दिनेश ‘भ्रमर’ को सुनना और महसूस करना…

हिन्दी और भोजपुरी साहित्य की एक अहम शख्सियत दिनेश ‘भ्रमर’ बेशक इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हों, लेकिन 83 साल की उम्र में भी वह लगातार रचनात्मक रुप से सक्रिय हैं। गोपाल सिंह नेपाली और जानकी वल्लभ शास्त्री की काव्य धारा की एक अहम कड़ी के तौर पर उन्हें जाना जाता है। खासकर भोजपुरी साहित्य में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। भोजपुरी में ग़ज़ल और रुबाई में प्रयोगधर्मिता का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह दिनेश भ्रमर ही हैं। मिज़ाज से भ्रमर जी प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं, लेकिन उनके लेखन के विविध आयाम हैं। ‘गीत मेरे स्वर तुम्हारे’ उनका बेहद चर्चित गीत संग्रह है। पेशे से हिन्दी के प्राध्यापक रहे भ्रमर जी ने बेशक बहुत सारी किताबें न लिखी हों, लेकिन उनके काव्य साधना की तारीफ डॉ हरिवंश राय बच्चन से लेकर नज़ीर बनारसी तक करते रहे थे। रामधारी सिंह दिनकर, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली, जानकी वल्लभ शास्त्री के अलावा उन्होंने बशीर बद्र निदा फ़ाज़ली औऱ तमाम अहम शायरों और कवियो के साथ मंच साझा किया है। पिछले दिनों उनसे मिलने हिन्दी और भोजपुरी के जाने माने रचनाकार अजय पांडेय पहुंचे और अपने फेसबुक पर दिनेश भ्रमर जी के बारे में जो कुछ साझा किया, वह 7 रंग के पाठकों के लिए पेश है…

मन के बछरू  छरक गइल  कइसे ।

नयन – गगरी  ढ़रक गइल  कइसे ।

हम  ना  कहनी  कुछु  बयरिया से ।

उनके अँचरा  सरक  गइल  कइसे ।।

भोजपुरी की इस रूबाई की खूबसूरती और रूमानियत को महसूस कीजिए। भोजपुरी कविता और गीतों में बहुत प्रयोग हुए लेकिन इन चार पंक्तियों से मन में जो हलचल होती है, उसका जवाब नहीं। और अब एक प्रयोग यह भी देखिए…

एक मूठ किरन पसर गई आसमान में 

लीप गया हल्दी ज्यों कोई दालान में ।

सिंधोरा उलट गया जादुगर भिनसारे 

रंगारंग  टहनी  के पात हो गए सारे ।

इन पंक्तियों से बहुत से लोग परिचित होंगे, लेकिन जो नहीं जानते उनके लिए बताना ज़रूरी है कि ये प्रयोग बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा (पटखौली) निवासी श्रद्धेय कवि श्री दिनेश ‘भ्रमर’ जी के हैं ।

83 वर्षीय दिनेश ‘ भ्रमर ‘ जी आजकल अस्वस्थ रह रहे है और मंचों पर अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रहे हैं, फिर भी कविताएं न उन्हें छोड़ रहीं है न वे कविताओं को। कविवर का घर साहित्यप्रेमियों के लिए तीर्थ बन गया है और अब रोज सुबह – शाम उनके घर पर ही साहित्यिक चर्चाओं और कविताओं का दौर चलता रहता है। भोजपुरी में गजल का प्रयोग सबसे पहले दिनेश भ्रमर ने ही किया था। ये पंक्तियां देखिए…

कहीं सावन कहीं गगन बरसे ।

  जाने किस याद में नयन बरसे ।।

  क्या हो साकार स्वप्न समता का ।

  कहीं  माटी  कहीं  रतन  बरसे ।।

 

  कैसा अचरज है एक हीं क्षण में ।

  कहीं जीवन  कहीं  मरण बरसे ।।

  याद  की  गंध  महक बूंदों  की ।

  ऐसा लगता है ज्यों अगन बरसे ।। 

 

  काली अलकों से सरकती बूंदें 

  जैसे थम-थम के  कोई धन बरसे ।।

26 जून 1939 को जन्मे श्री दिनेश ‘ भ्रमर’ जी 1961 से 1966 तक अध्यापन करने के बाद पिता जी की मृत्यु के उपरांत नौकरी छोड़ कर घर आ गए और तब से साहित्य साधना में लगे हुए हैं। वैसे तो देश भर के पत्रिकाओं और अखबारों में आपकी रचनाएं छपती रहीं, लेकिन आपकी एक ही प्रकाशित पुस्तक है, ” गीत मेरे स्वर तुम्हारे “। आपकी बहुत सी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी से भी हुआ है और आपने देश भर के मंचों पर सभी राष्ट्रीय स्तर के कवियों के साथ काव्य पाठ किया है ।

पिछले दिनों बगहा के “साहित्यिक गोष्ठी” संस्था के तत्वावधान में हमने कविवर दिनेश भ्रमर के घर पर उनसे मुलाकात की। साथ में मनोज सिंह ‘ सहज ‘ , गिरिंद्र पांडेय जी भी थे। 83 वर्ष की उम्र में कविवर की वाणी में जो ओज था वही वर्षों हमने  मंचों पर सुना है। लंबे, छरहरे कद के कवि जब मंच पर कविता पाठ करते थे तो उन्हें माइक का मोहताज नहीं होना पड़ता था। उनकी अपनी आवाज ही पंडाल के एक कोने से दूसरे कोने तक गूंजती रहती थी। उन्हें मंच पर भी हमने बेहद डूब कर सुना है और अब उनके साथ बैठकर उन्हें सुनना अपने आप में एक बेहतरीन अनुभव था। उनकी इस गजल की पंक्तियों को याद करते हुए दिनेश भ्रमर जी के शतायु होने और लगातार रचनात्मक रहने की कामना करता हूं —

 अपने मिलते हैं अजनबी की तरह ।

जीना मुश्किल है आदमी की तरह ।।

कब  सहारा  दिया  किनारों   ने 

मैं तो  बहता  रहा  नदी  की तरह  ।।

(अजय पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार)

 

Posted Date:

December 16, 2022

5:23 pm Tags: , , ,

One thought on “दिनेश ‘भ्रमर’ को सुनना और महसूस करना…”

  1. Sushil Kumar Chaubey says:

    Great poet with great human values

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