देख तमाशा दुनिया का…
बहुत दिनों से प्रिंट मीडिया का चेहरा सलीके से नहीं देखा था। दिन निकलते ही खबरिया चैनल अपने पिटे पिटाये अंदाज़ में खबरें परोसने में लगे रहते हैं। बेगम की चाय की प्याली से पहले “हॉट सीट” तक की यात्रा यह आसान बना देते हैं। मौत के आंकड़ों का गणित आपको लगातार खौफज़दा करता रहता है। इस “वध काल” में चचा गालिब की सलाह मानना ही बेहतर… “गो हाथ में जुंबिश नहीं आंखों में तो दम है, रहने दो अभी रिमोट मेरे आगे।” इन खबरिया चैनल्स को देखकर तो ऐसा लगता है कि अगली सूची में अपना ही नाम दर्ज मिलेगा। मेरे घर के अगल-बगल कुल जमा बाइस घर ऐसे हैं जहां के द्वारचार का आंखों देखा हाल सुबह से शाम तक अनवरत मिलता रहता है। सुबह सात से ही रेहड़ी-ठेले वाले रात तक गलाफाड़ कंपिटीशन में आलू, बैगन, प्याज की हांक लगाते रहते हैं। मजाल है बीस-पच्चीस फेरीवालों में से किसी एक के भी सौदे के बिकने की नौबत आ जाए। दूसरी ओर खबरिया चैनल्स पर मौत की बिक्री धड़ाधड़ चालू आहे। हर चैनल दूसरे चैनल से ज्यादा जल्दी और तेजी से मौत बेच रहा है। इस दावे के साथ कि कोरोना से सबसे अधिक लोग उनके चैनल पर ही दम तोड़ रहे हैं -“आप भी रहिए सबसे आगे, दम तोड़ने वालों के साथ।”
अखबारों की कुछ खबरों की हैडिंग देखिए…
– नाइजीरिया में लॉकडाउन तोड़ने पर 18 को गोली मारी
– बीमार बेटे से मिलने मां ने 6 राज्यों का किया 2700 किलोमीटर का सफर
– रंगोली चंदेल का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड
– टिक-टॉक पर नहीं मिले लाइक तो युवक ने की आत्महत्या
– 43 पैसे गिरकर डॉलर के मुकाबले रुपया रिकार्ड 76.87 के निचले स्तर पर
– राशन डीलर से नाराज 70 महिलाएं चढ़ीं पानी की टंकी पर
– सोना रिकार्ड 48 हजार के करीब पहुंचा
– बिहार का विधायक प्रशासन को धत्ता बता बेटे को कोटा से लाया
यह खबरें अखबार के उस कोने में छपी हैं जहां पाठक की नजर आसानी से नहीं पहुंचती। एक-आध खबर को छोड़ भी दें तो अधिकांश खबरें अपने देश की ही हैं। मीडिया फील्ड से जुड़े होने की वजह से बीते चार हफ्ते से मैं भी फीड बैक खबरिया चैनल्स से ही ले रहा हूं। खबरिया चैनल्स के कितने ही कान उमेठ लूं, हर जगह एक ही खबर अलग-अलग तड़का लगा कर परोसी जा रही है। इसके विपरीत प्रिंट मीडिया अपनी जिम्मेदारी कहीं बेहतर तरीके से निभा रहा है। दुनिया भर का मौत का आंकड़ा पहले पेज से सरक कर भीतरी पृष्ठों पर पहुंच गया है। पहले पेज पर कुछ खबरें मोटिवेशन की भी मिल जाती हैं। लेकिन बुद्धू बक्से का क्या करें? जब खोलिए तब मौत के आंकड़े गिनाता मिलता है। चैनल न हो गए शमशान घाट के चौकीदार हो गए।
ऐसा ही एक दौर सत्तर-अस्सी के दौर में चला था। देश में बाजारवाद उस समय शायद पनपना शुरू हुआ था। जिसे उस दौर के रचनाकारों ने पहचानना शुरू कर दिया था। जिनमें से एक थे, भवानी दादा। बोले तो भवानी प्रसाद मिश्र। “जी हां! मैं गीत बेचता हूं… तरह-तरह के गीत बेचता हूं…” लिखकर बाजारवाद के खिलाफ पहली दुमदुभी उन्होंने ही बजाई। उसकी एक बानगी आपको दिखाता हूं… जो उन्होंने “गीतफरोश” के नाम से लिखी थी
“जी हां हुजूर, मैं गीत बेचता हूं,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूं,
जी, माल देखिए, दाम बताऊंगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा,
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको,
पर बाद में अक्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिए ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज्यादा हैरान,
यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुजूर,
यह गीत तपेदिक की है दवा हुजूर,
जी, छंद और बे-छंद पसंद करें,
जी, अमर गीत और ये जो तुरत मरें !
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूं कलम और दावात
इनमें से भाए नहीं, नए लिख दूं,
जी गीत जनम का लिखूं, मरण का लिखूं,
जी, गीत जीत का लिखूं, शरण का लिखूं,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का !
कुछ और डिजायन भी हैं, यह इल्मी,
यह लीजे चलती चीज नई, फिल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत !
यह दुकान से घर जाने का गीत !
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूं दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत,
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूं,
गाहक की मर्जी, अच्छा, जाता हूं,
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूं,
या भीतर जा कर पूछ आइए, आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूं मगर लाचार हार कर गीत बेचता हूं
जी हां हुजूर, मैं गीत बेचता हूं…”
इस “वध काल” में इस गीत की आत्मा को खबरिया चैनल्स ने लपक लिया है। बस… इस हेर-फेर के साथ-
“जी हां मैं मौत बेचता हूं
पल हर पल बस मौत बेचता हूं
जी माल देखिए दाम बताऊंगा…”
Posted Date:
April 25, 2020
6:53 pm Tags: आलोक यात्री, देख तमाशा दुनिया का, कोरोना, भवानी प्रसाद मिश्र, खबरिया चैनल, वध काल, मैं गीत बेचता हूं, मैं मौत बेचता हूं