‘मृगया’, मृणाल सेन और मिथुन चक्रवर्ती

सत्तर के दशक में एक युवा अभिनेता बंगाल की धरती से अभिनय की दुनिया में कदम रखता है, पहले क्लासिक फिल्मकार मृणाल सेन उसे पहचान देते हैं, इस पहली ही फिल्म से वह राष्ट्रपति पुरस्कार पाता है और जल्दी ही डिस्को डांसर बनकर युवाओं के दिलों की धड़कन बन जाता है… बात मिठुन चक्रवर्ती की हो रही है जिन्हें अपने जीवनकाल में बेहतरीन फिल्में करने और अभिनय की दुनिया में खास मुकाम बनाने के लिए इस साल का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। आखिर मिठुन चक्रवर्ती में ऐसा क्या है खास .. उनकी पहली ही बांगला- हिन्दी फिल्म मृगया ने कैसे उनकी अलग पहचान बनाई… और मिठुन के लिए मृगया क्या मायने रखती है… इन तमाम सवालों पर वरिष्ठ फिल्म पत्रकार और लेखक जयनारायण प्रसाद का यह आलेख पढ़िए जिसमें आपको मिठुन के मृणाल सेन की मृगया के दिलचस्प वाकये जानने को समझने को मिलेंगे… 7 रंग की तरफ से मिठुन दा को इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए बहुत बधाई… 

 

हिंदी फिल्म ‘मृगया’ के बगैर फिल्मकार मृणाल सेन और अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती अधूरे हैं। ‘मृगया’ वह फिल्म है, जो आजादी के बाद के हमारे अधूरेपन का पर्दाफाश करती है और यह भी बताती है कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का नाम नहीं है। सिनेमा वह है, जो जिंदगी और उसकी बेतरतीबी से आपको रूबरू कराए। सिनेमा वह भी है, जो दर्शकों को ‌जागरूक बनाए। ऐसी ही एक अनूठी हिंदी फिल्म है ‘मृगया’ ! यह अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की पहली फिल्म भी है।
‘मृगया’ वर्ष 1976 में बनीं और मृणाल सेन की यह पहली रंगीन फिल्म भी है। यह फिल्म एक ऐसी कथा है, जिसमें संथाल आदिवासियों का शोषण, उस पर ढाए जा रहे जुल्म, क्रूर महाजनी व्यवस्था और इन सबके बीच इससे टकराने का जज्बा इसके केंद्र में है।
‘मृगया’ (रायल हंट) का मतलब है शिकार। ओड़िया के जाने-माने लेखक भगवती चरण पाणिग्रही की एक छोटी-सी कहानी पर यह फिल्म बनी है। पाणिग्रही की ओड़िया कहानी का नाम‌ भी था ‘शिकार’। दिलचस्प कहानी है यह! पढ़ेंगे तो पढ़ते ही चले जाएंगे। तब पता चलेगा की ओडिशा जैसे छोटे राज्य में भी ‘हमारी व्यथा’ को व्यक्त करने वाला साहित्य बहुत पहले से लिखा जा रहा है।
भगवती चरण पाणिग्रही ऐसा ही एक‌ उत्कृष्ट नाम है।


ओडिशा के साहित्य और वहां के लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि भगवती चरण पाणिग्रही ओड़िया में छोटी कहानियों के बेहद संवेदनशील लेखक थे। पाणिग्रही की कहानियां मर्म को छूती ही नहीं, ‘वार’ भी करती हैं जैसे हम किसी ‘युद्धस्थल’ में हों !
भगवती चरण पाणिग्रही लेखन के साथ-साथ राजनीति से भी जुड़े थे। वर्ष 1907 में भगवती चरण पाणिग्रही का जन्म हुआ, लेकिन 23 अक्तूबर, 1943 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हुई। यह देश को आजादी मिलने से कुछ वर्ष पहले की कथा है। एक ऐसे कहानीकार की, जो बंगाल और बिहार का पड़ोसी भी था।
पाणिग्रही ओडिशा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले राज्य सचिव भी थे। ‘नवयुग साहित्य संसद’ नामक एक साहित्यिक संस्था भी चलाते थे। साथ में ‘आधुनिका’ (यानी आधुनिक) नाम से एक ओड़िया पत्रिका का संपादन भी। ओड़िया साहित्य की बहुत धारदार पत्रिका थीं यह ! कहते हैं कि इस पत्रिका में ओड़ियाभाषी लोगों का जीवन धड़कता था।
बहरहाल, मृणाल सेन ने उनकी ‘शिकार’ कहानी को बहुत पहले से पढ़ रखा था। कहते हैं भगवती चरण पाणिग्रही ने वर्ष 1930 के आसपास यह कहानी लिखी थी। मृणाल सेन ने इस कथा को फिल्माने के लिए वर्ष 1974 से पटकथा लिखने का काम शुरू किया। आखिर में तैयार होकर पूरे देश में ‘मृगया’ 6 जून, 1976 को रिलीज हुई। ‘मृगया’ में संगीत सलिल चौधरी ने दिया था।
लेकिन, फिल्म के तौर पर ‘मृगया’ बनने की पूरी कहानी और ज्यादा दिलचस्प है।
एक दफा पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के दीक्षांत समारोह में मृणाल सेन को अतिथि बनने का मौका मिला। तभी उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती को मंच पर चढ़ते और सर्टिफिकेट लेते देखा था। उस दीक्षांत समारोह में थिएटर के जानकार इब्राहिम अल्काजी भी थे। मन ही मन मृणाल सेन ने उसी समय मिथुन चक्रवर्ती का चयन ‘मृगया’ के लिए कर लिया था। तब साथ में कैमरामैन केके महाजन भी वहां थे। बाद में केके महाजन से उन्होंने मिथुन का पूरा डिटेल भेजने को कहा।
महाजन मिथुन चक्रवर्ती से मिले। फिर, मिथुन कलकत्ता आए। कई दौर में मिथुन से मृणाल दा की बात हुई और वर्ष 1975 के आखिर में ‘मृगया’ के फिल्मांकन का काम शुरू हुआ। कहना चाहिए मृणाल सेन की यह ‘फिल्म कम इतिहास ज्यादा’ है, क्योंकि ‘मृगया’ मिथुन चक्रवर्ती और अभिनेत्री ममता शंकर ‌दोनों की पहली फिल्म भी है। फिल्म ‘मृगया’ में केके महाजन ने गजब की सिनेमाटोग्राफी की है। लगता है, मिथुन के तीर चलाने के अंदाज को केके महाजन ही पकड़ सकते थे !
अभिनेत्री ममता शंकर देश की बेहतरीन नृत्यांगना भी है और कोरियोग्रॉफर भी। वे अपने जमाने के मशहूर नर्तक उदय शंकर की बेटी और ‌सितारवादक पंडित रविशंकर की भतीजी हैं। अभिनय के साथ-साथ वे बहुत पहले से कोलकाता में ‘ममता शंकर बैले समूह’ भी चलाती हैं। यह एक नृत्य-संस्था है, जिसका कोलकाता और विदेशों में भी काफी नाम है। सत्यजित राय, मृणाल सेन, बुद्धदेव दासगुप्ता, गौतम घोष और ऋतुपर्ण घोष जैसे फिल्मकारों की वे पसंदीदा अभिनेत्री भी रही हैं। ममता शंकर की बांग्ला फिल्म ‘गृहयुद्ध’ अभी भी एक लैंडमार्क फिल्म मानी जाती है। बुद्धदेव दासगुप्ता की इस फिल्म में गौतम घोष मुख्य अभिनेता हैं और ममता शंकर अभिनेत्री।
सिनेमा के पन्नों को पलटता हूं तो पता चलता है ‘मृगया’ 6 जून, 1976 को रिलीज हुई थीं। पहले ही दिन इस फिल्म को देखने के लिए कोलकाता में भारी भीड़ थी। इस फिल्म के लिए बहुत मुश्किल से मृणाल सेन निर्माता ढूंढ़ पाए थे। वे पहले से ही कर्ज में डूबे हुए थे। आखिर में फिल्म ‘मृगया’ के लिए एक निर्माता मिले। निर्माता थे दक्षिण भारतीय के राजेश्वर राव। सलिल चौधरी को ‘मृगया’ में संगीत का काम सौंपा गया था। उसके बाद एक-एक कर दूसरे कलाकारों का चयन हुआ। साधु मेहर, समित भांजा और सजल रायचौधरी। बहुत कम लोगों को मालूम है कि ‘मृगया’ में अभिनेता टॉम अल्टर भी थे। अंग्रेज बने ‌थे और ‌उनके अभिनय से मृणाल सेन काफी मुग्ध थे। टॉम को अंग्रेजी, हिंदी के अलावा बहुत अच्छी उर्दू जुबान भी आती थी। बाद में वे राजकपूर की फिल्म में भी दिखे।
अपनी पहली ही फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती ने इतना चाक्षुष और आकर्षक अभिनय किया कि उन्हें वर्ष 1977 में देश के 24वें भारतीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल गया। इस फिल्म के लिए मृणाल सेन को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था। दसवें मास्को अंतरराष्ट्रीय (1977) फिल्मोत्सव में भी ‘मृगया’ नामांकित थी। बेस्ट मूवी के तौर पर ‘मृगया’ को फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड भी मिला था।
‘मृगया’ कम बजट की फिल्म थी। कलकत्ता के टॉली क्लब और बाकी की शूटिंग झाड़ग्राम में हुई थी। ‘मृगया’ में मिथुन चक्रवर्ती ने घिनुआ का किरदार निभाया था और अभिनेत्री ममता शंकर ने डुंगरी का। अभिनेता साधु मेहर ने डोरा का और समित भांजा ने सोल्पू का। टॉम अल्टर तो थे ही। अभिनेता सजल रायचौधरी मनीलेंडर यानी सूदखोर महाजन के किरदार में थे।
आदिवासियों पर जुल्म और शोषण के खिलाफ बगावत करते हुए मिथुन चक्रवर्ती आखिर में ‘मृगया’ में मारे भी जाते हैं। फिल्म में समित भांजा का भी ऐसा ही हश्र होता है। लेकिन, सबकी भूमिका इस फिल्म में इस कदर है कि ‘मृगया’ भारतीय फिल्मों के ‘इतिहास में रेखांकित’ हो जाती है। अब भी यह फिल्म कहीं दिखती है तो फिल्मकार मृणाल सेन, अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती और ‘मृगया’ की पूरी टीम के लिए दिल और दिमाग से ‘वाह’ निकलता ही है!
अरुण कौल और मोहित चट्टोपाध्याय ने ‘मृगया’‌ की पटकथा लिखी थीं। अरुण कौल ने हिंदी में ‘दीक्षा’ (1991) फिल्म बनाई है। ‘दीक्षा’ में नाना पाटेकर और ‌मनोहर‌ सिंह ने गजब का अभिनय किया था। अरुण कौल फिल्मकार यश चोपड़ा की ‘चांदनी’ फिल्म के भी संवाद लेखक थे। इससे पहले कौल, मृणाल सेन की ही हिंदी फिल्म ‘एक अधूरी कहानी’ के निर्माता थे। गुलज़ार की फिल्म ‘इजाजत’ और ‘लेकिन’ में अरुण कौल सहायक थे।
मोहित चट्टोपाध्याय वर्ष 2012 में कैंसर से गुजरे। वे‌ बंगाल में थिएटर की एक बड़ी हस्ती थे और संगीत नाटक अकादमी विजेता भी। मोहित चट्टोपाध्याय ने वर्ष 1980 में बांग्ला में एक शिशु फिल्म भी बनाई थी।‌ नाम था उसका ‘मेघेर खेला’ (द प्ले ऑफ क्लाउड्स)।
अभिनेता साधु मेहर का देहांत अभी हाल में हुआ है। एक जमाने में साधु मेहर ने निर्देशक श्याम बेनेगल की ‘अंकुर’, ‘निशांत’, ‘मंथन’, मृणाल सेन की ‘भुवन सोम’ और तपन सिन्हा की शिशु फिल्म ‘सफेद हाथी’ जैसी फिल्में की हैं। ’27 डाउन’, ‘घरौंदा’, ‘अभिमान’ और ‘देवशिशु’ भी साधु मेहर की उत्कृष्ट फिल्में हैं। साधु मेहर को फिल्म ‘अंकुर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
अभिनेता समित भांजा भी अब नहीं है।‌ ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गुड्डी’ के इस अभिनेता का निधन बहुत ‌पहले हो चुका है। वे जमशेदपुर में पैदा हुए थे और कोलकाता में 24 जुलाई, 2003 को गुजरे। ‘गुड्डी’ के अलावा ‘कितने पास, कितने दूर’, ‘अनजाने मेहमान’, ‘वही रात, वही आवाज’ समित भांजा की हिंदी फिल्में हैं। वे पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान से निकले थे और बांग्ला में सत्यजित राय की ‘अरण्येर दिनरात्रि’ से‌ लेकर तपन सिन्हा की ‘हाटे बाजारे’ और ‘आपनजन’ तक में अभिनय किया है।‌ बांग्ला फिल्म ‘हाटे बाजारे’ (1967) में अशोक कुमार, वैजयंतीमाला समेत अनेक ‌लोग थे। तपन सिन्हा की बांग्ला फिल्म ‘आपनजन’ (1968) की ही हिंदी (रिमेक) फिल्म थी ‘मेरे अपने’,‌ जिसमें मीना कुमारी और विनोद खन्ना ‌ने अभिनय किया था। इसे वर्ष 1984 में गुलज़ार ‌ने बनाया था। बहुत बाद में गुलज़ार की ‘मेरे अपने’ कन्नड़ भाषा में भी बनी। नाम था उसका ‘बेंकी बीरुगली’। यह कन्नड़ की हिट फिल्म मानी जाती है।
‘गुड्डी’ 1 जनवरी, 1971 को रिलीज हुई थी। इसमें धर्मेंद्र,‌ जया भादुड़ी, एके हंगल, उत्पल दत्त, सुमिता सान्याल, समित भांजा और केष्टो मुखर्जी भी थे। बाद में ‘गुड्डी’ तमिल में भी बनी।‌ नाम था ‘सिनेमा पेंथियम’। इस तमिल फिल्म में कमल हासन और जयाचित्रा ने क्या खूब अभिनय किया था !
तो‌ यह है कहानी मृणाल सेन और उनकी हिंदी फिल्म ‘मृगया’ से जुड़े कलाकारों/सहयोगियों की। किसी दरख्त़ की शाखा पहले एक‌ ठो निकलती है, लेकिन उसकी प्रशाखाएं जब फैलती हैं, तो अनंत होती जाती है और उसकी छांव पाने को सभी बेताब दिखते हैं।‌ खुशबूदार दरख्त़ हो, तो कहना ही क्या !
सिनेमा का संसार भी ऐसा ही है। फिल्मकार मृणाल सेन और अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की ‘मृगया’ उस खूशबूदार दरख्त़ की घनी छांव जैसी है।

जयनारायण प्रसाद, कोलकाता
संपर्क : 98308-80810

 

Posted Date:

October 5, 2024

8:14 pm Tags: , , , , ,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright 2024 @ Vaidehi Media- All rights reserved. Managed by iPistis