जाने माने कवि ज्ञानेंद्रपति को इस बार का नागार्जुन सम्मान दिया जा रहा है। इससे जुड़ी विस्तृत जानकारी मशहूर कवि और निर्णायक मंडल के सदस्य मदन कश्यप ने मीडिया को दी। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक —
नागार्जुन स्मृति सम्मान निर्णायक समिति ने आभासी बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि इस वर्ष का जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि श्री ज्ञानेन्द्रपति को दिया जाए। जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान निर्णायक समिति के सदस्य हैं— मैनेजर पाण्डेय, मदन कश्यप, उपेन्द्र कुमार, संजय कुन्दन एवं देवशंकर नवीन। ज्ञातव्य हो कि कल (ज्येष्ठ पुर्णिमा तदनुसार 24 जून’21) बाबा नागार्जुन की जन्मतिथि है, जिसकी पूर्व संध्या पर इस निर्णय की घोषणा की जा रही है।
अपनी अनूठी काव्यभाषा में रचनात्मक प्रतिरोध के लिए सुप्रसिद्ध कवि ज्ञानेन्द्रपति निराला, नागार्जुन और मुक्तिबोध की काव्य संवेदना को विस्तार देने वाले कवि हैं। 01 जनवरी 1950 को पथरगामा, झारखंड में जन्मे श्री ज्ञानेन्द्रपति के ‘आँख हाथ बनते हुए’ (1970); ‘शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है’ (1981); ‘गंगातट’ (2000); ‘संशयात्मा’ (2004); भिनसार (2006), गंगा- बीती(2019), कविता भविता (2020) कविता-संकलन प्रकाशित हैं। इसके अलावा पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य), एकचक्रानगरी (काव्य-नाटक) कवि ने कहा (कविता संचयन), मनु को बनती मनई (2013) पुस्तकें प्रकाशित हैं।
ज्ञानेन्द्रपति को वर्ष 2006 में ‘संशयात्मा’ कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें ‘पहल सम्मान’, ‘बनारसीप्रसाद भोजपुरी सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान, सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं।जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि की स्थापना सन् 2017 में बाबा नागार्जुन की स्मृति में हुई थी जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पाण्डेय हैं। इस से पहले जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान से हिन्दी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, राजेश जोशी, आलोक धन्वा और विनोद कुमार शुक्ल सम्मानित हो चुके हैं।
कवि ज्ञानेंद्रपति को नागार्जुन सम्मान मिलने पर तमाम लोगों ने शुभकामनाएं दी हैं, इनमें से एक अहम प्रतिक्रिया है पत्रकार, कलाकार देवप्रकाश चौधरी की … देवप्रकाश जी लिखते हैं….
बनारस से समरस कवि ज्ञानेन्द्रपति को #नागार्जुन_सम्मान पुरस्कार की शुभकामनाएं…
कवि ज्ञानेंद्रपति से मेरा पहला परिचय- हालांकि कुछ देर से- उनकी एक कविता ‘ट्राम में एक याद’ से हुआ था।कविता की कुछ पंक्तियां हैं-
चेतना पारीक कैसी हो?
पहले जैसी हो?
कुछ-कुछ खुश
कुछ-कुछ उदास
कभी देखती तारे
कभी देखती घास
चेतना पारीक, कैसी दिखती हो?
अब भी कविता लिखती हो?
कविता के बाद कवि को जानने की इच्छा हुई तो पता चला कि मेरे शहर गोड्डा से भी उनका रिश्ता है। गोड्डा के पथरगामा में पैदा हुए। बाद में बनारसी हुए और फिर बनारस को जीते रहे। फिर तो फोन पर लंबी बातें भी होती रहीं। बनारस आने के कई न्यौते मेरे पास आज भी उधार हैं।
कहते हैं , बनारस में लोग धीरे-धीरे चलते हैं। धीरे-धीरे बोलते हैं। शाम वहां धीरे-धीरे होती है।
कवि ज्ञानेंद्रपति भी इस ‘धीरे-धीरे’ के धर्म का निर्वाह करते हैं। वे धीरे-धीरे बोलते हैं। धीरे-धीरे चलते हैं। आप उनकी कविताओं में अचानक दाखिल नहीं हो सकते। कभी हो भी गए तो यह अतिक्रमण होगा। उनकी कविताओं में धीरे-धीरे उतरने का जो सुख है, उसमें पाठक के स्तर पर किसी संतुलन को साधने की जरूरत नहीं होती है। कवि ने भले ही लिखने में अनेक स्तरों पर संतुलन साधा हो।
कवि #ज्ञानेन्द्रपति की कविताओं के भूगोल में हमेशा मुझे उसमें रचे-बसे जीवन की कथा मिलती है…लेकिन अगर आप ‘फास्ट डिलवरी मूड’ वाले हैं और हमेशा ‘संक्षेप’ को ही ग्रहण करने के शौकीन हैं …तो शायद इनकी कविताएं आपको उतनी बातें न बता पाएं, जितनी बातें ‘धीरे-धीरे के धर्म’ में गूंजती हैं।
कवि को एक बार फिर से पुरस्कार की शुभकामनाएं
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पत्रकार लेखक और जनसत्ता के पूर्व संपादक अमित प्रकाश सिंह ने अपने फेसबुक वॉल पर ज्ञानेन्द्रपति को कुछ इस तरह बधाई दी ….
नागार्जुन के बहाने कवि ज्ञानेन्द्रपति को बधाई
इस पुरस्कार से कविता का कद बढा। जिन्हें मिला वे तो जाने-माने हैं ही पर उनकी कविता की सुकीर्ति जरूर फैली ।
एक अर्से से कवि और कविता को लेकर सत्ता और जनता में खासी उधेडबुन है।अभी गुजराती में पारुल खक्कर की कविता ‘ शववाहिनी गंगा’ चर्चा में आई।इसमें छंद,लय,प्रवाह ,और विचार पर चर्चा की बजाए कवि की रचना को ‘अर्बन लिटररी नक्सलिज्म ‘ घोषित कर दिया गया ! ऐसी हालत में कवि ज्ञानेंद्र पति को मिला नागार्जुन पुरस्कार ताजी हवा का झोंका ही है।
कवि ज्ञानेंद्रपति एक अर्से से वाराणसी में हैं ।गंगा और काशी से उनका नाभि-नाल का अब संबंध है।हालांकि वे मूल तौर पर झाडखंड प्रदेश के गोड्डा जिले में गांव पथरगामा के हैं। पर वाराणसी में आने के बाद से वे देखते रहे हैं मोक्ष दायिनी गंगा और हर हर महादेव को।
हर पर्व ,अनुष्ठान में सतुआ-पिसान लेकर गंगा तीर्थ करने वालों को भी वे अच्छे से जानते हैं। इनके मनोभावों को समझते बूझते हुए ही एक प्रमुख भक्त ने इस इलाके को अपना बनाया।कहा,मां गंगा ने बुलाया है। उसकी बात का मान रखा गया।उन्होंने यहां सुंदरीकरण अभियान छिडवाया।हर हर महादेव के आसपास की संकरी गलियां साफ हो गईं और शाही पर्यटकों के लिए गंगा का रीवर साइड वीजन सहज हो गया ।पर गंवई तीर्थयात्री की पदपरिक्रमा खासी जरूर बढ गई।
कहते हैं कवि ज्ञानेंद्रपति निराला की परंपरा और रचनात्मक प्रतिरोध के कवि है। क्या है रचनात्मक प्रतिरोध? क्या आशय है ? क्या कविता को विभिन्न खांचों में रखना जरूरी है? फिर वाल्मीकि,कालिदास और तुलसी को भी उन्हीं खानों में रखिए।रचना का स्वभाव ही प्रतिरोध है। जो कवि नहीं हो पाते वे चारण होकर कुछ समय के लिए ही महान दिखते हैं!
ज्ञानेंद्रपति की कविताओं में मनमाटी का जीवन राग उभरता है। उनकी कविता औंजते आंगन की तस्वीर है।जिसे पाठकों ने देखा है। कविता में उनकी ‘ तुम ‘ । जिसकी छाती में उतने शोकों ने बनाए बिल , जितनी खुशियों ने सिरजे घोंसले। घोंसले अनंत संभावनाओं की ओर इशारा करते हैं। यह है कवि से पाठक को मिला ‘स्पेस ।
वाराणसी मोक्ष नगरी है।कवि ज्ञानेंद्रपति नगर की इस मनस्थिति को समझते हैं।पर उनका नजरिया अलग है।
अंधेरे में चक्राकार गंगा किनारे के पक्के घाटों का उल्लेख करते हैं।कहते हैं , सभी-की-सभी घाट -तटवासी बत्तियां कि जैसे छज्जों से झांकती बच्चियां/ उत्सुकता से सुनती हैं सांस रोके / संध्या भाषा में यह मूक संभाषण / समझ नहीं पातीं, लेकिन समझना चाहती जीवनाशय ।
महानगर कोलकाता की विकलता कवि समझता है। भीड भरे कोलाहल ,रंगों से भरपूर शहर की रंगी-पुती ट्राम में उसे याद आती है वह छोटे कद की लडकी ।उस याद में वे कहीं खो जाते हैं।प्रकृति से दूर नहीं है कवि।उसे अभी उम्मीद है कि उस लडकी के पांवों के तलुओं (?) की गोद में होगी हरियाली !
Posted Date:
June 23, 2021
10:16 pm