सितार सम्राट पंडित रविशंकर से मिलना एक अनुभव था… युवावस्था में खराब आदतों के शिकार और विदेश में रहकर बिगड़ चुके पंडित जी ने कैसे सुधरी अपनी आदतें, कैसे बने एक संवेदनशील और मानवीय इंसान.. उनके गुरु ने कैसे बनाया उन्हें इतना बेहतरीन सितारवादक… संगीत ने कैसे बदली पंडित जी की ज़िंदगी….अतुल सिन्हा के साथ पंडित रविशंकर का एक ऐसा इंटरव्यू जिसमें पंडित जी ने बताई अपने दिल की बहुत सी बातें … उनकी पुण्यतिथि पर ये खास इंटरव्यू और उसकी पूरी कहानी पढ़िए…
वो साल था 2002… दिसंबर का महीना… सुबह की गुनगुनी सी धूप में हमारी कैमरा टीम निकल पड़ी थी चाणक्यपुरी में बने पंडित रविशंकर के भव्य केन्द्र की ओर… पंडित जी आम तौर पर देश से बाहर ही रहते थे। कुछ दिनों के लिए आए थे और उन्होंने हमें इंटरव्यू के लिए सुबह 11 बजे का वक्त दिया था…तब मैं बीएजी फिल्म्स के एक कार्यक्रम ‘रोज़ाना’ का प्रभारी था। आधे घंटे का यह कार्यक्रम दूरदर्शन पर सोमवार से शुक्रवार तक आता था। बीएजी के हमारे साथी शशि शेखर, कैमरामैन चौहान जी और जितेन्द्र भी हमारे साथ थे। इंटरव्यू शशि जी ने ही लाइन अप किया था पंडित रविशंकर केन्द्र में काम करने वाले अपने एक मित्र के जरिये।
संगीत में और खासकर सितार में मेरी दिलचस्पी बचपन से थी और पंडित रविशंकर को मैं बचपन से सुनता आया था। बचपन में थोड़ा बहुत सितार बजा भी लेता था। बाद में लखनऊ में पढ़ाई के दौरान भातखंडे संगीत विद्यालय में सितार में विशारद करने के इरादे से एकाध दिन गया भी, लेकिन किसी वजह से दाखिला नहीं ले सका। बहरहाल सितार सम्राट पंडित रविशंकर से मिलना और लंबी बातचीत का मौका मिलना मेरे लिए एक बड़ी बात थी। जाहिर है बहुत उत्साहित था और उनसे बहुत सारी बातें पूछना चाहता था। संकोच भी था कि पता नहीं वह किस तरह मिलें।
सारी तैयारियां हो चुकी थीं। कैमरे पोजिशन पर लग चुके थे। इंटरव्यू के लिए दो कुर्सियां पोजिशन में लग चुकी थीं, लाइट्स भी ऑन थी। पंडित रविशंकर केन्द्र के बीचों बीच बने विशाल हॉल में उनका इंतज़ार था। करीब सवा ग्यारह बजे पंडित जी अंदर के एक कमरे से बाहर आए और बेहद मुस्कराते हुए सबका अभिवादन किया। मैंने अदब के साथ उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने पूछा – अतुल सिन्हा आप ही हैं। फिर मेरे कंधे पर हाथ रखकर बेहद खुशनुमा अंदाज़ में बोले – आप तो एकदम अनिल कपूर लगते हो।
माहौल को एकदम सामान्य करते हुए पंडित जी कुर्सी पर बैठ गए और सामने की कुर्सी पर मैं। मैंने कहना शुरु किया – आपसे मिलने की बचपन से तमन्ना थी, चलिए इंटरव्यू के बहाने से ही सही, आज पूरी हुई। बचपन से आपको सुनता आया हूं। आपके कई एलपी रिकॉर्ड्स घर पर हैं। पटना में भी एक बार आपको सुनने का मौका मिला था।
पंडित जी सुनकर खुश हुए और कहने लगे – हां, पटना जाने का एकाध बार मौका मिला था। पहले मुझे लगता था कि पटना में सड़क पर संगीत कार्यक्रम होते हैं, हालांकि मैंने हॉल में परफॉर्म किया था। लेकिन वहां दुर्गापूजा के दौरान होने वाले संगीत कार्यक्रम तो अद्भुत होते हैं.. रात रात भर लोग बैठे रहते हैं। बिहार के लोगों से मुझे बहुत कुछ मिला है।
इस बीच कैमरे का फ्रेम ठीक किया जा चुका था, लाइटिंग भी चेक की जा चुकी थी। लेपल माइक में हमारे ऑडियो लेवेल भी चेक हो चुके थे। इंटरव्यू के पहले की कुछ और अनौपचारिक बातचीत के बाद हमने टीवी इंटरव्यू शुरु कर दिया था। पंडित जी अपने बचपन के सफरनामे के बारे में बता रहे थे – दस साल का था, तब से ही संगीत औऱ नृत्य में खासी दिलचस्पी थी। दादा (उदय शंकर) ने बहुत कुछ सिखाया। उन्हें बचपन से नृत्य करते देखा, संगीत और नृत्य के साथ वो पेंटिंग में पारंगत थे। कला और संस्कृति की अद्भुत समझ थी उनमें। बनारस की संगीत परंपरा तो शुरु से ही बेमिसाल रही है। घर पर बड़े बड़े संगीतज्ञों का आना जाना था। उस्ताद अलाउद्दीन खां जिसे हम बाबा कहते थे, उन्होंने मुझे शास्त्रीय संगीत सिखाया।
मैंने सवाल किया – इतना सबकुछ हिन्दुस्तान में है तो आप ज्यादातर वक्त देश से बाहर क्यों रहते हैं औऱ क्यों अमेरिका और पश्चिमी देश आपको इतने पसंद हैं?
पंडित जी थोड़े गंभीर हुए फिर कहने लगे – दरअसल मेरी शुरुआत ही पेरिस से हुई। दादा ने जब पाब्लो पावलोवा के ट्रुप से खुद को अलग किया और अपना ट्रुप बनाया, तब उन्होंने मेरे अलावा मेरे दो और भाइयों देवेन्द्र और राजेन्द्र शंकर को भी अपने साथ रखा। मां भी साथ थीं। हम बनारस से सीधे पेरिस आ गए। उनकी टीम में मैं संगीत का काम देखा करता था और तब मुझे लगभग सभी वाद्य थोड़ा थोड़ा बजाने आता था। मैं नृत्य भी करता था। हमने पूरा यूरोप घूमा, हर देश में दादा ने परफॉर्म किया। यूं समझिए कि बचपन से ही मुझे फाइव स्टार होटल और ऐशो आराम के साथ घूमने फिरने और रहने की आदत सी लग गई थी। जब आपको कम उम्र में ऐसा लाइफ स्टाइल मिल जाता है तो आदतें भी खराब हो जाती हैं। आलोचनाएं भी खूब होती थीं। लेकिन मुझमें टेलेंट था और मैं दादा के ट्रुप में अपने म्युजिक ग्रुप को लीड करता था।
उस वक्त तो आपकी उम्र काफी कम रही होगी?
मैं 11-12 साल का था जब दादा ने हमें पेरिस बुला लिया। दादा की उदय शंकर एंड हिज हिन्दू बैले मंडली के साथ मैं यूरोप और अमेरिका के सात साल के दौरे पर निकल गया। कोई 84 शहरों में दादा ने परफॉर्म किया और पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति से जुड़ी तमाम कथाओं को बैले नृत्य शैली में पेश किया। नृत्य में उनका जो योगदान है वो हमेशा याद किया जाएगा।
फिर आपकी पहचान खुद कैसे बनी?
जैसा मैंने बताया कि 17-18 साल की उम्र तक मैं बहुत बिगड़ गया था। बुरी आदतों का शिकार हो गया था। ये तो भला हो वर्ल्ड वार का जो हमें भारत लौटना पड़ा। दादा ने पेरिस का सेटअप खत्म कर दिया और भारत आकर अल्मोड़ा में अपना सेंटर खोल दिया। तभी मैंने तय कर लिया कि मुझे बनारस लौट जाना चाहिए और वहीं रहकर शास्त्रीय संगीत सीखना चाहिए। मैं लौट कर बाबा (उस्ताद अलाउद्दीन खां) के घर के बगल में रहने लगा। इतने साल की अपनी लाइफ स्टाइल बदलने के लिए मैं खाट पर सोता, मच्छर और कीड़े मकोड़े काटते। वहां सांप, बिच्छू होते, डर भी बहुत लगता लेकिन मेरे भीतर संगीत का जुनून था, इसलिए मैं करीब 6 महीने तक इतने मुश्किल हालात में रहकर उनसे संगीत सीखता रहा। बाबा ने मुझे सामान्य तरीके से रहना सिखाया और मेरे वेस्टर्न रहन सहन को बदलने में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने मुझे संगीत की बारीकियां सिखाईं, पहली बार गत सिखाया, सुरबहार बजाना सिखाया, फिर शास्त्रीय रागों को बारीकी से समझाया, तीन ताल से लेककर झाला तक मैंने उनसे सीखा। उनसे जो सबसे बड़ी चीज़ मैंने सीखी वो है ह्यूमैनिटी। उनके भीतर जितनी सब्र और शालीनता थी, वह अद्भुत थी।
आप तो शायद इप्टा के साथ भी जुड़े रहे थे?
जुड़ा तो नहीं था, लेकिन मुंबई मैं 1945 में आया और पहली बार वहां परफॉर्म किया। उसी दौरान ख्वाज़ा अहमद अब्बास एक फिल्म बना रहे थे धरती के लाल…इसका संगीत मुझे देना था। इस दौरान इप्टा के अंधेरी ऑफिस में जाना होता था। वहां का माहौल बेहद देशभक्ति और क्रांतिकारी गीतों वाला होता था। उसी दौरान हमने इकबाल की मशहूर गजल सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा की धुन बनाई थी। उसी दौरान चेतन आनंद भी एक फिल्म बना रहे थे नीचा नगर। उसका संगीत भी मुझे ही देना था। इसमें एक गीत था – हम रुकेंगे नहीं, हम झुकेंगे नहीं। इसे गाने के लिए एक नया लड़का आया, लेकिन उसकी आवाज़ में वो जोश नहीं दिखा तो हमने उसे नहीं लिया। बाद में वही लड़का बेहतरीन गायक मोहम्मद रफी के नाम से मशहूर हुआ।
पंडित जी अपने अनुभव बता रहे थे और मैं ये जानने की कोशिश कर रहा था कि आखिर पंडित रविशंकर को इतना अक्खड़ और गुस्से वाला क्यों कहा जाता है। उनके कई ऐसे किस्से सुनता रहा था कि उन्होंने कई बार ज़रा भी डिस्टर्बेंस होने पर अपना परफॉर्मेंस बंद कर दिया था या आयोजकों को मना कर देते थे।
इस बारे में सवाल करने पर पंडित जी ने हंसते हुए बताया कि हां कई बार ऐसा हुआ है। मुझे लगता है कि आप जब संगीत सुन रहे हैं तो उसमें डूब जाइए, उसे महसूस कीजिए। दरअसल हमारे यहां शुरु से संगीत को राजा महाराजाओं या अमीरों की चीज़ मानते रहे हैं। ये दरबारी मानसिकता और जबरदस्ती की वाह वाह या संगीत को अय्याशी की तरह इस्तेमाल करना मुझे कभी पसंद नहीं रहा। यहां लोग वक्त पर नहीं आते, कोई कभी आ रहा है, कोई कभी, कोई कंसर्ट के दौरान बातें कर रहा है, तो महिलाएं स्वेटर बुन रही हैं, या कोई वेंडर मूंगफली बेच रहा है। बजाते वक्त मुझे ये सब डिस्ट्रैक्ट करता है और मैं इसके लिए खुलकर रिएक्ट करता रहा हूं। इसके लिए मुझे वेस्टर्न एटीट्यूड वाला भी कहा जाता रहा है।
पंडित जी बता रहे थे कि उन्हें युवाओं से खास लगाव है, वो जानते हैं कि यही वो पीढ़ी है जो हमारे संगीत को समझ सकती है, आगे बढ़ा सकती है, इसलिए हमारी कोशिश होती है कि हम उनके लिए संगीत के केन्द्र खोलें, उन्हें आगे बढ़ाएं और संगीत में वो तमाम प्रयोग करें जो आज की पीढ़ी को पसंद आता है। इसीलिए हमने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी संगीत से भी जोड़ा, जैज़ के साथ फ्यूज़न किया और तमाम प्रयोग किए जिसके लिए आलोचनाएं भी सुनीं।
जाहिर है एक बड़ा संगीतकार बहुत व्यापक तरीके से सोचता है, उसकी सोच परंपरागत होने के साथ प्रयोगात्मक भी होती है। और पंडित जी के साथ बात करते हुए हमें इस बात का पूरा एहसास हुआ कि आखिर उन्हें सितार का सम्राट क्यों कहा जाता है।
इंटरव्यू के कई और हिस्से हमने शूट किए, कांट छांट कर कुछ समय सीमा का ध्यान रखकर हमने ‘रोज़ाना’ में इसे 10-12 मिनट चलाया भी। वो ऐतिहासिक इंटरव्यू शायद बीएजी फिल्म्स की लाइब्रेरी में कहीं पड़ा भी हो, लेकिन अफसोस कि उसकी कोई वीडियो कॉपी मेरे पास नहीं है। स्मृतियां हैं और कुछ नोट्स हैं। लेकिन वाकई पंडित जी के साथ ये मुलाकात उनके तमाम अनछुए पहलुओं को खोलने वाली एक अंतरंग बातचीत थी।
Posted Date:December 12, 2021
9:58 am Tags: सितार सम्राट पंडित रविशंकर, Sitar Maestro, Sitar Samrat Ravishankar, Pandit Ravi Shankar, पंडित रविशंकर, पंडित रविशंकर का इंटरव्यू, अतुल सिन्हा से पंडित रविशंकर की बातचीत, सितार