काक साहब की काक दृष्टि का कमाल

(जाने माने कार्टूनिस्ट और एकदम ठेठ देसी अंदाज़ में अपने चरित्रों के ज़रिये लोगों के दिलों में बस जाने वाले काक साहब 16 मार्च को 80 साल के हो गए… काक साहब से जुड़ी तमाम यादों को ताज़ा करते हुए हमारे साथी और तीन दशकों से नुक्कड़ नाटकों के लिए समर्पित अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक अरविंद गौड़ ने बेहतरीन तरीके से उन्हें जन्मदिन पर याद किया… आप भी पढ़िए और काक साहब की शख्सियत को और करीब से समझिए… 7 रंग परिवार की तरफ से काक साहब को जन्मदिन मुबारक.. वह हमेशा स्वस्थ, सक्रिय रहें और अपने कार्टूनों के ज़रिये तीखे और चुटीले व्यंग्य करते रहें…)

अपने समय के सुप्रसिद्ध चर्चित कार्टूनिस्ट काक आज 80 के हो गए। आदरणीय काक साहब को जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाएं। आज की पीढ़ी इस नाम से ज्यादा परिचित ना हो, पर 1983 से 1990 के थोड़ा आगे तक का एक ऐसा भी दौर था, जब ज़्यादातर पाठक अखबार हाथ में आते ही काक का कार्टून पहले देखते थे, हेडलाइन बाद में पढ़ते थे। उनकी सेंस ऑफ ह्यूमर और कटाक्ष में गजब की ताजगी थी। उनके कार्टूनों मे रोजाना की देशव्यापी राजनीतिक हलचलों का पोस्टमार्टम दिखता था।
उनकी तीखी ‘काक’ दृष्टि वाले करारे कार्टून शुरुआत मे जनसत्ता में छपते थे। बाद में काक ने नवभारत टाइम्स ज्वाइन कर लिया। हिंदी पत्रकारिता के दिग्गज प्रभाष जोशी से लेकर राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह तक उनके कायल थे।

उस समय काक स्टार थे। यह वह वक्त था, जब जनसत्ता में तेज तर्रार खोजी और खांटी पत्रकारिता की नई जमीन तैयार हो रही थी। काक के कार्टून पहले पेज पर प्रकाशित हो रहे थे। काक पहले दैनिक जागरण, धर्मयुग से लेकर दिनमान और शंकर वीकली में छप चुके थे, पर जनसत्ता में नियमित प्रकाशित बेबाक और तीक्ष्ण कार्टूनों से उन्हें देशव्यापी पहचान मिली। तभी 1985 में अचानक उन्होंने जनसत्ता छोड़ नवभारत टाइम्स ज्वाइन कर लिया। कारण कुछ भी रहा हो, पर उनका जाना हमारे जैसे जनसत्ता के हजारों पाठकों के लिए पीड़ादायक था।


उन दिनों मैं थियेटर के साथ साथ फ्रीलांसर पत्रकारिता में भी यहां वहां भटकता रहा था। काक सेलिब्रिटी थे, वो मुझे शायद ही पहचानते हो, पर हम खफा थे, सो कुछ दिनों तक सामने दिखने पर भी पहले की तरह भागकर नमस्ते करने की कोशिश, चाहकर भी नहीं हुई। पर उनके कार्टूनों का नशा था, सो अब घर में दो अखबार आने शुरू हो गए। फिर वही रोजाना सुबह उनके कार्टूनों को देखकर ही खबरों को पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ।
ऐसा ही कुछ दिवंगत सुथीर तैलंग के नवभारत टाइम्स से अंग्रेजी के हिन्दुस्तान टाइम्स मे जाने के बाद भी हुआ था। हिन्दुस्तान टाइम्स उनकी वजह से ही घर में आना शुरू हुआ था।
यह वह समय था जब हिंदी अखबारों में युवा कार्टूनिस्ट अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाने लगे थे। सुधीर तैलंग, इरफान, राजेन्द्र धोड़पकर से लेकर चंदर तक कार्टूनिस्टों की नई जमीन तैयार कर रहे थे। इन सबका गजब का फैन क्लब बन रहा था। राजनैतिक कार्टून्स को लोकप्रियता दिलाने में इस नई पीढ़ी का अद्भूत योगदान है।
बाद में इससे आगे की हिंदी अखबारों की दास्तानें, विशुद्ध व्यापारीकरण, उत्थान-पतन के साथ भटकाव, बिखराव के क़िस्से है। आज इसका प्रभाव दैनिक अखबारों की खबरों से लेकर कार्टूनों तक भी दिखता है।खैर बात काक साहब को जन्म दिन की बधाई से शुरू हुई थी। सो उनका असली नाम और परिचय भी जान लिजिए। काक का जन्मजात नाम हरीश चंद्र शुक्ल (काक) है। काक उनका बतौर कार्टूनिस्ट सिग्नेचर है।

कार्टून की बदलती दुनिया को जानिए और काक साहब से मिलिए। नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिए।

https://www.youtube.com/watch?v=CjAj8hJqFyw&t=20s

इनका जन्म 16 मार्च 1940 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव के गाँव पुरा में हुआ था। भूतपूर्व मैकेनिकल इंजीनियर काक के पिता, शोभा नाथ शुक्ला, एक स्वतंत्रता सेनानी थे।
अखबारों से सेवानिवृत्त होने के बाद पिछले कई सालों से काक साहब आज भी कार्टून बना रहे हैं। गाहे-बगाहे अभी भी उनके पेज पर जाकर कार्टून देखता रहता हूं। हम उनके छोटे पर पक्के वाले पुराने फैन हैं। उनके स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी की हार्दिक मंगलकामनाएं।

Posted Date:

March 16, 2020

9:24 pm
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