साहित्य और कानून का आपस में गहरा संबंध हैं – दीपक मिश्रा

केवल अदालतें ही समाज में न्याय नहीं दिला सकती हैं

नई दिल्ली, 10 मार्च 2025। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने कहा है समाज में न्याय की स्थापना केवल अदालत तक सीमित नहीं है बल्कि  साहित्य और कानून का भी आपस में गहरा संबंध है। साहित्य को देश के अंतिम जन को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। न्यायमूर्ति मिश्र ने साहित्योत्सव के चौथे दिन सामाजिक न्याय और साहित्य विश्व पर परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही। इस परिचर्चा में ए.पी. माहेश्वरी, मुकुल कुमार एवं अश्विनी कुमार ने भाग लिया।

न्यायमूर्ति मिश्र ने  कहा कि साहित्य का सामाजिक न्याय के साथ सुखद गरिमापूर्ण और प्रभावशाली संबंध है। जिस तरह साहित्य के कई खंड होते हैं ,उसी तरह सामाजिक न्याय की अवधारणा में भी कई पहलू शामिल होते हैं जैसे समानता, सहानुभूति, आपसी सम्मान, समावेशिता, मानवतावाद और मानवाधिकारों के मूल्य आदि।

उन्होंने रोस्को पाउंड को उद्धृत करते हुए कहा कि मैं उनकी इस बात से सहमत हूँ कानून स्थिर नहीं रहना चाहिए। ठीक उसी तरह साहित्य को किसी भी तरह के कालक्रम में नहीं बाँधा जाना चाहिए।

श्री मिश्र ने कहा कि समाज में न्याय की स्थापना केवल न्यायालयों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि साहित्य के माध्यम से भी समाज के हर वर्ग की आवाज को प्रमुखता से प्रस्तुत करना आवश्यक है। न्याय की परिभाषा तभी सार्थक होगी जब समाज के अंतिम व्यक्ति को भी उसका अधिकार मिलेगा और साहित्य इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित किए जा रहे एशिया के सबसे बड़े साहित्योत्सव के चौथे दिन 22 से अधिक कार्यक्रमों में विभिन्न भारतीय भाषाओं के 140 से ज्यादा लेखकों ने भागीदारी की।

इन कार्यक्रमों में पाँच बहुभाषी कवि सम्मिलन और चार कथा सम्मिलनों के साथ ही स्वतंत्रता-पूर्व भारतीय साहित्य में ‘राष्ट्र’ की अवधारणा, क्या कॉमिक्स साहित्य है? रंगमंच, भारतीय समाज में परिवर्तन के प्रतिबिंब के रूप में, सांस्कृतिक रूप से भिन्न भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के अनुवाद में चुनौतियाँ, प्रवासी लेखन में मातृभूमि आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर परिचचाएँ हुई।

भारतीय साहित्यिक परंपराएँ: विरासत और विकास शीर्षक से राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आज शुभारंभ हुआ, जिसका उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात  बांग्ला विद्वान एवं अनुवादक सुकांत चौधरी ने दिया तथा बीज वक्तव्य प्रख्यात अंग्रेजी लेखक मकरंद परांपजे ने दिया।

साहित्योत्सव में सोमवार को उपस्थित रहे कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक विद्वान थे – बलदेव भाई शर्मा, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, आतमजीत, चंद्रशेखर कंबार, अर्जुन देव चारण, ए. कृष्णाराव, सुमन्यु शतपथी, बुद्धिनाथ मिश्र आदि।

आमने-सामने कार्यक्रम में आज असमिया, हिंदी, गुजराती, मलयाळम् एवं तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2024 विजेताओं के साथ प्रतिष्ठित साहित्यकारों एवं विद्वानों ने बातचीत की। सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत आज फौज़िया दास्तानगो और रीतेश यादव द्वारा दास्तान-ए-महाभारत पेश की गई।

Posted Date:

March 10, 2025

10:36 pm

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