रंगमंच के पर्याय थे इब्राहिम अल्काजी
भारतीय रंगमंच के युग स्तम्भ और वरिष्ठ निर्देशक इब्राहिम अल्काज़ी को याद करते हुए उनके उन तमाम योगदानों की चर्चा ज़रूरी है जिसकी बदौलत देश में रंगमंच तमाम चुनौतियों के बाद भी आज युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींच रहा है।  चार साल पहले  चार अगस्त 2020 को रंगमंच की दुनिया को अपना बहुत कुछ दे गए इब्राहिम अल्काजी ने बेशक हम सबको अलविदा कह दिया हो, लेकिन वह आज भी रंगकर्मियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। इब्राहिम अलकाज़ी (18 अक्टूबर 1925 – 4 अगस्त 2020) को अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक और वरिष्ठ निर्देशक अरविंद गौड़ ने कुछ इस तरह याद किया।
स्वतंत्रता के बाद समकालीन आधुनिक थियेटर को स्थापित करने और विकास में  इब्राहिम अल्काजी का अप्रतिम और ऐतिहासिक योगदान है।
इब्राहिम अल्काज़ी ने लंदन में राडा से 1947 में नाटक की शिक्षा पूरी की। भारत आकर उन्होंने मुम्बई में सक्रिय थियेटर किया साथ ही प्रगतिशील आर्टिस्ट ग्रुप से भी जुड़े। इस ग्रुप में उस समय सूज़ा, हुसेन, आरा, बाकरे, तैयब मेहता जैसे चर्चित कलाकार सक्रिय थे। मुम्बई में स्कूल ऑफ ड्रामेटिक आर्ट की स्थापना और नाट्य अकादेमी, मुम्बई के निर्देशक भी बने। थिएटर यूनिट बुलेटिन अंग्रेजी पत्रिका का प्रकाशन भी किया। फिर 1962 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दूसरे निदेशक का कार्यभार संभाला।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक के रूप में उनकी प्रतिभा को नए आयाम और विस्तार मिला। यहां उन्होंने नाटक के प्रस्तुतिकरण से लेकर सेट, लाइट, डिजाइन के क्षेत्र में अद्भुत काम किया। अभिनेता के प्रशिक्षण में आधुनिक पद्धति समेत नाट्य प्रर्दशन में शिल्प और तकनीक के नए मापदंड स्थापित किए। इस दौरान उनकी प्रमुख मंचीय प्रस्तुतियों में गिरीश कर्नाड का तुगलक, धर्मवीर भारती का अंधायुग, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन समेत शेक्सपियर, मौलियर और ग्रीक ट्रेजिक नाटक भी हैं।
सन 1962 से 1977 तक का एन. एस. डी. के साथ उनका काम काफी महत्वपूर्ण था। इस दौरान भारतीय रंगमंच नई शक्ल ले रहा था। कडे़ अनुशासन और योजनाबद्ध कार्यशैली अल्काज़ी की विशेषता थी। उनका यह दौर नई स्थापनाओं और उपलब्धियों का है। शोध का विषय है कि अंग्रेजी संस्कारों के साथ सोचने समझने वाले इब्राहिम अल्काज़ी, हिंदी रंगमंच के साथ साथ भविष्य के भारतीय रंगमंच का भी ताना बाना किस तरह शिद्दत से बुन रहे थे। साथ ही कर्मठता और जज्बे से उसकी मजबूत बुनियाद कितनी मेहनत से खड़ी कर रहे थे।
हकीकत में तो इब्राहिम अल्काज़ी अपने जीवन में ही जीवंत किंवदंती बन गए थे। उन्होंने खुद को हमेशा काम तक सीमित रखा। निरंतर सक्रियता और सकारात्मक ऊर्जा उनकी कार्यशैली का हिस्सा थी। सन 1977 में नाट्य विद्यालय छोड़ने के बाद लम्बे समय तक वापस मुड़ कर नहीं देखा और पेंटिंग और कला संरक्षण के ऐतिहासिक काम में जुट गए।
सफदर हाशमी की नुक्कड़ नाटक करते हुए हत्या के बाद हुई विरोध सभाओं में इब्राहिम अल्काज़ी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। उसके बाद  NSD रंगमंडल के साथ तीन नाटक करने के लिए अल्काज़ी थियेटर की दुनिया में वापस आए। गिरीश कर्नाड के रामगोपाल बजाज अनुदित रक्त कल्याण (तले दण्ड) के साथ जूलियस सीज़र और हाऊस आप बरनारडा एल्बा का भी मंचन किया।
अपनी दूसरी पारी में इब्राहिम अल्काज़ी ने स्वतंत्र रूप से लिविंग थियेटर के नाम से 92 में काम शुरू किया। नया सपना लिए वह फिर जुट गए। उन्होंने विरासत, राॅयल हंट आप द सन और तीन बहनें नाटकों का मंचन किया। लिविंग थियेटर की रिहर्सल लिटिल थियेटर ग्रुप के स्टूडियो में होती थी। अस्मिता थियेटर के साथ मैं भी उस समय वहां उनकी छत पर रिहर्सल करता था। कई बार सीढ़ियों पर मुलाकात होती। हमेशा मुस्कराहट से काम के बारे में पूछते। भव्य संभ्रांत व्यक्तित्व की सरलता और सहजता दिल को छू जाती थी। लगभग तीन साल बाद उनकी सक्रियता फिर कम हो गई। और दोबारा से अपनी पेंटिंग और फोटोग्राफी के संरक्षण और संवर्धन में लग गए।
इब्राहिम अल्काज़ी का जिक्र आते ही ओम शिवपुरी, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, अनुपम खेर, राज बब्बर, पंकज कपूर, सतीश कौशिक जैसे कामयाब और शानदार सिनेमा एक्टरों का नाम आता है, पर आधुनिक रंगमंच के विस्तार में उनके तत्कालीन छात्रों की भूमिका के संदर्भ में उनका मूल्यांकन, योगदान और विश्लेषणात्मक अध्ययन भी आवश्यक है।
अल्काज़ी ने नाट्य विद्यालय के निदेशक के साथ रंग अध्यापक के रूप में बहुत ही शिद्दत से काम किया। चर्चित समकालीन निर्देशक एम के रैना, प्रसन्ना, रंजीत कपूर, रामगोपाल बजाज, मोहन महर्षि, बंसी कौल, भानु भारती, कमाल अल्लाना, रतन थियम ने उनके ही सान्निध्य में प्रशिक्षण लिया। विजया मेहता, बलराज पण्डित, मनोहर सिंह, उत्तरा बावकर, सुरेखा सीकरी और रोहिणी हटंगड़ी जैसे रंगकर्मियों को भी उन्होंने ही प्रशिक्षित किया।
इब्राहिम अल्काज़ी की विलक्षण प्रतिभा का संसार व्यापक था। रंग निर्देशक और अध्यापक के साथ वह कला के संरक्षक और प्रमोटर भी थे। आर्ट हेरिटेज गैलेरी के माध्यम से इस काम में उनकी निरंतर सक्रियता और जीवंतता प्रेरणादायक है। उन्हें सादर नमन।
– अरविंद गौड़
संस्थापक-निर्देशक, अस्मिता थिएटर ग्रुप
Posted Date:

August 4, 2024

8:57 pm

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