इसके बाद के सत्र में युद्धों की पीड़ा पर फिर से चर्चा हुई। इस सत्र को बांग्लादेश के प्रोफेसर मंजरुल इस्लाम, भूटान के डॉ रिनज़ीन रिनज़ीन और भारत से डॉ सुजाता प्रसाद और प्रभु चावला ने अपने विचार रखे।
मजरुल इस्लाम ने युद्ध पर लिखी गई कविताएं पढ़कर युद्ध में होने वाली संवेदनहीनता को बताया। सुजाता प्रसाद ने सूडान सहित दुनिया के अनेक देशों में फैली हिंसा और युद्ध की चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘हिंसा अनेक देशों में फैली हुई है मगर हम उस ओर बहुत कम ध्यान देते हैं।” डॉ रिनज़ीन रिनज़ीन ने कहा, “हमारी दुनिया में पहले से ही इतनी समस्याएं हैं, हमें उन्हें सुलझाने की दिशा में काम करना चाहिए।”
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादकीय निदेशक प्रभु चावला ने अधिकतर युद्धों के लिए पोलिटिकल लीडर्स की मान्यताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कोई किसी देश, धर्म या परिवार में पैदा हुआ है तो यह गुनाह नहीं है।” युद्ध कभी खत्म हो सकता है या नहीं इस प्रश्न के उत्तर में चावला ने कहा, “युद्ध कभी खत्म नहीं हो सकते क्योंकि अब यह अपनी टेरिटरी और बिजनेस बढ़ाने का जरिया बन चुका है।”
कार्यक्रम के अगले सत्र में अनुवाद के महत्व पर चर्चा हुई। अनुवाद की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डॉ बिमल गुहा ने कहा, “अनुवाद सिर्फ साहित्य के लिए जरूरी नहीं है बल्कि अन्य क्षेत्रों की जानकारियां प्राप्त करने के लिए भी जरूरी है। जब हम कविताओं का अनुवाद कर रहे हों तो हमें कविताओं के भावों की समझ भी होनी चाहिए। जैसे कला को समझने के लिए पारखी नजर चाहिए वैसे ही कविता का अनुवाद करने के लिए भावनाओं की समझ होनी चाहिए।”
प्रो प्रवीण कुमार ने कहा, “अंग्रेजों ने सिर्फ एक भाषा अंग्रेजी को लादकर अलग -अलग स्थलों के साझे सच को नष्ट करने का काम किया। हर जगह की संस्कृति के कुछ मूल तत्व होते हैं जिसे समझने के लिए अनुवाद जरूरी है।” कवि, लेखक फकरुल आलम ने अपनी अनूदित कविताओं का पाठ कर अनुवाद के महत्व पर प्रकाश डाला।
इसके अगले सत्र में नेपाल, भूटान और भारत के कवियों ने कविता पाठ किया। मुकुंदा प्रयास, डॉ के वी डोमिनिक, रोशन परियार, कविता सिंघल, रॉबिंसन और प्रो अभी सुबेदी ने अपनी- अपनी कविताओं का पाठ कर श्रोताओं की तालियां बटोरीं।
आखिरी सत्र में श्रीलंका की कंचना प्रियकंथा और प्रो एस पथमनाथन ने कहानी और आलेख पढ़ा। इस सत्र में महात्मा गांधी की पोती तारा गांधी भट्टाचार्य भी शामिल हुईं। उन्होंने फोसवाल महोत्सव आयोजित करने के लिए लेखिका अजीत कौर की प्रशंसा की।
December 5, 2023
8:49 pm Tags: फोसवाल साहित्योत्सव, युद्ध और साहित्य, सार्क साहित्य महोत्सव