कृष्णा सोबती हिंदी की पहली सम्पूर्ण राजनीतिक लेखिका थीं

रज़ा फाउंडेशन के सातवें युवा कार्यक्रम का समापन, कृष्णा सोबती के बारे में कई तथ्य आए समाने, विभाजन पर लिखने वाली सबसे अहम लेखिकाओं में रहीं सोबती, प्रगतिशील लेखक संघ ने क्यों नहीं किया अपने अधिवेशन में विभाजन का विरोध…

आपको जानकर ताज्ज़ुब होगा कि आजादी  के बाद प्रगतिशील लेखक संघ के  पहले सम्मेलन में विभाजन के खिलाफ कोई निंदा प्रस्ताव पेश नहीं  किया गया था। प्रसिद्ध आलोचक और मीडिया के जानकार जगदीश्वर ने रज़ा फाउंडेशन की ओर से आयोजित युवा कार्यक्रम में यह सनसनीखेज़ जानकारी दी। कृष्णा सोबती की जन्मशती पर आयोजित इस समारोह में उन्होंने विभाजन और सोबती जी के लेखन विषय पर एक पर्यवेक्षक के रूप में टिप्पणी करते हुए यह बात कही।

उन्होंने सोबती को पहला समग्र राजनीतिक लेखक बताते हुए कहा कि हिंदी पट्टी के लेखकों ने विभाजन पर कोई कहांनी नहीं लिखी जबकि पंजाब से जुड़े लेखकों भीष्म साहनी, मोहन राकेश, कृष्णा सोबती आदि ने कहानियां लिखीं लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य  हिंदी पट्टी के लेखकों ने नहीं लिखा। इतना ही नहीं 1947 में प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन में 22 प्रस्ताव पारित किए गए थे जिनमें एक भी प्रस्ताव विभाजन के खिलाफ पारित नहीं किया गया था जबकि दंगे में इतने लोग मारे गए थे।

उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने शोध कार्य के दौरान डॉक्टर नामवर सिंह से भी बात की थी क्योंकि वे उस सम्मेलन के गवाह थे। श्री चतुर्वेदी ने कहा कि उन्होंने पी सी जोशी के दस्तावेजों को जे एन यू की लाइब्रेरी में देखा था जिसके आधार पर वह यह बात कह रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि कृष्णा जी के लेखन को जेंडर की दृष्टि से न देखा जाए बल्कि वह हिंदी की पहली राइटर हैं जो  समग्र राजनीतिक हैं उनकी राजनीतिक चेतना में साझी संस्कृति है और उन्होंने अपने लेखन में मनुष्य को केंद्र में रखा है।

प्रसिद्ध आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने  प्रख्यात आलोचक लुसिया गोल्डमैन को उद्धरित करते हुए सोबती जी को  ट्रैजिक विज़न की लेखिका बताया और कहा कि उन्होंने अपने लेखन में लोकतंत्र की रक्षा की है।

उन्होंने  विभाजन पर लिखे गए  साहित्य  का जिक्र करते हुए राही मासूम रज़ा और कुर्रतुल-एन-हैदर का जिक्र किया और कहा कि आग का दरिया 1956 की जगह 2016 में लिखा गया होता तो उसे नोबल प्राइज मिल गया होता।

प्रसिद्ध आलोचक अपूर्वानंद ने पर्यवेक्षक के रूप में वक्ताओं के पर्चों का समाहार करते हुए कहा कि विभाजन की पृष्ठभूमि 1920-22 में ही बनने लगी थी जिसकी ओर इशारा प्रेमचन्द के लेखन में मिलता है। ईदगाह को छोड़कर किसी लेखक की रचनाओं में मुस्लिम समाज उस दौर में नहीं मिलता जबकि मुस्लिम रचनाकारों ने  हिन्दू  त्यौहारों पर लिखते हुए कृष्ण पर काफी लिखा है। जबकि मुस्लिम त्यौहारों पर हिंदी के लेखकों ने बहुत कम लिखा। कृष्णा जी का लेखन साझा संस्कृति की बात करता है।

चर्चित कवि विशाल श्रीवास्तव और संजय जायसवाल ने आर्य समाज आंदोलन और हिंदी नवजागरण में भी साम्प्रदायिक तत्वों की तरफ संकेत दिया और कहा कि विभाजन आज भी जारी है।

दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में दो दिनों तक चली इस गोष्ठी में विचारोत्तेजक बातें हुईं और  युवा लेखकों ने शोधपरक और कसे हुए पर्चे पढ़े।

7 रंग के लिए पत्रकार कवि अरविंद कुमार की रिपोर्ट

Posted Date:

February 21, 2025

10:10 am Tags: , , , ,

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