संस्कृति अपने आप में बेहद व्यापक शब्द है। इसमें वो तमाम रंग शामिल हैं जो कहीं न कही समाज के मूल्यों, समृद्द परंपराओं और लोक रंगों की खूबसूरत अभिव्यक्ति होते हैं। किसी भी देश की संस्कृति ही वहां की मूल पहचान होती है और इसके अनेक आयाम होते हैं। देश के किसी कोने में वहां की संस्कृति को संवारने और समृद्ध करने की जो भी कोशिश होती है, इससे जुड़े सरकारी- गैरसरकारी जो भी आयोजन होते हैं, नई संस्कृति और जनता से जुड़ी संस्कृति के साथ साथ जो भी नए नए प्रयोग हो रहे हैं, उसे इस मंच के ज़रिये सामने लाना हमारा मकसद है…
दशाश्वमेध घाट और गंगा आरती के विहंगम और मनमोहक दृश्यों वाली काशी आखिर अचानक अपनी खालिस देसी गालियों के लिए खबरों में कैसे आ गई? दशाश्वमेध और अस्सी के बीच का फ़ासला बमुश्किल पांच किलोमीटर का होगा लेकिन यहां तक आते आते पूरी की पूरी संस्कृति आखिर कैसे बदल जाती है? गंगा भी वही है, गंदगी भी वैसी ही है लेकिन अल्हड़ और मस्त अंदाज़ के साथ साहित्य और संस्कृति का अनोखा मेल आखिर अस्सी पर ही क्य�
Read Moreक्या आज कठपुतली कला कहीं गुम हो रही है या फिर इसमें नए प्रयोग किए जा रहे हैं... तमाम लोक कलाओं की तरह कठपुतली को लेकर जो चिंता इससे जुड़े कलाकार जताते रहे हैं, उनमें आज के दौर के हिसाब से क्या सचमुच बदलाव आ रहा है.. ये तमाम सवाल जब हमने कठपुतली को बचाने और इसके विकास के लिए काम कर रहे दादी पदुमजी से पूछे तो उनके चेहरे पर कोई खास उत्साह के भाव नहीं दिखे।
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