो इस पत्रिका के सहायक सम्पादक हैं।
अरविंद कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:
February 16, 2025
9:53 am
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