कांग्रेस को क्यों याद नहीं आते फ़िरोज़ गांधी

 

कांग्रेस जब भी अपने पूर्वजों की बात करती है यूपी के इलाहाबाद का ज़िक्र ज़रुर उसमें आता  है जिसमे वहां का आनंद भवन और स्वराज भवन भी शामिल हैं। इसी की गवाह बनती है ये ऐतिहासिक इमारतें जिनके चप्पे चप्पे में स्वतंत्रता संघर्ष की नीति के चिंतन मनन की खुशबू आती है।
नेहरू गांधी की इस विरासत से जुड़ा एक और स्थान भी हर साल आठ सितम्बर को बरबस ही जेहन में कौंध जाता है जिसकी पहचान गांधी नेहरू परिवार के सदस्य फिरोज़ गांधी के साथ जुड़ी हुई है। यह विरासत है शहर के ममफोर्ड गंज में स्थित वह पारसी कब्रिस्तान जिसकी एक कब्र का रिश्ता पंडित जवाहर लाल नेहरु के दामाद उस फिरोज़ गांधी से है जो अपनी  बेदाग़ और निष्पक्ष जनप्रिय नेता की छवि के रूप में इतिहास में दर्ज हैं।
एक बार फिर  इस बार शहर के ममफोर्ड गंज की यह  पारसी कब्रिस्तान गांधी नेहरू परिवार के सदस्यों की श्रद्धांजलि के कुछ पुष्पों की बाट जोहती रही लेकिन आखिर मायूसी ही हाथ लगी। कांग्रेस के पांच स्थानीय नेता यहाँ आकर फिरोज गांधी की कब्र में पुष्पांजली अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर चले गए। जाते जाते इन स्थानीय नेताओं को गांधी नेहरू परिवार के किसी सदस्य का फिरोज गांधी की कब्र में फिर श्रद्धांजलि के लिए न आ पाना मन को कचोट गया। इन नेताओं के जेहन में वही स्मृतियाँ कौंधने लगीं जिसे लेकर देश की संसद और इस देश के लोकतंत्र में कांग्रेस के नेता और नेहरु जी के दामाद फिरोज गांधी की पहचान बनी।
देश के आज़ाद होने के बाद  फ़िरोज 1952 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित होकर जबरदस्त मार्जिन से जीतकर आये। संसद में अपनी ही पार्टी की गलत नीतियों का मुखर विरोध का स्वर बन गए फिरोज से उनके अपने ही ससुर नेहरु से दूरियाँ तक बन गईं लेकिन उन्होंने सच का साथ नहीं छोड़ा।
सांसद के रूप में उन्होंने देश के कई औद्योगिक घराने उच्च पदस्थ कांग्रेसी नेताओं व मंत्रियों की अनेक वित्तीय अनियमितताओं का खुलकर पर्दाफाश किया। फिरोज ने 1955 में एक बैंक व बीमा कम्पनी के चेयरमैन रामकृष्ण डालमिया का  मामला उठाया और उनके द्वारा निजी लाभ के लिए की जा रही वित्तीय हेराफेरी की पोल भी खोली जिसके बाद फिर तो डालमिया को कई महीने जेल में गुजारना  पड़ा। देश में राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया की शुरुआत के सूत्रधार भी फीरोज ही थे जब  1956 में उनके प्रयास से 245 जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इस तरह फिरोज को राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया शुरू कराने का श्रेय दिया जा सकता है।
1958 में फिरोज गांधी ने सरकार नियंत्रित बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को लपेटे में लेते हुए हरिदास मूंदड़ा घोटाले का पर्दाफाश किया, जो आज़ाद भारत का पहला घोटाला माना जाता है। इस घोटाले के दोषियों पर कार्रवाई की गई जिसमें तत्कालीन  वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी को इस्तीफा तक देना पड़ा। फिरोज ने  केंद्र सरकार से टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी  के राष्ट्रीयकरण की मांग भी की थी क्योंकि उनके मुताबिक़ टाटा कंपनी जापानी सरकार से रेल इंजनों के ज्यादा दाम वसूल रही थी।
कांग्रेस के अन्दर मूल्यों और ईमानदारी के साथ निष्पक्षता के साथ पार्टी के अलग पहचान बनाने वाले फिरोज गांधी को उनके  परिवार के सदस्यों की तरफ से वह सम्मान और सहानुभूति नहीं मिली जो उनके बेटों को कई तरह के आरोपों के लगने के बाद भी मिलती रही। फिरोज से जुडी इसी सोच को लेकर नेहरू जी से लेकर आगे आने वाली पीढ़ी की वह सुनियोजित सोच जिसकी  रस्म अदायगी  आज  तक  गांधी नेहरू परिवार के शुभ चिन्तक नेता करते आ रहे हैं और उन्हें फ़िरोज के कब्र में भी दो पुष्प अर्पित करने से गुरेज रहता है।
♦ प्रयागराज से दिनेश सिंह की रिपोर्ट 
Posted Date:

September 9, 2021

11:19 am Tags: , , , , , , , ,
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