आपदाओं से जुड़े मिथकों को तोड़ती एक प्रदर्शनी

अपने देश में हादसों या प्राकृतिक आपदाओं पर भी कम राजनीति नहीं होती। चाहे वो भूकंप की त्रासदी हो या केदारनाथ जैसी आपदाएं, बाढ़ की विभीषिका हो या दंगों के बाद की कड़वा सच। हर मौके का सियासी इस्तेमाल होता रहा है। राहत और बचाव के नाम पर कोशिशें कई होती हैं, श्रेय लेने की होड़ भी मची रहती है, लेकिन ईमानदारी से काम करते हुए प्रभावित लोगों के दुख दर्द को समझना, उन्हें सच्ची मदद देना, उनके दर्द को महसूस करना और उनके साथ उन्हीं परिस्थितियों में लंबा वक्त बिताना आसान काम नहीं।

अगर आप ‘गूंज’ के संस्थापक अंशू गुप्ता के काम को देखेंगे या उनकी तस्वीरों को महसूस करेंगे तो आपको सचमुच ये समझ में आ जाएगा कि मिथक और वास्तविकता में कितना फर्क होता है। अंशू मूलत: एक फोटोग्राफर रहे हैं। नब्बे के दशक में उन्होंने भारतीय जनसंचार संस्थान से फोटोग्राफी और विज्ञापन-जनसंपर्क के क्षेत्र में औपचारिक पढ़ाई की, कुछ साल प्रतिष्ठित अखबारों के लिए काम भी किया, लेकिन उनका मन कहीं और था। उन्हें हमेशा लगता कि जो करने वो आए थे, नहीं कर पा रहे हैं। तब उन्होंने तय किया कि अब उन्हें त्रासदी और आपदाओं वाले इलाकों में लंबा वक्त गुज़ारना है, उन्हें महसूस करते हुए उनके दुख दर्द को कम करने की कुछ सार्थक कोशिश करनी है। गूंज नाम की संस्था बनाई और फिर करीब दो दशक पहले अपना सफर शुरू किया।

पिछले दिनों दिल्ली का ललित कला अकादमी उनकी इस यात्रा का गवाह बना। उनके जीवंत चित्रों की प्रदर्शनी देखकर कोई भी समझ सकता है कि जिन हादसों, आपदाओं और विपदाओं को वो अखबारों में पढ़ते हैं, टीवी में देखते हैं या सियासी नज़र और बयानों के ज़रिये समझते हैं, वो वास्तव में वैसे नहीं हैं। हकीकत कुछ और है। पीड़ितों के दर्द को आप महज़ मुआवजे से या तात्कालिक राहत देकर दूर नहीं कर सकते।

प्रदर्शनी का नाम दिया गया था – आपदाएं – मिथक और वास्तविकताएं – ग्राउंड ज़ीरो से सीखने के दो दशक। यहां के 45 चित्रों को आप गौर से देखें। हर चित्र की अपनी अलग कहानी है। एक – एक चित्र आपको उस दर्द का एहसास भी कराता है, जिसे वहां के लोग सचमुच महसूस करते हैं, उन कोशिशों को भी दिखाता है जो ऐसी भीषण परिस्थितियों में भी ज़िंदगी की नई आशा जगाता है, राहत के कामों का सच दिखाने के साथ आदमी को मदद के नाम पर भीख देने जैसी मानसिकता को भी सामने लाता है।

मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित अंशु गुप्ता ने ये तस्वीरें उन इलाकों में लंबा वक्त काटने के दौरान खुद खींची हैं जो आपको कश्मीर से लेकर केरल, असम से लेकर गुजरात तक और ज्ञात से लेकर अज्ञात समझी जाने वाली आपदाओं से रुबरु कराती हैं. इस प्रदर्शनी का मकसद इन आपदाओं के इर्द गिर्द घूनने वाले मिथकों, सबूतों के साथ इसकी हकीकत और इन आपदाओं को लेकर पनपी गलतफहमियों को दूर करना है।

अंशु बताते हैं कि हम अक्सर तमाम विसंगतियों या सामाजिक बुराइयों के लिए दूसरों पर दोष मढ़ देते हैं, सियासत और नेताओं को ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं, लेकिन अपने अंदर कभी नहीं झांकते। बदलाव की शुरूआत तो हम सबको खुद से करनी होगी।

गूंज की सह- संस्थापक मीनाक्षी गुप्ता का मानना है कि यह महज प्रदर्शनी नहीं है, यहां लगाए गए हर चित्र के पीछे एक सोच और सच्चाई है जिसे खास तौर से उनलोगों को जरूर देखना चाहिए जिन्होंने कभी आपदा-राहत और पुनर्वास के काम में योगदान दिया है या ऐसे कामों से जुड़े रहे हों।

Posted Date:

April 2, 2019

7:43 pm Tags: , , ,
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