क्या आपने ममता बनर्जी के भीतर का कलाकार देखा है?

क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में अपनी जुझारू और लड़ाकू छवि के लिए मशहूर ममता बनर्जी एक बेहतरीन पेंटर, कवियत्री और लेखिका भी हैं? संगीत में उनकी गहरी रूचि है और पिछले ही साल दुर्गापूजा के मौके पर ममता बनर्जी ने रौद्रर छाया नाम का एक अल्बम भी जारी किया है जिसमें उनके कंपोज किए गए सात गीत हैं। हालांकि उनके व्यक्तित्व के इन पहलुओं को लेकर सियासत भी खूब होती रही है। लेकिन ममता ने अपनी रचनात्मकता बरकरार रखी है। वैसे भी बंगाल की ज़मीन में संगीत, कला, संस्कृति और साहित्य जिस तरह रचती बसती है, उससे वहां रहने वाला कोई भी शख्स अछूता नहीं है, लेकिन सियासी व्यस्तताओं और सत्ता समीकरणों के खेल में छोटी उम्र से ही शामिल रही ममता बनर्जी के लिए इस बहुआयामी प्रतिभा को लगातार साथ लेकर चलना किसी उपलब्धि से कम नहीं।

ममता का दावा है कि उन्होंने अपनी कला को पार्टी के लिए समर्पित कर दिया है, उनकी पेंटिंग प्रदर्शनियों से जितनी भी राशि मिलती है, वो उसे या तो पार्टी फंड में देती हैं, चुनाव में अपने उम्मीदवारों के लिए पार्टी की तरफ से खर्च करती हैं या सामाजिक कार्यों में लगाती हैं। उनकी पेंटिंग की नीलामी से आए करोड़ों रूपए पर तमाम विपक्षी पार्टियां गंभीर सवाल उठाती रही हैं। आरोप यहां तक लगे हैं कि उनकी पेंटिंग कुछ ऐसे असरदार लोगों ने करोड़ों रूपए में खरीदी है जिनपर सत्ता की मदद से बड़े बड़े घोटाले के आरोप हैं। यह तो सियासी जंग है, चलती रहती है।

लेकिन ममता बनर्जी की कलायात्रा के बारे में हम आपको उनके कुछ चित्रों के ज़रिये बताते हैं। कांग्रेस से अलग होकर जब ममता बनर्जी 1997 में जब तृणमूल कांग्रेस पार्टी बना रही थीं तभी उसका चुनाव निशान भी उन्होंने खुद से ही बनाने को सोचा। कांग्रेस के झंडे से मिलता जुलता, लेकिन उसमें दो पत्तियां (जोड़ा फूल) भी बनाईं।

तृणमूल कांग्रेस का झंडा और चुनाव चिन्ह खुद ममता बनर्जी ने बनाया

यहीं से उनके भीतर का कलाकार जाग गया और उसके बाद से वह लगातार पेंटिंग्स बनाती रहीं। 2005 में उन्होंने पहली बार अपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगाई और इन पेंटिंग्स को बेचकर 4 लाख रूपए जमा किए जिसे पार्टी फंड में चुनाव लड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया। 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने तब 29 सीटें जीती थीं।

दुर्गापूजा हो और मां दुर्गा की प्रतिमा का ममता खुद अपनी कूची से ऋृंगार न करें, ऐसा कैसे हो सकता है

2007 में ममता की दूसरी कला प्रदर्शनी कोलकाता के इंडियन म्यूज़ियम में लगी और इससे कमाए गए करीब 14 लाख रूपए नंदीग्राम में मारे गए लोगों के परिवारों की मदद के लिए दिए गए। सब जानते हैं कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम की ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ तत्कालीन सीपीएम सरकार के खिलाफ जबरदस्त धरना दिया था और आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा।

2011 में ममता बनर्जी की प्रदर्शनी का थीम था – एक दिन में 25 घंटे। इसमें उनकी 95 पेंटिग्स लगाई गई जिनकी कीमत 2 लाख रूपए से 1 करोड़ रखी गई। और इससे करीब 4 करोड़ रूपए जमा हुए जिसे पार्टी फंड में जमा करा दिया गया। 2012 में ममता बनर्जी की एक पेंटिंग को न्यूयॉर्क के सुंदरम टैगोर आर्ट गैलरी में 3000 डॉलर में दिया गया और यह राशि चिल्ड्रन्स होप इंडिया नाम की संस्था को दिया गया।

ममता बनर्जी की पेंटिग्स की एक प्रदर्शनी

2013 में ममता बनर्जी की सबसे बड़ी प्रदर्शनी लगाई गई – ए ड्रीमर्स क्रिएशन्स। इसमें उनकी 250 पेंटिंग्स थी। और इससे जमा हुई राशि में से करीब एक करोड़ रूपए मुख्यमंत्री और राज्यपाल सहायता कोष में जमा कराए गए। ममता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री 2011 में ही बन चुकी थीं।

ममता बनर्जी आम तौर पर कैनवस पर एक्रेलिक पेंट के इस्तेमाल से चित्र बनाती हैं। उनकी कोशिश होती है कि वो अपनी पेंटिंग्स में गरीबी, बदहाली और नकारात्मकता से दूर रहें और ज़िंदगी को नई उम्मीदों के साथ देखें। उन्होंने प्रकृति के तमाम रंगों को, फूलों को, परंपराओं और लोककथाओं के पात्रों के साथ साथ हिन्दू दर्शन और बंगाल की समृद्ध लोक शैलियों को कैनवस पर उतारा है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपनी पेंटिंग भेंट करती ममता

नवंबर 2017 में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कोलकाता आए तो ममता बनर्जी ने उन्हें अपनी पेंटिंग भेंट की। कोविंद ने उनकी पेंटिंग की बेहद तारीफ करते हुए उसे अपने दिल के करीब बताया था और अब ममता की वही पेंटिंग राष्ट्रपति भवन की दीवारों की शोभा बढ़ा रही है। ममता खुद को इस मामले में खुशकिस्मत मानती हैं कि उनकी पेंटिंग मकबूल फ़िदा हुसैन, जामिनी राय, तिलोत्तमा बसु जैसे दुनिया के मशहूर कलाकारों की कृति के साथ लगाई गई है।

Posted Date:

February 5, 2019

2:48 pm Tags: , , , , , , , , , ,
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