अंतरराष्ट्रीय कला मेले में एक दिन…
325 स्टॉल्स, 800 से भी ज्यादा कलाकार, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र का विशाल कैंपस, शाम के वक्त रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम। अंतर्राष्ट्रीय कला मेला इतने बड़े पैमाने पर पहली बार हो रहा है। लेकिन इतनी कोशिशों के बावजूद मेले में मीडिया और आम लोगों की दिलचस्पी कम होने की वजह से यहां आए कलाकारों में कुछ मायूसी का भाव नज़र आ रहा है। तमाम कलाकार ये कहते नज़र आ रहे हैं कि अभी तक उनके स्टॉल का खर्च तक नहीं निकल पाया है, लेकिन उम्मीद है 18 फरवरी तक स्थितियां बदलेंगी। उन्हें लगता है कि जितने बड़े पैमाने पर यह कला मेला आयोजित किया गया है, उसकी जानकारी लोगों तक पहुंची ही नहीं है, न तो विज्ञापन है और न ही प्रचार का कोई और ज़रिया।
तमिलनाडु के कुंबाकोनम से आए कलाकार वीएसडी अरुलासरन अपने नाखून से बेहतरीन कलाकृतियां बनाते हैं, वाटर कलर से ऐसे थ्री डी इफेक्ट वाले चित्र बनाते हैं कि आप हैरान रह जाएंगे। लेकिन एक हफ्ते में उन्हें यहां आकर कोई खास उत्साह नज़र नहीं आया। कहते हैं कि इक्का दुक्का लोग आते हैं, उनसे नाखून वाले अपने पोर्टरेट बनवाते हैं और ‘वाह वाह’ कहकर चले जाते हैं।
दिल्ली आर्ट कॉलेज की तीन बहनों नेहा, मीनू और मधुमिता वर्मा ने ‘थ्री सिस्टर्स’ नाम का ग्रुप बनाया और अपनी कलाकृतियों, वास्तुशिल्प और म्युरल्स का बेहतरीन संकलन पेश किया है। इन बहनों का कहना है कि इस मेले में शामिल होना उनके लिए एक बड़े अनुभव की तरह है और इससे उन्हें काफी उम्मीदें हैं।
मेरठ के रंजन कुमार ने अपनी सीरीज़ में मुख्य रूप से नीले रंग का इस्तेमाल करके लड़कियों की ताकत और उनके आत्मसम्मान की खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है। वहीं प्रगति गुप्ता और गरिमा मिश्रा ने एक्रेलिक और ऑयल पेंट्स का इस्तेमाल तो किया ही लेकिन थ्रेड (धागों) का बेहतरीन इस्तेमाल करके थ्री डी इफेक्ट के साथ शानदार डिजाइन बनाकर कला प्रेमियों को प्रभावित कर रही हैं। इनका कहना है कि इस मेले में शामिल होकर उन्हें लोगों की तारीफों से बेहद हौसला मिला है। अभी तक कोई काम बिका नहीं है लेकिन उम्मीदें बरकरार हैं। उसी तरह सात कलाकारों ने मिलकर मजलिस नाम का एक ग्रुप बनाया है और इनकी कलाकृतियां भी बहुत उम्मीदें बंधाती हैं। ग्रुप की एक अहम कलाकार लेखा सभरवाल कला क्षेत्र में बढ़ती भीड़, प्रतिस्पर्धा के दौर में एक साथ मिलकर काम करने को भी एक चुनौती बताती हैं, लेकिन उनका मानना है कि नए कलाकारों को आगे लाने के लिए उनकी कोशिशों को ये मेला एक रचनात्मक मंच दे रहा है।
वरिष्ठ फोटोग्राफर नरेश शर्मा ने यहां अपनी माइक्रो फोटो पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगाई है। उन्होंने फोटो पत्रकारिता करते करते बदलती तकनीक के साथ फोटोग्राफी और कला की ये नई विधा विकसित की है। उनके चित्रों में कुछ नए आयाम हैं और प्रकृति को कैमरे से देखने का एक नया नज़रिया भी जिसे तकनीक के ज़रिये किसी पेंटिंग की तरह पेश किया गया है। नरेश जैसे कई नए कलाकारों को इस मेले में एक मंच मिला है।
सरकार ने अभी तक नहीं दिया फंड
ललित कला अकादमी के प्रशासक के एस कृष्णा सेट्टि निजी तौर पर हर रोज़ अपना सारा वक्त मेले में बिताते हैं और कलाकारों के साथ मिलकर उनका हौसला बढ़ाते हैं। लेकिन सेट्टि इस बात से आहत हैं कि इतने बड़े आयोजन के लिए सरकार या संस्कृति मंत्रालय ने अभी तक एक पैसा भी नहीं दिया है। तकरीबन सवा तीन सौ करोड़ खर्च करके अकादमी ने अपनी कोशिशों की बदौलत पहली बार इतना बड़ा आयोजन किया है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए भी जो संस्थाएं आई हैं, उनमें से ज्यादातर अपना खर्च खुद उठा रही हैं।
दरअसल ललित कला अकादमी ने इतने बड़े पैमाने पर ये आयोजन करके कलाकारों को एक बड़ा मंच देने की कोशिश की है। हालांकि हर स्टॉल की कीमत तकरीबन 35 हजार रुपए है और कुल मिलाकर यहां 325 स्टॉल्स हैं। किसी कलाकार ने अकेले अपना स्टॉल लिया है तो कुछ कलाकारों ने मिलकर आपस में खर्च बांट लिया है। इनमें से ज्यादातर कलाकारों का कहना है कि उन्हें अपनी प्रदर्शनी लगाने के लिए दिल्ली की किसी गैलरी में मोटा किराया चुकाना पड़ता है, लेकिन यहां करीब 15 दिनों के लिए 35 हजार रूपए में अपनी प्रदर्शनी लगाना महंगा नहीं है। उन्हें लगता है कि अगर इन पंद्रह दिनों में उनकी कुछ कलाकृतियां भी बिक जाएं तो स्टॉल का खर्च भी निकल जाए और कुछ फायदा भी हो जाए। दूसरे, इस दौरान कुछ बड़े समूहों और कलाप्रेमियों के बीच अपनी पहचान बनाने में भी कामयाबी मिलेगी जो भविष्य के लिए फायदेमंद साबित होगी।
(अमर उजाला में प्रकाशित अतुल सिन्हा की रिपोर्ट)
Posted Date:February 16, 2018
1:44 pm