साहित्योत्सव में एक वेश्या की दर्दनाक कहानी सुनाई गई

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के पूर्व प्रमुख और गोआ के उप राज्यपाल के पूर्व सलाहकार एपी माहेश्वरी ने साहित्योत्सव में वेश्याओं के जीवन की दर्दनाक कहानी सुनाकर समाज की असलियत को उजागर किया और लेखकों से जमीनी हकीकत के मद्देनज़र साहित्य में बदलाव लाने की अपील की। 1984 बैच के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी माहेश्वरी ने सामाजिक न्याय और साहित्य विषय पर भाषण देते हुए कहा कि अच्छा साहित्य वही है जो कम से कम सौ साल पढ़ा जाए।

उन्होंने एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि जब वह बांदा में कार्यरत थे तो उन्होंने एक वेश्या को जिस्मफ़रोशी करते हुए पकड़ा था। उससे उन्होंने पूछा कि आखिर तुम यह धंधा क्यों करती हो। उस महिला ने कहा कि उसे जिस्मफ़रोशी का शौक नहीं बल्कि वह मजबूरी के लिए करती है। अगर नहीं करेगी तो खाएगी क्या। बच्चे पालेगी कैसे क्योंकि उसके पति के पास नौकरी नहीं। एक ट्रक वाला मुझे बिस्तर गर्म करने के लिए 50 रुपए देता है तो मैं अपने परिवार का पेट भरती हूँ। मैंने जब उसकी कहानी सुनी तो मैँ दंग रह गया। मैंने लखनऊ में यह कहानी शिवानी जी को सुनाई तो उन्होंने कहा कि आप एक कहांनी लिखिए।

दिल्ली विश्विद्यालय के श्रीराम कालेज ऑफ कामर्स से पढ़े और समाज विज्ञान में पीएचडी कर चुके श्री माहेश्वरी ने एक और दर्दनाक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा कि जब वह बिजनौर में थे तो एक दिन एक महिला मिंलने आयी। उसने बताया कि वह थाने के कई बार चक्कर लगा चुकी लेकिन उसके पति के खिलाफ कोई करवाई नहीं हो रही जिसने उसे जलाकर मारने का प्रयास किया। उसने मुझे बताया कि उसके पति की सांठगांठ नेताओं से है इसलिए पुलिस वाले मिले हुए हैं और कुछ करते नहीं। उस महिला ने  मेरी आँखों मे आंखें डालकर मुझसे कहा कि साहब अगर आपकी बहन के साथ ऐसा होता तो आप क्या करते। यह सुनकर मैं निरुत्तर हो गया। मेरे काटो तो खून नहीं।

उन्होंने कहा कि उस महिला की बात सुनकर उसके पति के खिलाफ करवाई के आदेश किये। गिरफ्तारी हुई पर बाद में छूट गया। फिर वहां से मेरा भी तबादला हो गया। राष्ट्रपति पदक से सम्मानित श्री माहेश्वरी ने कहा कि वह राजस्थान के रहनेवाले हैं। भंवरी देवी की घटना ने देश को हिला दिया पर उसे न्याय नहीं मिला।

उन्होंने कहा कि लेखक को इस बदलती हकीकत पर साहित्य लिखना चाहिए। साहित्य को अपना रुख  मोड़ना चाहिए। उन्होंने समाज के हाशिये के सहित्य का जिक्र करते हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि का उल्लेख किया और उनके उपन्यास जूठन का हवाला देते हुए कहा कि यह देश लोगों का जूठन खाकर बड़ा हुआ है। उन्होंने साहित्य में हो रहे बदलावों की चर्चा करते हुए कहा अब नया साहित्य आ रहा है। थर्ड जेंडर की कहानियां आ रही हैं। अब ज़माना ए आई के डिजिटल साहित्य का है।

अरविंद कुमार की रिपोर्ट

Posted Date:

March 10, 2025

9:49 pm

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