बनारस घराने के कई जाने माने कलाकारों ने संगीत से मुश्किल से मुश्किल बीमारियों के इलाज और इसके असर को लेकर कई अहम बातें कही हैं। इन कलाकारों में उस्ताद बिस्मिल्ला खां की दत्तक पुत्री जानी मानी लोक और शास्त्रीय गायिका पद्मश्री डॉ सोमा घोष और तृप्ति शाक्य के अलावा मशहूर सितारवादक पंडित देवव्रत मिश्र और वायलिनवादक सुखदेव प्रसाद मिश्र, फिल्मकार शुभेन्दु घोष और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी शामिल हैं। म्युज़िक थेरेपी पर इस ज़रूरी सेमिनार का आयोजन यू ट्यूब चैनल टी विद अरविंद कुमार (टीडब्लूएके) पर लाइव किया गया। कोविड के इस मुश्किल वक्त में लोगों के भीतर भरती निराशा और अवसाद को दूर करने में संगीत की भूमिका पर सार्थक चर्चा हुई और सरकार से ये मांग की गई कि कोविड वार्डों में भर्ती मरीजों के लिए संगीत सुनाने की व्यवस्था की जाए। कलाकारों की स्थिति पर भी चर्चा हुई और उनके लिए पेंशन की मांग भी उठी। स्कूलों में शास्त्रीय संगीत को अनिवार्य करने की बात भी कलाकारों ने कही। ये विस्तृत रिपोर्ट पढ़िए –
देश के कई जाने माने कलाकारों, संगीत से जुड़ी हस्तियों और फिल्मकारों ने कहा है कि कोरोना मरीजों को अवसाद और निराशा से बाहर निकालने के लिए संगीत एक कारगर दवा साबित हो सकता है। इसके लिए सभी कोविड अस्पतालों में इलाज करवा रहे मरीजों के अंदर सकारात्मकता भरने के लिए उन्हें उनकी पसंद का संगीत सुनाने की व्यवस्था विकसित की जानी चाहिए। म्युज़िक थेरेपी एक बेहतरीन और असरदार माध्यम है और इसके ज़रिये ऐसे मरीजों को जल्दी ठीक किया जा सकता है।
टीडब्लूएके की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन सेमिनार में हिस्सा लेते हुए जानी मानी गायिका और उस्ताद बिस्मिल्ला खां की दत्तक पुत्री पद्मश्री सोमा घोष, फिल्मकार सुभेन्दु घोष, सितारवादक पंडित देवव्रत मिश्र, वायलिनवादक पंडित सुखदेव प्रसाद मिश्र, मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी और जाने माने भौतिकशास्त्री और संगीतज्ञ रामकृष्ण दास ने जोर देकर कहा कि शास्त्रीय संगीत और संगीत की तमाम शैलियों के महत्व को समझते हुए किसी भी मरीज़ के भीतर सकारात्मक सोच विकसित की जा सकती है और उसके भीतर जीवन के प्रति उत्साह जगाया जा सकता है। इन कलाकारों ने सरकार से आग्रह किया है कि ऐसे गंभीर मरीज़ों के वार्ड में स्पीकर और म्युज़िक सिस्टम की व्यवस्था होनी चाहिए जो खुद सोशल मीडिया या मोबाइल चलाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्हें उनके पसंद का संगीत सुनाना चाहिए ताकि उनके भीतर का निराशावाद खत्म हो और वो जल्द ठीक हो सकें।
पद्मश्री सोमा घोष ने कहा कि इसकी कई मिसालें हैं जब संगीत ने गंभीर रोगियों को ठीक किया है और उनके भीतर ऊर्जा और सकारात्मक सोच का संचार किया है। उस्ताद बिस्मिल्ला खां अपने अंतिम दिनों में जब संसद में कार्यक्रम देने वाले थे, उसके कुछ दिन पहले उनकी हालत बहुत खराब हो गई थी और वह बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहे थे। ऐसे में उन्हें उस्ताद विलायत खां और उनकी जुगलबंदी सुनाने पर उनके भीतर फिर से जीवन का संचार हो गया और वो उठ गए। संसद भवन में शानदार कार्यक्रम हुआ। ऐसे ही एक नेवी अफसर ने भी संगीत से अपनी गंभीर बीमारी ठीक कर ली। कोरोना के दौरान भी कई मरीजों से संगीत सुनकर खुद को अवसाद से बाहर निकाला।
गायिका तृप्ति शाक्य ने कहा कि भजन हमें सीधे ईश्वर से जोड़ते हैं। अच्छे संगीत का संबंध हमेशा मन और आत्मा से होता है। कोरोना ही नहीं तमाम बीमारियों को ठीक करने के लिए संगीत एक कारगर जरिया है। उन्होंने कहा कि सरकार को कोविड अस्पतालों में लगातार धीरे धीरे संगीत बजाने की कोई व्यवस्था करनी चाहिए ताकि रोगियों की नकारात्मक सोच खत्म हो सके। रोगियों की रुचि के मुताबिक उन्हें संगीत सुनाना चाहिए।
फिल्मकार शुभेन्दु घोष ने कहा कि इसके लिए संगीत से जुड़ी हस्तियों को वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करना चाहिए ताकि किस रोग के लिए कौन सा राग फायदेमंद हो, इसका पता लगे और फिर इसे व्यावहारिक तौर पर छोटी छोटी धुनों में रिकॉर्ड कर बीमारों को उपलब्ध कराना चाहिए। बेशक इसके लिए डॉक्टर, संगीतज्ञ और मनोवैज्ञानिकों का एक समूह मिलकर काम करे। उन्होंने ये प्रस्ताव भी दिया कि स्कूलों में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अनिवार्य करने के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। साथ ही कलाकारों के पेंशन की बात भी होनी चाहिए।
सितारवादक पंडित देवव्रत मिश्र और वायलिनवादक पंडित सुखदेव प्रसाद मिश्र ने भी संगीत के जरिये इलाज की पद्धति को बहुत पुरानी बताते हुए इसके कई उदाहरण दिए और कोरोना काल में अपने संगीत के कुछ मरीज़ों पर असर का भी जिक्र किया। इन कलाकारों ने सितार और वायलिन पर कुछ धुनें भी सुनाईं।
वाराणसी में लंबे समय से दलितों और वंचितों के लिए काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता और आयुर्वेदाचार्य डॉ लेनिन रघुवंशी ने भी खुद को इस मुहिम के साथ जोड़ा और कहा कि संगीत की ताकत को वे समझते और महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि विदेशों में जाकर लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत के बड़े बड़े संस्थान चलाते हैं लेकिन अपने देश में इसे लेकर उदासीनता है। हमारे पास इतने बड़े बड़े कलाकार हैं, इतनी अद्भुत धरोहर है तो क्या हम काशी में म्युजिक थेरेपी और संगीत के विभिन्न आयामों को लेकर बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संस्थान नहीं खोल सकते।
सेमिनार में मुंबई से भौतिकी विज्ञान के साथ संगीत के क्षेत्र में अहम योगदान देने वाले रामकृष्ण दास के योगदान को भी वक्ताओं ने सराहा और म्युजिक थेरेपी को लेकर उनके काम और सुझावों को अहम माना। सेमिनार का संचालन किया लेखक और संस्कृतिकर्मी अरविंद कुमार, वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत और ‘7 रंग’ के संपादक और पत्रकार अतुल सिन्हा ने। करीब दो घंटे चले इस कार्यक्रम में कलाकारों ने कुछ रागों पर आधारित धुनें भी सुनाईं जो मन को सुकून पहुंचाने वाली और निराशा को दूर करने वाली थीं।
Posted Date:June 2, 2021
5:28 pm Tags: Vijay Vineet, Music Therapy, Sitar, Violine, Dr. Lenin Raghuvanshi, corona, Pandit Sukhdev Mishra, covid, Pandit Deobrat Mishra, Banaras Gharana, Subhankar Ghosh, Dr Soma Ghosh, Ramkrishna Das, Arvind Kumar