हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक मदन सोनी का कहना है कि वह साहित्य अकादमी का अनुवाद पुरस्कार पाकर काफी खुश हैं और यह पुरस्कार अनुवादक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अनुवादकों ने ही दुनिया के साहित्य को पाठकों से केवल परिचय ही नहीं कराया बल्कि उसे लोकप्रिय भी बनाया है। भोपाल में रहने वाले 74 वर्षीय मदन सोनी ने साहित्य अकादमी की ओर से अनुवाद पुरस्कारों की घोषणा के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में यह बात कही ।
उन्हें यशोधरा डालमिया की रज़ा साहब की अंग्रेजी में छपी जीवनी के हिंदी अनुवाद के लिए यह सम्मान मिला है। भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी रह चुके श्री सोनी ने कहा कि अनुवाद कर्म बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है लेकिन अक्सर लोग इसके महत्व को समझते नहीं है और अनुवादकों को उतना महत्व भी नहीं दिया जाता है लेकिन अगर अनुवादक न होते तो हम दुनिया की श्रेष्ठ कृतियों को आज नहीं पढ़ पाते और कालजयी लेखकों को नहीं जान पाते।
उन्होंने कहा कि दुनिया भर के अनुवादकों ने विश्व के विभिन्न देशों के साहित्य को एक दूसरी भाषा में उपलब्ध कराया है और हमसबको उस देश के साहित्य से जोड़ा है और पूरा संसार उनके लिए कृतज्ञ है। अगर उनका अनुवाद ना हुआ होता तो हम उसके साहित्य के मर्म को और साहित्य के महत्व को नहीं समझ पाते।अनुवादक दर असल एक पुल की तरह होते है। चाहे शेक्सपीयर हों या टॉलस्टॉय या चेखव लू शुन जैसे अंग्रेजी रूसी और चीनी भाषा के लेखकों का जब अनुवाद हुआ तो दुनिया के लोगों को पता चला कि उनका साहित्य कितना महत्वपूर्ण है औऱ वे विश्व के महान लेखक है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी के प्रकाशक अनुवादकों को पारिश्रमिक नहीं देते और उन्हें उतना महत्व भी नहीं देते इसलिए साहित्य अकादमी जैसी सरकारी संस्थाओं को चाहिए कि वे अनुवादकों को अधिक पारिश्रमिक दे और अनुवाद का सम्मानजनक रेट तय करें ताकि दूसरे प्रकाशक भी उसका पालन करें।

श्री सोनी ने कहा कि विदेश में अनुवाद कार्य को बहुत महत्व दिया जाता है। कई देशों में तो अनुवाद कार्य के लिए फैलोशिप भी दी जाती है और अनुवादकों को किसी गेस्ट हाउस या विला उपलब्ध कराया जाता है ताकि वे वहां रहकर अनुवाद कार्य को पूरा करें लेकिन भारत में अनुवादकों को ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अपने देश में अनुवाद कार्य करना बहुत ही कठिन और श्रम साध्य कार्य है ।साहित्य अकादमी ने मेरे अनुवाद कार्य को मान देकर मुझे नहीं बल्कि सारे अनुवादकों को सम्मानित किया हैष इसलिए मैं बहुत ही खुश हूं।
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अभी तक साहित्य अकादमी की ओर से कोई आधिकारिक सूचना अभी इस पुरस्कार की नहीं मिली है बल्कि उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से ही यह जानकारी मिली है ।संभव है कि कल अकादमी ने मुझे कोई मेल किया हो लेकिन मैं कल दोपहर के बाद से अपना मेल नहीं देखा है लेकिन अकादमी की ओर से कोई फोन आदि मेरे पास नहीं आए हैं अब तक।
यह पूछे जाने पर कि क्या आप यह पुरस्कार तो नहीं लौटा देंगे क्योंकि आप हिंदी के प्रख्यात लेखक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेई के खासमखास माने जाते रहे हैं और श्री वाजपेई ने एक समय पुरस्कार वापसी अभियान का नेतृत्व किया था ,श्री सोनी ने हंसते हुए कहा अभी तक तो हमने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं है क्योंकि अकादमी की ओर से तो हमें अभी आधिकारिक सूचना भी नहीं मिली है।
श्री सोनी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की है हिंदी आलोचना में उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और वह अपनी गंभीर आलोचना के लिए जाने जाते हैं।
उनकी साहित्यिक आलोचना पर कई किताबें प्रकाशित की हैं, जिनमें शामिल हैं: कविता का व्योम और व्योम की कविता, जो 60 के दशक के बाद की हिंदी कविता का आलोचनात्मक अध्ययन है; विषयांतर, आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह; कथापुरुष, निर्मल वर्मा के उपन्यासों का आलोचनात्मक अध्ययन; और उत्प्रेक्षा, आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह।
उन्होंने प्रेम के रूपक नामक हिंदी प्रेम कविताओं का एक संकलन, अशोक वाजपेयी की कविताओं का एक संग्रह, होना शुरू होना नामक तीन कवियों की रचनाओं के एक संग्रह का संपादन किया है। इसके अलावा श्री सोनी ने अनेक ग्रंथों का अंग्रेजी से हिंदी/बुंदेली में अनुवाद किया है, जिनमें से कुछ हैं टेमिंग ऑफ द श्रू (शेक्सपियर), कोकेशियान चाक सर्किल (ब्रेख्त), येरमा (लोर्का), नेरो रोड टू द डीप नॉर्थ (एडवर्ड बॉन्ड), रिप्रेजेंटेशन ऑफ द इंटेलेक्चुअल (ईडब्ल्यू सईद), द नेम ऑफ द रोज (अम्बर्टो एक्को) तथा जैक्स डेरिडा, जीन बॉडरिलार्ड, फ्रेडरिक नीत्शे, ऑक्टेवियो पाज़ आदि जैसे लेखकों की अनेक अन्य सैद्धांतिक रचनाएँ। उन्हें नंद दुलारे वाजपेयी पुरस्कार, देवी शंकर अवस्थी पुरस्कार और संस्कृति विभाग की वरिष्ठ फैलोशिप शामिल हैं।