55वां विश्व पुस्तक मेला : साहित्य में स्त्री स्वर

55वें विश्व पुस्तक मेले में हिंदी साहित्य में इस बार भी सदा की तरह स्त्रियों की आवाज़ें छाई रहीं। इस साल भी कई लेखिकाओं की पुस्तकें आई जिनमें कविता ,कहांनी ,उपन्यास ,आलोचना से लेकर अनुवाद तक शामिल है।इस बार मेले में कई विदुषी विदेशी महिला विद्वान भी आईं और उन्होंने विचार विमर्श में हिस्सा लिया।साथ ही स्त्री मुद्दे पर चर्चाएं भी आयोजित की गईं।हिंदी में स्त्री रचनाकारों की इतनी किताबें आई कि उनका लेखा जोखा रखना मुश्किल है। फिर भी कुछ चुनिंदा किताबों की चर्चा की ही जा सकती है।

लेकिन इस से पहले  स्त्री दर्पण कमलेश अवस्थी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है और अपने दिवंगत आलोचक पति देवीशंकर अवस्थी  की स्मृति में उनके कार्यों की सराहना करता है। कमलेश जी का निधन पुस्तक मेले की अवधि में हुआ। हिंदी समाज ने इस अवधि में मुम्बई की लेखिका रश्मि रवीज़ा को भी खोया। वे कैंसर से पीड़ित थीं। स्त्री दर्पण अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

इस बार मेले का अतिथि देश रूस था। रूस की कई लेखिकाएँ भी मेले में आईं थी।

मेले में  रूस से  आये 75 लोगों के शिष्टमंडल की सदस्य और रूसी दूतावास की काउंसलर यूलिया अरायेवा ने कहा कि भारत की तरह रूस में भी स्टोरी टेलिंग की एक प्राचीन परंपरा है। सुश्री अरायेवा ने आज भारत एवम रूसी लेखकों के सम्मेलन में यह बात कही।गौरतलब है कि साहित्य अकादमी ने इस मौके पर यह सम्मेलन आयोजित किया था।

उंन्होने कहा कि  अभी तक हमने कालजयी साहित्य के  अनुवाद  ही किए हैं लेकिन अब ज़रूरत है कि हम आधुनिक साहित्य के अनुवाद को प्राथमिकता दें। रशियन सेंटर की निदेशक एलेना रामिजोवा  ने कहा कि एक दूसरे के देश को अच्छे से  समझने के  लिए साहित्यिक कृतियों के अनुवाद की जरूरत होती  है। इसके लिए हमें वहां के सांस्कृतिक परिवेश और भावबोध को समझना भी जरूरी   है।

मेले में पोलैंड की  हिंदी विदुषी दानूता स्ताशिक ने रामायण पर अपने कार्यों की जानकारी दी।वारसा विश्विद्यालय में हिंदी की अध्यापक दानुता स्ताशिक  भी इन दिनों भारत की यात्रा पर आई ।वह पहले भी भारत आती रही हैं।

साहित्य अकादेमी कार्यालय में सांस्कृतिक आदान-प्रदान  के अंतर्गत आयोजित साहित्य मंच कार्यक्रम में प्राच्य अध्ययन विभाग, दक्षिण एशियाई अध्ययन संकाय, वारसा विश्वविद्यालय, पोलैंड की अध्यक्ष दानूता स्ताशिक ने अपने हिंदी अध्यापन और अनुवाद संबंधी  अनुभव साझा किए।

धारा प्रवाह हिंदी बोलने वाली दानूता स्ताशिक ने उनके विभाग द्वारा हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे महत्त्वपूर्ण कार्यों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी।

उन्होंने  हिंदी के प्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण की कविताओं के पोलिश अनुवाद और उनके निबंधों तथा उनकी पौलेंड यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने रामायण को लेकर किए अपने काम के बारे में भी जानकारी दी। प्रसिद्ध गांधीवादी लेखिका सुजाता चौधरी की स्वामी विवेकानंद पर उपन्यास भी आकर्षण का केंद्र रहा।सुजाता की शब्दों में

स्वामी जी पर इतनी अधिक किताबें लिखी गई हैं कि एक और की आवश्यकता है या नहीं, मुझे  ज्ञात नहीं पर इतना कह सकती हूं कि मेरे योद्धा  संन्यासी  थोड़े से अलग हैं।  आज भी हिंदू धर्म के विकृत स्वरूप को प्रतिष्ठा दिलाने की अनवरत कोशिश हो रही है। यहां तक की इस योद्धा संन्यासी के व्यक्तित्व को भी बदलने के प्रयास हो रहे हैं, ऐसे में एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता है जो स्वामी विवेकानंद के सही स्वरूप को प्रदर्शित कर सके ।

राष्ट्र निर्माण में आप पुरुषों के योगदान की चर्चा अक्सर सुनते हैं लेकिन इस देश के निर्माण में महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई है।आप अभिनेत्रियों और महिला खिलाड़ियों और महिला राजनीतिज्ञों को तो जानते हैं लेकिन क्या आप महिला वैग्यानिकों के बारे में जानते हैं? नहीं जानते होंगे क्योंकि बचपन से आपको जगदीश चन्द्र बोस होमी जहांगीर भाभा विक्रम साराभाई बीरबल साहनी आदि के बारे में बताया गया ,महिला वैज्ञानिकों के बारे में नहीं।

देवरिया की अनुपमा गोरे ने भारतीय महिला वैज्ञानिकों पर एक किताब लिखी है जिसे आई सेक्ट ने छापा है।मात्र 200 रुपए की इस किताब में  15 महिला वैज्ञानिकों के बारे में जानकारी दी गयी है।जिनमें आप कल्पना चावला को जानते होंगे, बाकी को शायद नहीं। आपने नाम भी नहीं सुना होगा।विश्व पुस्तक मेले में आप इसे खरीद सकते है।हम लोग सावित्री बाई फुले फातिमा शेख महादेवी वर्मा आदि को जानते हैं लेकिन इनको नहीं।ये महिला वैज्ञानिक आनंदीबाई गोपालराव जोशी  मैरी पूनेन लुकोस जानकी अम्माल इरावती वक्र : कमला सोहनी बिभा चौधरी असीमा चटर्जी कमल रणदिवे : अन्ना मणि: राजेश्वरी चटर्जी देबला मित्रा : पूर्णिमा सिन्हा मंजू शर्मा : रोहिणी गोडबोले : कल्पना चावला ।

मेले में होमवती देवी  और कमला चौधरी के योगदान पर एक किताब आई।1902 में जन्मी होमवती देवी भगवतीचरण वर्मा औऱ यशपाल की समकालीन थीं  जबकि 1908 में जन्मी  कमला जी   महादेवी की समकालीन थीं।कमला जी संविधान सभा की सदस्य थीं और आजादी की लड़ाई में जेल गयीं थीं।सांसद भी बनी लेकिन हिंदी साहित्य की मुख्य धारा से बाहर रहीं।

मेरठ के शोधार्थी  डॉक्टर विक्रांत ने इन दोनों भूली बिसरी लेखिकाओं पर एक किताब निकाली है।

होमवती जी के 6 कहांनी संग्रह और कमला जी के 4 कहांनी संग्रह निकले थे पर हिंदी आलोचना बेखबर रही।

सबसे पहले तो यह बता दें कि मेले में स्त्री दर्पण की दो सक्रिय सदस्यों रीता दास राम और सुधा तिवारी की दो किताबें आई।रीता जी अपना दूसरा कहांनी संग्रह “चेक एंड मेट “लेकर आईं तो सुधा जी अंग्रेजी की कवयित्रियों के अनुवाद की  किताब “देशान्तर के स्त्री स्वर “लेकर आईं।

उमा नौडियाल द्वारा मार्खेज और हार्वर्ड फ़ास्ट की दो किताबों के  अनुवाद आये। रॉबर्ट बर्न्स की कविताओं का हिंदी में पहली बार अनुवाद किया अंजु रंजन ने तो प्रवासी लेखिका सुषमा बेदी की कहानियों के  अंग्रेजी  अनुवाद का सम्पादन किया रेखा सेठी ने । पहली पुस्तक ‘राबर्ट बर्न्स : 20 कालजयी कविताएँ’ शीर्षक से तो  दूसरी पुस्तक सुषम बेदी की कहानियों का अनुवाद ‘ए प्लेस कॉल्ड होम’ शीर्षक से। संपादन रेखा सेठी और हिना नंद्राजोग ने किया है।

इस अवसर पर रॉबर्ट बर्न्स की कविताओं की अनुवादिका अंजु रंजन ने कहा कि रॉबर्ट बर्न्स स्कॉटलैंड के राष्ट्रीय कवि थे और उनकी कविताएँ हिंदी में पहली बार अनूदित होकर सामने आई हैं। मेरे वहाँ के प्रवास पर मुझे उन्हें बेहतर तरीके से जानने और समझने का अवसर मिला। मैंने कवि के जन्म स्थल के साथ ही उनकी स्मृति में बने संग्रहालय का भी दौरा किया। इस संग्रह में उनकी 20 कालजयी कविताएँ शामिल हैं। इन कविताओं के सहारे 17वीं शताब्दी के स्कॉटलैंड के समाज को अच्छी तरह से समझा जा सकता है।

दूसरी पुस्तक ‘ए प्लेस कॉल्ड होम’ जोकि सुषम बेदी की हिंदी कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद था की संपादिका रेखा सेठी ने कहा कि अनुवाद एक सामूहिक कार्य होता है जिसे हमने बखूबी इस पुस्तक के अनुवाद के लिए हुई कार्यशाला में महसूस किया। हम सभी इस प्रक्रिया में हुए अनुभवों से काफी समृद्ध हुए। सहयोगी संपादिका हिना नंद्राजोग ने भी अपने विचार साझा किए।

अनुवाद की बात चली तो कथाकार कवयित्री सुलोचना के बंगला अनुवाद की किताब “सेतु बंधन भी आई। लिपिका साहा की बंगला कवयित्रियों के  हिंदी अनुवाद की पुस्तक भी मेले की एक उल्लेखनीय किताब है।ये कविताएं स्त्री दर्पण पर पेश की गई थी।लिपिका जी की  वाणी बसु की कहानियों के हिंदी अनुवाद की किताब   भी आई।मीता दास की किताब भी मेले में नजर आई।

स्त्री कविता में  वरिष्ठ कवयित्री  रश्मि भारद्वाज, श्रुति कुशवाहा , स्मिता सिन्हा ,ज्योति रीता की किताबें आयी।” सम्मुख “ नाम से रश्मि का यह चौथा काव्य संग्रह है जबकि  सुपरिचित कवयित्री  श्रुति कुशवाहा (सुख को भी दुख होता है),स्मिता  (रुंधे कंठ की अभ्यर्थना)और युवतर  कवयित्री  ज्योति ( अतरिक्त दरवाजा) के दूसरे काव्य संग्रह आये।।भोपाल की कवयित्री  पल्लवी त्रिवेदी का पहला काव्य संग्रह भी आया।रंजीता सिंह “फलक “का भी काव्य संग्रह  “चुप्पी प्रेम की भाषा “आया मेले में आया इस बार।पत्रकार भाषा सिंह का कविता संग्रह”” योनि सत्ता संवाद” भी आया।  पांच रुपए की काव्य पुस्तिका सीरीज़ में मृदुला शुक्ला की किताब आई।

वरिष्ठ  लेखिका अनुवादक शोभा नारायण का उपन्यास “पतझर के रंग “आया तो वरिष्ठ पत्रकार कथाकार

जयंती रंगनाथन  का कहांनी  संग्रह  “मध्यवर्ग का मंचूरियन”भी चर्चा में रहा।  सपना सिंह ,(बहुत अच्छे लोग)रश्मि शर्मा का कहांनी संग्रह, कंचन जायसवाल  औऱ अंजलि काजल का पहला कहांनी संग्रह ( माँ क्यों डरती है) भी मेले में आया। वरिष्ठ लेखिका पल्लवी प्रसाद  का उपन्यास “काठ का उल्लू “आया तो  गीता श्री  प्रतिभा कटियार एवम इरा टाक  की भी किताबें आईं।

वरिष्ठ स्त्री विमर्शकार गरिमा श्रीवास्तव की किताब” चुप्पियाँ और दरारें “का लोकार्पण भी मेले में हुआ जो स्त्री आत्मकथा की सैद्धान्तिकी पर है।चर्चित आलोचक सुजाता की आलोचना की किताब “ पितृसत्त्ता यौनिकता  और समलैंगिकता “भी मेले में  आई । आलोचना के क्षेत्र में रेखा सेठी द्वारा संपादित स्त्री चिंतन  पर पुस्तक आई तो वरिष्ठ लेखिका  रजनी गुप्त  के अलावा अंकिता जैन तथा सोनी पांडेय की भी किताबें आईं।निर्देश निधि( मोती से दिन) प्रज्ञा रोहिणी( काठ के पुतले) की किताबें  भी मेले में दिखीं । मुंबई की गृहणी जूही शर्मा की “अबोली की डायरी “नाम से एक स्त्री के जीवन संघर्ष की डायरी आई।गुनगन उर्फ पद्मजा की डायरी आई तो रश्मि भारद्वाज की भी डायरी आयी।नीलिमा शर्मा की  सम्पादित किताब भी मेले में आई जो पुरवाई पत्रिका में प्रकाशित कहानियों पर थी।

मेले में मृदुला गर्ग  ममता कालिया   तेजी ग्रोवर अनामिका सविता सिंह  प्रत्यक्षा  वंदना राग अलका सिन्हा वंदना वाजपेयी अंजू शर्मा वंदना गुप्ता उर्मिला शुक्ल  अणुशक्ति सिंह  पूनम अरोड़ा ने भी शिरकत की और किताबों पर चर्चा में भाग लिया।

राजकमल वाणी  राजपाल जैसी बड़े प्रकाशको के अलावा पुस्तकनामा शिवना प्रकाशन हिंदी युग्म ,वेरा प्रकाशन ,बोधि प्रकाशन  , आधार प्रकाशन ,जनचेतना अन्तिका ,न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन , नई किताब  गार्गी प्रकाशन ने भी कई लेखिकाओं की किताबें छापी हैं।

लिटिल वर्ल्ड ,भावना प्रकाशन, सर्वभाषा ट्रस्ट ,वनिका आदि ने भी  स्त्री रचनाकारों को छापा ।लिटिल वर्ल्ड ने 7 से अधिक नयी स्त्री रचनाकारों की किताबें छापीं।

आलेख संयोजन :पारुल बंसल

Posted Date:

February 9, 2025

10:30 pm Tags: , ,

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