अपने सौवें वर्ष में नेमिचन्द्र जैन को याद करने के कई कारण हैं – वे पिछली सदी के चैथे दशक में हिन्दी कविता के हरावल दस्ते के सदस्य थे, उन्होंने हिन्दी में उपन्यास की आलोचना को नयी सूक्ष्मता और मूल्यदृष्टि दी, कि वे आज तक उपन्यास के शिखर आलोचक हैं, उन्होंने हिन्दी नाटक को निरे अकादेमिक पाठ की रूढ़ि से मुक्त कर उसे रंगमंच-आधारित बनाया-देखा और उसे व्यापक आधुनिक भारतीय रंगमंच से जोड़कर हिन्दी में रंगालोचना की शुरूआत की, उन्होंने कविता की सहानुभूति और सूक्ष्मता से विश्लेषण करती आलोचना लिखी, उन्होंने ‘नटरंग‘ जैसी हिन्दी की एक मात्र दीर्घजीवी रंगपत्रिका की स्थापना और संपादन किये; मुक्तिबोध रचनावली का संपादन कर रचनावलियों के लिए एक प्रतिमान स्थापित किया। दशकों से जतन और समझ से जमा रंगसामग्री को लेकर एक ट्रस्ट नटरंग प्रतिष्ठान बनाया जो अपने ढंग का एकमात्र रंग-अभिलेखागार है।
नटरंग प्रतिष्ठान इफ़को, रंग विदूषक, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, इप्टा, अभिनव रंगमंडल आदि अनेक संस्थाओं के सहयोग से नेमि शती पर अनेक आयोजन दिल्ली और कई शहरों में कर रहा है। ये आयोजन अनूठे ढंग से नेमि जी के योगदान पर एकाग्र न होकर उनके कुछ बुनियादी सरोकारों जैसे विचार, कविता, उपन्यास, रंगमंच, संस्कृति की वर्तमान स्थिति पर केन्द्रित हैं। शुभारम्भ हुआ तीन दिनों के उत्सव से जो 16-18 अगस्त 2019 को क्रमश: इण्डिया इण्टरनेशनल सेण्टर, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और त्रिवेणी कला संगम दिल्ली में इन तीन जगहों पर सम्पन्न हुआ।
मूर्धन्य इतिहासकार और विचारक डा. रोमिला थापर ने नेमि स्मृति व्याख्यान ‘अन्य की उपस्थिति: आदिकालीन भारत में समाज और धर्म‘ विषय पर देते हुए बताया कि शुरू से ही, वैदिक काल में भी भारत में अपने और दूसरे के बीच अन्तर का एहतराम था और समावेश भी। ऋग्वेद में दास ऋषियों की रचनाएँ भी शामिल है जबकि वे तथाकथित दूसरे थे। स्वयं धर्म में असहमतियों को लगातार जगह और सम्मान दिये जाते रहे। बहुत लम्बी और केन्द्रिय रही है। धर्मों के बीच परस्पर संवाद और समझ की भारतीय परम्परा बहुत लम्बी और केन्दीय रही है। इस संवाद और समझ में इन दिनों घातक ढंग से हमले हो रहे हैं। भारतीय परम्परा से उनको किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। स्वयं धर्मों में अपने बीच उपजी असहमति के प्र्रति अवहेलना या प्रहार का भाव बहुत आक्रामक हो गया है।
इस अवसर पर नेमिजी के जीवन, कृतित्व और सम्बन्धों को तस्वीरों और वक्तव्यों आदि के माध्यम से झलकानेवाली एक प्रदर्शनी ‘नेमि छवि‘ को भी शुभाराम्भ हुआ। रोमिला जी ने नन्दकिशोर आचार्य और ज्योतिष जोशी द्वारा सम्पादित और वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘नेमिचन्द्र जैन रचनावली‘ के पहले खण्ड का लोकार्पण किया। लगभग पाँच सौ पृष्ठों की इस ज़िल्द में नेमिजी की आलोचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संकलित किया गया है। रश्मि वाजपेयी के संपादन में इस अवसर पर नेमिजी पर एकाग्र ‘नटरंग‘ का विशेषांक प्रकाशित हुआ है जिसमें लगभग तीन सौ पृष्ठ नेमिजी के समूचे कृतित्व से एक संचयन पर हैं और बाकी पृष्ठ उनके बारे में संस्मरणों के। संस्मरण मृदुला गर्ग, मृणाल पाण्डे, अपूर्वानन्द, बोधिसत्त्व, एम के रैन, अनुराधा कपूर, बंसी कौल, शंकर सुहेल, जयदेव तनेजा आदि के है।
समारोह का दूसरा दिन अभिमंच-राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नेमिजी के कृतित्त्व और जीवन पर कुछ प्रसंगों और कविताओं का उपयोग कर बनाये गये वृत्तनाटक ‘साक्षात्कार अधूरा है‘ का था जिसे भोपाल की संस्था रंग विदूषक ने बंसी कौल की देखरेख, फ़रीद बज़्मी के निर्देशन, पशुपति शर्मा के आलेख और अंजना पुरी के प्रभावशाली संगीत के साथ प्रस्तुत किया। लगभग एक घण्टे की इस प्रस्तुति में नेमिजी का जीवन, उनका संघर्ष और एकान्त, उनकी उलझनें और बेचैनियाँ अपनी पत्नी रेखा जी के साथ उनका संग-संवाद, अन्य लेखकों के विशेषतः अज्ञेय और मुक्तिबोध के साथ उनके साहचर्य आदि ज़ाहिर हुए। कभी आत्मकथन, कभी कविताओं के पाठ, कभी दूसरों द्वारा कोरस की तरह बखान आदि से बुनी गयी यह प्रस्तुति दर्शकों को घण्टे भर बाँधे रही। उसकी सार्थक सफलता से हिन्दी के अन्य लेखकों पर ऐसी ही नाट्यप्रस्तुतियाँ तैयार करने का मार्ग खुल गया लगता है।
समापन त्रिवेणी सभागार में, हाल ही में संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से अलंकृत पण्डित मधुप मुद्गल के सरस और सशक्त गायन से हुआ: राग सन्घ्या में। मधुप जी ने अपने पिता श्री विनयनंद्र मोदगल्य के अलावा पण्डित कुमार गन्धर्व, श्री वसन्त ठकार और पण्डित जसराज से संगीत की शिक्षा पायी है। उन्होंने मियाँ की मल्हार, भूपाली आदि रागों में कई बंदिशें पेश कीं जिनमें से कुछ बेहद लुभावनी कुमार जी की रची हुई थीं: उनके लालित्य और यथास्थान ओज दोनों समुचित अनुपात में थे। समापन कबीर के दो निर्गुण पदों से हुआ: सजल-उच्छल रागासक्ति, वर्षा के ऐन्द्रिय उछाह से अन्त में विराग बहुत मौजूँ लगा। मधुप अब एक परिपक्व गायक हैं जिनका स्वर-वितान पूरी तरह से उनके अधिकार में है और उनमें अब रस और शक्ति दोनों ही हैं।
नेमि शती के अन्तर्गत रवीन्द्र भवन के एक सभागार में 16 सितम्बर से 16 दिसम्बर तक हर महीने नेमिजी के विभिन्न क्षेत्रों को लेकर आयोजन होने जा रहे हैं। पहला आयोजन उपन्यास पर है जिसमें ‘औपन्यासिक कल्पना और यथार्थ‘ तथा ‘उपन्यास की वैचारिक सत्ता‘ पर विचार होगा। दूसरा 16 अक्टूबर को कविता पर है जिसमें ‘फैलता भूगोल और सिकुड़ता इतिहास‘ तथा ‘अवाँगार्द की अनुपस्थिति में परिवर्तन‘ पर , 16 नवम्बर को रंगमंच पर ‘नाटकहीन रंगमच‘ और ‘आलोचना की अनुपस्थिति में रंगमंच‘ पर विचार होगा। इस श्रृंखला का समापन 16 दिसम्बर को होगा जिसमें संस्कृति पर ‘संस्कृति, विस्मृति और दुव्र्याख्या‘ विषय पर विचार होगा। हर आयोजन में आरंम्भ में सम्बन्धित क्षेत्र में नेमिजी के योगदान पर संक्षिप्त विचार होगा और हर आयोजन का समापन क्रमश: समकालीन रचनाकारों में से कुछ के उपन्यास-अंशों, कविताओं, नाट्य-अंशों के पाठ से होगा।
इसी श्रृंखला में तीन दिवसीय नाट्यलेखन सम्मान समारोह का भी आयोजन है। जिसमें तीन पुरस्कृत नाटकों का नाट्य पाठ होगा।
नेमि शती के सिलसिले में अगले कुछ महीनों में पटना, उज्जैन, भोपाल, जयपुर, इलाहाबाद, कोलकाता आदि अनेक केन्द्रों में कई संस्थाएँ आयोजन करने जा रही है।
(नटरंग प्रतिष्ठान की ओर से भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट)
Posted Date:August 24, 2019
11:38 am Tags: ashok vajpayee, Nemi Chandra Jain, Meni Shati, Nemi Chhavi, Natrang Pratishthan, Romila Thapar