सेज चढ़त डर लागे.. हो रामा..
अगर आपको लोक संगीत और उप शास्त्रीय गायन की विभिन्न शैलियों में दिलचस्पी है तो ये आलेख आपके लिए है।
होली यानी फाग के बाद चैती का आनंद आपने भी लिया होगा। इस गायन शैली और परंपरा का अपना इतिहास है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुमार नरेन्द्र सिंह ने चैती पर यह शोधपरक और दिलचस्प लेख लिखा है और उनकी किताब का यह एक हिस्सा है। यह लेख पढ़िए और चैती का आनंद लीजिए..
फागुनी बयार में घुली-मिली रंगों की बहार अभी अपने शबाब पर ही होती है कि चैती की धुन चटखने लगती है। यानी होली के दिन ही चैती चढ़ जाती है। होली की विदाई चैती गाकर ही की जाती है। होली की रात में 12 बजे के बाद चैती की रागिनी फिजा में घुलने लगती है। गायकों की टोली जब गांव के अंतिम दरवाजे पर होली गाने पहुंचती है, तो वह अपने साथ वहां चैती की सौगात भी लेकर जाती है। जब वहां होली गायन खत्म हो जाता है, तो चैती की मधुर तान उभार उठती है और गायकों की टोली होली छोड़कर चैती के गीत गाने लगती है। इसका असली आनंद तो वही जान सकता है, जिसने एक साथ होली को उतरते और चैती को चढ़ते देखा हो। चैत का झकोरा चैन चुरा लेता है और लोगों के होठों से जहां बरबस चैती के बोल फूट पड़ते हैं, वहीं आसमान में चांद की चांदनी अपने दूधिया रंग से मौसम को सराबोर कर देती है और गीत के बोल अनमोल लगने लगते हैं।
चैती एक तरह से फसल गीत है। इस महीने में रबी की फसल किसानों के घर में आती है। उनका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। घर में अनाज आने की खुशी में लोगों के होठों पर चैती चहकने लगती है। वैसे भी भारतीय कैलेंडर के हिसाब से चैत्र साल का प्रथम माह होता है, जिसका स्वागत लोग गीत गाकर करते हैं। इसे चैती इसलिए भी कहा जाता है कि यह सिर्फ चैत्र महीने में ही गाया जाता है। चैती में मूल रूप से श्रृंगार, विरह और भक्ति भाव से भरे गीतों की प्रधानता रहती है और इसे एकल और सामूहिक दोनों तरह से गाया जाता है। भोजपुरी प्रदेशों में सामूहिक चैती को घांटो कहते हैं, जबकि एकल गायन को चैती ही कहा जाता है। यूं तो छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी चैती गाई जाती है, लेकिन भोजपुरी क्षेत्रों में यह विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहां इसका आयोजन वृहद पैमाने पर होता है। कई बार तो 52 गांवों की सामूहिक चैती कराई जाती है, जिसमें एक से बढ़कर एक चैती के गवैया शामिल होते हैं। यदि कहा जाए कि चैती भोजपुरियों की एक विशिष्ट पहचान है, तो शायद गलत नहीं होगा।
चैती गाने की शुरुआत मंगलाचरण से होती है। गायकों की टोली सबसे पहले उस स्थान का सुमिरन करती है, जहां ताल की शुरुआत होती है। देखिए उसकी एक बानगी –
‘सुमिरिला ठइयां, सुमिरी माता भूइयां हो राम, एही ठांवे
आज चइत हम गाइब हो रामा, एही ठइयां।’
यानी हम धरती माता और इस ठांव का सुमिरन करते हैं। आज हम यहीं चैती गाएंगे। श्रृंगार, विरह और भक्ति भाव के अलावा चैती में प्रकृति चित्रण तथा हंसी-ठिठोली के स्वर भी परवान पाते हैं। सुनिए एक भाभी क्या कहती है.
महुआ बीनन हम ना जइबो हो रामा, देवरू के संगवा।
सभो केहू बीने रामा दिन-दुपहरिया, देवरा पापी बीने आधि रतिया हो रामा।
इसी तरह एक भाभी अपनी ननद से पूछती है –
हम तोसे पूछीला ननदी अभागिन हो रामा, तोरा पीठिया
धूरिया कइसे लागल हो रामा, तोरा पीठिया।
किसी स्त्री की पीठ पर धूल लगने का क्या मतलब होता है, यह शायद बताने की जरूरत नहीं है। वैसे धूल मर्द की पीठ पर भी लगती है, जिसका मतलब होता है शिकश्त खाना। किसी नारी से अंतरंग बात पूछने का ऐसा अनोखा अंदाज शायद ही कहीं देखने को मिले। प्रकृति का जितना सजीव और मनमोहक छवि निम्नलिखित चैती में उकेरित हुई है, वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। आप भी देखिए –
हेरा गइले बदरी में चनवा रे गुइयां, चैत महीनवा।
पागल पवनवां सुमनवां बटोरे, नरमी चमेलियन के बंहियां मरोड़े
पांख झारी नाचेला मोरवा रे गुइयां, चैत महीनवां।
चैती गीतों में श्रृंगार रस का जितना सुंदर चित्रण देखने को मिलता है, वैसा अन्य रसों के संदर्भ में नहीं दिखाई देता। उदाहरण के लिए यह चैती –
सेज चढ़त डर लागे हो रामा, बलमू के संगवा।
रुनझुन-रुनझुन पायल बाजे
सास-ननद मोरी जागे हो रामा, बलमू के संगवा।
चनवा सेजरिया प करे ताका-झांकी
उठेला दरद पोर-पोर हो रामा, बलमू के संगवा।
नायिका के श्रृंगार का एक रोचक रूप देखिए –
रामा गोरे-गोरे बंहियां में हरी-हरी चूड़िया हो रामा, लिलरा प।
सोभोला इंगुरा के बिंदिया हो रामा, लिलरा प।
उधर एक नायिका अपने बाबा के बनाए पोखर में स्नान करना चाहती है और किस तरह चाहती है, आप स्वयं देखिए – बाबा के दुअरवा प भंवर पोखरवा हो रामा, ताही घाटे
चोलिया खोलि नेहाइब हो रामा, ताही घाटे।
विरह के गीत भी दिल को छू लेते हैं। देखिए इन पंक्तियों को –
देहिया में अगिनि लगावे हो रामा, कोइली के बोलिया।
होत सवेरे कोइली कूहू-कूहू कूहुके,
जांतल सनेहिया जगावे हो रामा, कोइली के बोलिया।
घांटो की पहली पंक्ति पारंगत लोग गाते हैं, जो दो से चार तक हो सकते हैं, जबकि बाकी लोग समवेत स्वर में ताही घाटे शब्द को दोहराते हैं। शुरुआत से लेकर उठान तक चैती कई आरोह-अवरोहों से गुजरती है और अंत में उत्ताल तान पर समाप्त होती है। गाने के बीच-बीच में तीव्र ताल पर दो पंक्तियों के गीत भी जारी रहते हैं। इसे लचका कहा जाता है। लचका शब्द से ही पता चल जाता है कि इसमें लचक काफी होती है। उदाहरण के लिए यह लचका –
देवरा करेला मसखरिया हो चउरा छांटे के बेरिया।
अरवा छांटी ला उसना छांटी ला,
अउरी छांटी ला बसमतिया हो,
चउरा छांटे के बेरिया।
लचका गाने का उद्देश्य होता है गायकों की टोली को सुस्ताने का मौका देना और माहौल को रसीला बनाए रखना।
बहरहाल, चैती की धमाल में यदि लौंडा का नाच न हो, तो चैती का मजा अधूरा ही रह जाता है। यही कारण है कि अमूमन लौंडा नाच के बिना चैती नहीं गाई जाती, विशेष कर घांटो। घांटो शब्द घांटने से बना है। चूंकि इसमें एक ही पंक्ति को बार-बार दोहराया जाता है, इसलिए इसे घांटो भी कहते हैं। चैती में नाचने वाले लौंडा को योगिनी कहा जाता है। उसकी उपस्थिति उत्प्रेरक का काम करती है। अपने नाज-नखरे और अंदाज से वह लोगों को बांधे रखता है और गीतों में लास्य पैदा करता है। इतना ही नहीं, नर्तक अपने आवश्यक हस्तक्षेप और मजाक के जरिए लोगों में सहज संवाद कायम रखता है। सचमुच ढोलक की ताल पर नागिन की तरह उसका लचकना चैती के आनंदको और भी बढ़ा देता है।
चैती की धरोहर को भोजपुरियों ने ही संजो रखा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा समूह गान है, जिसमें सैकड़ों लोग एक साथ गाते हैं। इस समूह गान में न तो कोई संगीत निर्देशक होता है और न कोई बताने वाला, लेकिन क्या मजाल की झाल की एक ताल भी गलत पड़ जाए। बिना बताए सभी अपने-अपने लिए भूमिका चुन लेते हैं। चैती में टांसी मारना एक विशेष कला है, जिसमें कोई-कोई ही पारंगत हो पाता है। टांसी मारने वाले की आवाज सबसे सुरीली तो होती ही है, अलहदा भी होती है। अकारण नहीं कि चैती गाने वालों के हर दल में कोई न कोई टांसी मारने वाला होता है। संक्षेप में कहें, तो चैती चैत्र माह का श्रृंगार है, जिसके ऊपर विरह और भक्ति के छींटे उसे और भी मदमस्त बनाते हैं।
(वरिष्ठ लेखक-पत्रकार कुमार नरेन्द्र सिंह भारतीय इतिहास और संस्कृति के जानकार हैं, यहां की सियासत को बहुत करीब से उन्होंने देखा है और लोक संगीत से लेकर लोक परंपराओं की बारीक समझ रखते हैं।)
Posted Date:
March 18, 2023
2:13 pm
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