गिरिजा देवी का जाना
बनारस घराना आज एकदम सूना हो गया। ठुमरी, दादरा और उपशास्त्रीय गायन की तमाम शैलियों की महारानी गिरिजा देवी का जाना एक गहरे आघात जैसा है। उनकी जीवंतता, उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व की सरलता किसी को भी अपना बना लेने वाली रही है। वो हमारे घर की एक ऐसे बुज़ुर्ग की तरह लगती थीं मानो उनसे हमारी कई कई पीढ़ियों को बहुत कुछ सीखना हो। आवाज़ की वो गहराई, जहां ठुमरी एक नई परिभाषा के साथ आपके भीतर तक उतर जाती है और रागों के वो प्रयोग जो एक जादू की तरह आपको बांध लेते है। सचमुच गिरिजा देवी का इस तरह जाना एक गहरे शून्य की तरह है।…
गिरिजा देवी की चर्चित ठुमरी सुनिए के लिए यह ऑडियो क्लिप प्ले कीजिए..
वो कैसे हमारे बीच से चली गईं… कुछ अखबारों ने क्या छापा .. आप भी पढ़िए…
भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत में ठुमरी साम्राज्ञी के रूप में प्रख्यात पद्मविभूषण गिरिजा देवी का मंगलवार को कोलकाता के बिरला अस्पताल में रात करीब साढ़े नौ बजे निधन हो गया। सुबह तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
गिरिजा देवी की नतिनी अनन्या दत्ता ने बताया कि सुबह नानी ने खूब बात की थी। फिर थोड़ी तबियत खराब होने की बात कही। उन्हें अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने जांच के बाद भर्ती कर लिया। देर शाम थोड़ा सुधार हुआ तो लेकिन फिर रात में करीब आठ बजे स्थिति नाजुक हो गयी। रात को साढ़े नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
बनारस घराने की सशक्त आवाज और संगीत की जीवंत मिसाल रहीं गिरिजा देवी काशी को संगीत का मुख्य केन्द्र बनाने की इच्छा रखती थीं। 8 मई 1929 को बनारस में जन्मी गिरिजा देवी को 2016 में पद्मविभूषण सम्मान से नवाजा गया था।
संक्षिप्त परिचय
जन्म- आठ मई 1929
स्थान- वाराणसी
मृत्यूः 24 अक्तूबर, 2017,
स्थान-कोलकाता
पिता- रामदेव राय जमींदार थे। वह ही गिरिजा के पहले गुरु भी थे। बाद में पांच साल की उम्र में खयाल और टप्पा गायकी के लिए सरजू प्रसाद मिश्रा की शरण में पहुंचीं। नौ वर्ष की आयु में गिरिजा देवी ने फिल्म ‘याद रहे’ में अभिनय भी किया।
गिरिजा देवी को मिले सम्मान
पद्मश्री- 1972
पद्मभूषण- 1989
पद्मविभूषण- 2016
संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड- 1977
महासंगीत सम्मान- 2012
संगीत सम्मान अवार्ड-
गीमा अवार्ड- 2012 (लाइफ टाइम अचीवमेंट)
Posted Date:
October 25, 2017
12:03 am