‘अस्तित्व – द एसेंस ऑफ प्रभाकर बर्वे’ में उतरी उनकी पूरी कला यात्रा
इस बार न तो अमोल पालेकर थे और न ही चुनावी मौसम का आतंक। न कोई विवाद और न ही कोई रोक टोक। जाने माने कलाकार प्रभाकर बर्वे के कामकाज को मुंबई के बाद अब दिल्ली में लोग नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट की कला दीर्घा में 28 जुलाई तक आराम से देख सकते हैं। इसी साल फरवरी में मुंबई में आयोजित इस प्रदर्शनी की चर्चा कम और अमोल पालेकर को बोलने से रोकने की चर्चा ज्यादा हुई थी। हालत ये हुई कि प्रभाकर बर्वे के बारे में तो कहीं कुछ नहीं छपा, हर जगह अमोल पालेकर और उनकी प्रेस कांफ्रेंस की ही खबर थी। माहौल सियासी तौर पर गर्म था, असहिष्णुता को लेकर बहसें चल रही थीं और कलाकार-संस्कृतिकर्मी खेमों में बंटकर अपने अपने मोर्चे पर अड़े थे। इसी का शिकार हो गई मुंबई में हुई प्रभाकर बर्वे की वह प्रदर्शनी।
लेकिन अब हालात दूसरे हैं। सियासी हलचल शांत है। कला की दुनिया भी अपने तरीके से चुपचाप अपना काम कर रही है। एनजीएमए के महानिदेशक खुद एक मंजे हुए कलाकार हैं, लेकिन इतने संवेदनशील कि उन्हें सियासी दांवपेंच प्रभावित नहीं करते। फरवरी में भी उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि वह अमोल पालेकर जैसे कलाकारों की पूरी इज्जत करते हैं और जो कुछ भी हुआ, वह ठीक नहीं था। किसी भी कलाकार को बोलने की और अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। तब संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा थे, अब प्रहलाद सिंह पटेल हैं। मंत्रालय वही है, सरकार वही है और नीतियां भी वही हैं। अमोल पालेकर प्रभाकर बर्वे के बड़े प्रशंसक रहे हैं और महाराष्ट्र के इस कलाकार की कला यात्रा को करीब से देखते रहे हैं। अमोल खुद एक कलाकार हैं और कला को समझते हैं। उनका सवाल सिर्फ यही था कि एनजीएमए ने सलाहकार समिति को कैसे भंग कर दिया और दो अन्य कलाकारों की तयशुदा प्रदर्शनियां कैसे रद्द कर दी गईं। लेकिन उन्हें वहां की निदेशक ने बोलने से रोक दिया। जबकि पालेकर का कहना था कि उस पूरे आयोजन में वही एकमात्र ऐसे थे जो बर्वे को बेहद करीब से जानते थे और उनकी कला के बारे में उन्होंने ही सबसे ज्यादा बोला भी था, लेकिन रोक टोक की वजह से उन्हें अपमानित होना पड़ा। उन्होंने एनजीएमए की इस बात के लिए तारीफ भी की थी कि उसने प्रभाकर बर्वे पर रेट्रोस्पेक्टिव कार्यक्रम आयोजित किया। बहरहाल बाद में मामला सुलझा, एनजीएमए के महानिदेशक ने सफाई दी लेकिन तब बर्वे का यह रेट्रोस्पेक्टिव इस विवाद की भेंट चढ़ गया।
लेकिन अब चार महीने बाद दिल्ली में प्रभाकर बर्वे को फिर से और नई ऊर्जा के साथ देखना एक अनुभव जैसा है। महाराष्ट्र के एक गांव में 1936 में जन्में प्रभाकर बर्वे 12 साल की उम्र में मुंबई आ गए थे। मुश्किल हालात में बचपन काटा लेकिन कला के प्रति समर्पण और झुकाव उन्हें जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स तक ले आया। शुरूआती दौर में उन्होंने पुपुल जयकर की संस्था वीवर्स सर्विस सेंटर (बुनकर सेवा केन्द्र) के लिए काम किया। इस संस्था से वो तकरीबन 21 साल तक जुड़े रहे और इसके लिए वाराणसी में भी कई साल रहकर काम किया। इसकी झलक उनके कैनवस पर दिखती है। वाराणसी में रहते हुए तांत्रिक क्रियाओं को अपनी कला में उतारने की उन्होंने रचनात्मक कोशिश की। लेकिन बर्वे की कला के नए आयाम सत्तर के दशक में देखने को मिले। यहीं से उन्होंने अपनी कला में अंतरिक्ष के तत्वों को समेटा और अपने काम को उसी के इर्द गिर्द केन्द्रित किया। 1974 में बर्वे ने 12 कलाकारों के साथ मिलकर ‘अस्तित्व’ नाम की संस्था बनाई जिसका मकसद एक दूसरे की मदद से सामूहिक तौर पर कला का विस्तार और विकास करना था, हालांकि बाद में आपसी मतभेदों की वजह से यह संस्था भंग हो गई। बाद में बर्वे ने कालीदास की मशहूर रचना मेघदूत पर बहुत काम किया। ब्लू क्लाउड नाम की इस पेंटिंग ऋंखला के लिए उन्हें ललित कला अकादमी पुरस्कार भी मिला।
प्रभाकर बर्वे कभी खास चर्चा में नहीं रहे, लेकिन उनकी कला के आयामों को 1995 में उनके निधन के बाद पहचाना गया। तमाम कलाकारों ने उनकी कला यात्रा और कोशिशों को एक उपलब्धि माना।‘अस्तित्व’ का अस्तित्व बेशक उस वक्त खत्म हो गया हो लेकिन इसकी मूल भावना को समझते हुए अब दिल्ली के नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के महानिदेशक अद्वैत गणनायक ने उनकी प्रदर्शनी का नाम ‘अस्तित्व: द एसेंस ऑफ प्रभाकर बर्वे’ दिया है। इसे चार खंडों में बांटा गया है। इसके शुरूआती खंड रूप तंत्र में बर्वे के उन दिनों के काम को प्रदर्शित किया गया है जब वो जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में थे। इसी में उनकी तांत्रिक संरचनाओं को भी रखा गया है। दूसरे खंड वीवर्स सर्विस सेंटर में उनके साथियों के कामकाज को भी रखा गया है। इसमें बर्वे के अलावा अन्य कलाकारों के टेक्सटाइल के काम को शामिल किया गया है। इसमें बर्वे के अलौकिक परिवर्तन (इथीरियल ट्रांजिशन) से जुड़ी कला को जगह दी गई है। इस दर्शन के तहत कामकाज की तल्लीनता के साथ डिजाइन के तंत्र में बदलने और खुद के स्वतंत्र अस्तित्व की तलाश को अभिव्यक्त किया गया है। इस प्रदर्शनी में 1958 से 1977 तक की उनकी कला यात्रा को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है।
जाहिर है अगर आपको प्रभाकर बर्वे को समझना है, एक कलाकार की आत्मा को, उसकी दृष्टि को और उसके सरोकारों से रू ब रू होना है तो यह प्रदर्शनी ज़रूर देखना चाहिए।
Posted Date:June 19, 2019
4:21 pm Tags: एनजीएमए, प्रभाकर बर्वे, अस्तित्व, द एसेंस ऑफ प्रभाकर बर्वे, Prabhakar Barve, Artist Prabhakar Barve, Astitva, The Assence of Prabhakar BarveComments are closed.
Nice writing