वीरेन डंगवाल की याद: ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’
कवि वीरेन डंगवाल की याद में लखनऊ में जन संस्कृति मंच की गोष्ठी और कविता पाठ
‘कविता में अभिधा का सौन्दर्य – चन्द्रेश्वर
 बदलाव की उत्कट आकांक्षा – कौशल किशोर 
 
लखनऊ में कवि वीरेन डंगवाल के 77वें जन्मदिन पर 5 अगस्त को उनकी याद में जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से गोष्ठी का आयोजन शायरा सईदा सायरा के निवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर ने की। संचालन किया कथाकार फरजाना महदी ने।
इस मौके पर चंदेश्वर और कौशल किशोर ने वीरेन डंगवाल के कवि कर्म और सरोकारों पर अपनी बात रखी।
चन्द्रेश्वर का कहना था कि समकालीन हिन्दी कविता में वीरेन डंगवाल उन गिने-चुने शीर्ष कवियों में शुमार किए जाते हैं जिनके लिए कविता लिखना करियर बनाने का हिस्सा नहीं था । उनकी कविताओं में अभिधा का सौन्दर्य अपनी तमाम ख़ूबियों के साथ सामने आता है । वे मामूली चीज़ों में सौन्दर्य तलाशते हैं और उनपर कविताएं लिखते हैं । वे परिवर्तनकामी चेतना के वाहक कवि हैं । उनकी कविताएं आज भी हमें रोशनी देने का काम करती हैं।
कवि व संस्कृति कर्मी कौशल किशोर ने कहा कि सत्तर के दशक में कविता में जो नयी पीढ़ी आई, उनमें वीरेन डंगवाल सर्वाधिक अग्रगामी चेतना के कवि हैं। उनमें आम जन की पीड़ा है तो वहीं बदलाव की उत्कट आकांक्षा है। वे उम्मीद की डोर को मजबूती से थामते हैं और मानते हैं कि संघर्ष करके मनुष्य यहां तक पहुंचा है। इसी से उसके जीवन में उजले दिन आयेंगे। सत्ता व्यवस्था को लेकर समझ साफ़ थी। उनकी कविता का फलक बड़ा है।
वीरेन डंगवाल लंबे समय तक ‘अमर उजाला’ से जुड़े रहे। सत्य प्रकाश चौधरी ने उनकी पत्रकारिता तथा साथ के अनुभव को साझा किया।
चन्द्रेश्वर ने वीरेन डंगवाल की दो छोटी कविताएं ‘मसला’ और ‘प्रेम’ का पाठ किया। फरजाना महदी ने उनकी मशहूर कविता ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’ सुनाई जिसमें वे कहते हैं – ‘काफ़ी बुरा समय है साथी/गरज रहे हैं घन घमंड के नभ की फटती है छाती
/अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन/
…संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती/इनकी असल समझना साथी/अपनी समझ बदलना साथी’। कौशल किशोर ने ‘हमारा समाज’ तथा ‘आएंगे, उजले दिन जरूर आयेंगे ‘ कविता सुनाई।
कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में उपस्थित कवियों ने कविता पाठ किया। शुरुआत सईदा सायरा की कविता ‘मुझे दोस्त बनाना आता है’ से हुई। विमल किशोर ने वीरेन डंगवाल को याद करते कविता सुनाई। इसके साथ ‘ऐ, सुन्दर लड़की’ का भी पाठ किया। युवा कवि मोहित कुमार पाण्डेय ने व्यवस्था पर तंज करते हुए कहा
‘नेता जी हैं अपग्रेड अब/उनके पास थार है/पकौड़ा और मोमोज बेचना ही/कहलाता अब रोजगार है’‌। रोहिणी जान ने भी कविता सुनाई।
भगवान स्वरूप कटियार ने ‘किताब मेरी दोस्त ‘ कविता का पाठ किया जिसमें किताब के महत्व की बात है।चन्द्रेश्वर अपनी कविता में कहते हैं ‘यह सोचकर ही /कितना खूबसूरत लगने लगता है अपना समय /कि मैना के चीत्कार से दरक सकता है/अभेद्य किला किसी पापी राजा का’। कौशल किशोर ने ‘बाबरी मस्जिद का होना’ का पाठ किया। असगर मेहदी ने उर्दू शायर नून मीम राशिद की नज़्म तथा फरजाना महदी ने अनवर अब्बास की ग़ज़ल सुनाई। इस अवसर उर्दू शायरा तस्वीर नक़वी साहिबा भी मौजूद थीं।
Posted Date:

August 9, 2024

2:42 pm

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