भारंगम के मंच पर संस्कार भारती का प्रमुख क्यों?

भारत रंग महोत्सव के 25वें संस्करण की शुरुआत हो गई… दिल्ली में चुनाव की वजह से इसका उद्घाटन कमानी ऑडिटोरियम में न होकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कैंपस में ही हुआ…इस बार के रंगदूत बनाए गए अभिनेता राजपाल यादव ने तालियां बटोरीं.. मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के आने का लंबा इंतज़ार हुआ, आखिरकार उद्घाटन के बगैर नाटक रंग चिंतन शुरु हो गया… मंत्री जी आए तो लेकिन काफी देर से.. मंच पर संस्कार भारती के प्रमुख को सम्मानित किया गया… कुल मिलाकर भारंगम के उद्घाटन ने कई सवाल खड़े किए… अरविंद कुमार की रिपोर्ट

एक जमाना था जब देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और पूर्व  सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी खुद नाटक देखने आते थे लेकिन आज किसी राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रप्रमुख को इसके लिए समय नहीं। आज संस्कृति मंत्री नाटकों  के महाकुंम्भ का उद्घाटन करने आता भी है तो दर्शक उसके लिए सवा घंटे तक इंतजार करते हैं। हालांकि मंत्री महोदय प्रयागराज के महाकुंम्भ में समुद्र मंथन का उद्घाटन करने गए थे। जी हां, कल भारंगम के उद्घाटन में ऐसा ही हुआ। और तो और एनएसडी  जैसी स्वायत्त संस्था के मंच पर संस्कार भारती के प्रमुख को भारंगम के मंच पर सम्मानित किया गया।

क्या कभी इससे पहले साहित्य अकादमी या संगीत नाटक अकादमी के किसी उद्घाटन समारोह में इप्टा या जलेस या प्रलेस के किसी प्रमुख को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया? ऐसा कोई उदाहरण याद नहीं आता। आखिर सरकारी आयोजन में संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों का मंच पर आना तो समझ में आता है। मंत्रलाय अनुदान देता है। ऐसे आयोजनों को पर सरकारी आयोजन से संस्कार भारती का क्या लेना देना?

आखिर एनएसडी के भारंगम में ऐसा यह कौन सा रंग है ,क्या यही एक रंग और श्रेष्ठ रंग है जिसके बारे में एक पत्रकार ने सवाल उठाया था प्रेस कांफ्रेंस में।।जहाँ तक स्मृति जाती है पहले ये सब नहीं होता था।

 खुले आकाश में एनएसडी के परिसर में जब भारंगम के उद्घाटन समारोह की व्यवस्था की गई थी क्योंकि चुनाव आयोग ने दिल्ली में चुनाव के मद्देनज़र कमानी सभागार में उद्घाटन समारोह करने की अनुमति नहीं दी क्योंकि आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी हुई है।

बहरहाल , लोग खुले आकाश में ठंड झेलते हुए  उद्घाटन का इंतज़ार कर रहे थे। उद्घटान शाम 6,30 पर होना था। मीडिया को सवा छह तक आने के लिए आमंत्रित किया गया था। पर 7.50 तक संस्कृति मंत्री नहीं आये और  समारोह का उद्घटान नाटक  “रंग चिंतन “भी शुरू हो गया।  इस बीच एनएसडी के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी को लपकते हुए एनएसडी के प्रवेश द्वार पर जाते देखा गया। उम्मीद हुई कि मंत्री जी आये पर दर्शकों को निराशा हुई। आखिरकार शेखावत जी आए और उन्होंने कहा कि नेता और अभिनेता में ज्यादा फर्क नहीं। अब तो हर राजनेता अभिनय में माहिर हो गया है। उन्होंने भारंगम जैसे प्रतिष्ठित आयोजन को भारतीय संस्कृति के सबसे अहम रंग से जोड़ा।

शेखर कपूर से ही उद्घाटन करा लेते भारंगम का

क्या इस आयोजन का उद्धाटन देश के बड़े फिल्मकार और हाल ही में पद्मभूषण से सम्मानित किए गए शेखर कपूर से नहीं कराया जा सकता।क्या उनकी हस्ती किसी मंत्री से कम है? देवानंद के भांजे  और बलराज साहनी के परिवार से जुड़े पद्मभूषण से सम्मानित शेखर कपूर इस समय बॉलीवुड की प्रखर प्रतिभाओं से एक हैं। उनका अवदान और उनकी पहचान किसी मंत्री से कम नहीं। लेकिन भारत में कला से अधिक प्रोटोकॉल को तवज्जो दी जाती है।

इस बीच रंगदूत राजपाल यादव जरूर मंच पर आए और उन्होंने अपने अंदाज में समा बांधा। खूब तालियां बजीं और उन्होंने अपने भाषण में एनएसडी को और बेहतर करने के लिए सरकार से 2500 करोड़ रुपए के पैकेज की मांग की और भारत तथा विदेशों में एनएसडी के पूर्व कलाकारों से भी अपील की कि वे भी इसमें सहयोग करें।

   

राजपाल यादव ने भारंगम को कान्स फ़िल्म समारोह के टक्कर का बनाने की बात कही। उन्होंने  एनएसडी में बिताए अपने पलों को याद किया और इसे दुनिया की बेहतरीन नाट्य संस्था बताया। उन्होंने कहा कि 1994 में वे इसके छात्र बने थे और 1999 में फिल्मों में आये इस तरह उनकी फिल्मी यात्रा भी भारंगम के समय से शुरू हुई और दोनों के 25 वर्ष हो गए। उंन्होने यह भी कहा कि उन्होंने कभी सपने में सोचा नहीं था कि वे भारंगम के रंगदूत बनेंगे। यादव ने कहा कि उन्होंने नुक्कड़ नाटक से थिएटर शुरू किया और वे फिल्मों के साथ साथ थिएटर भी करते रहेंगे, इसे छोड़ेंगे नहीं।

एनएसडी के उपाध्यक्ष भरत गुप्ता ने इससे पहले अपने उद्बोधन में कहा कि वह 1984 से एनएसडी से जुड़े । उन्होनें पूरी दुनिया के नाट्य संस्थानों को देखा है पर एनएसडी जैसी कोई संस्था नहीं है। एनएसडी का पाठ्यक्रम दुनिया के किसी भी रंग संस्थान से श्रेष्ठ है। इसमें जितनी विविधता और शैलियां हैं, वैसा किसी पाठ्यक्रम में नहीं।

कार्यक्रम में मीता वशिष्ठ को संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने सम्मानित किया। इसके बाद संस्कार भारती के प्रमुख अभिषेक बनर्जी को भी मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया तो कई दर्शक और पत्रकार चौंक गए। एनएसडी की प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने एक रंग और श्रेष्ठ रंग के बारे में सवाल कर जो आशंका व्यक्त की थी वह सच साबित हुई जब संस्कार भारती का रंग भारंगम पर चढ़ा।

Posted Date:

January 29, 2025

11:45 am

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