कहां गुम हो गया बाइस्कोप…
• अजय पांडेय
” देखो – देखो – देखो ,
बाइस्कोप देखो ,
दिल्ली का क़ुतुब मीनार देखो ,
बम्बई शहर की बहार देखो ,
ये आगरे का है ताजमहल ,
घर बैठे सारा संसार देखो ,
पैसा फेंको , तमाशा देखो ।”
1972 में रिलीज हुई , राजेश खन्ना और मुमताज की फ़िल्म ‘ दुश्मन ‘ का यह गाना तो आपने जरूर सुना होगा । मुमताज ‘ बाइस्कोप ‘ लेकर गांव में आती हैं और बच्चे उनका ‘ बाइस्कोप ‘ देखने टूट पड़ते हैं । यह गीत उसी दृश्य पर फिल्माया गया था । उस समय की हिट फ़िल्म का हिट गाना था यह ।
जब मनोरंजन के साधन सीमित थे और ‘ थियेटर ‘ केवल शहरों और महानगरों में होते थे , छोटे शहरों और गांवों में नौटंकी, नाच, रामलीला और बाइस्कोप ही मनोरंजन के साधन हुआ करते थे।
मुझे याद है, जब हमारे मोहल्ले में बाइस्कोप वाला आता था, हम ‘ बाइस्कोप ‘ देखने के लिए पैसों के लिए मचल उठते थे। बाइस्कोप वाला गाना गा गा कर अलग अलग तस्वीरें दिखाता था, जो रोल में रहती थीं और एक हैंडल से घुमाने पर बारी बारी से दिखती थीं। साथ में कई बार गाना बजता भी था।
जब हमारे यहां टीवी पहुंच नहीं पाया था और नाच – नौटंकी देखने की बच्चों को मनाही रहती थी , ‘बाइस्कोप’ सबसे सुलभ और सस्ता मनोरंजन का साधन था। वास्तव में घर बैठे सारा संसार देखने का लुत्फ़ हम उठाते थे। सत्तर और अस्सी के दशक तक गांव -गांव ‘बाइस्कोप’ वाले खूब दिखते थे और उनके पूरे परिवार का पेट इसकी कमाई से चल जाता था । कालान्तर में टीवी, इंटरनेट, डीवीडी – सीडी , मोबाइल फोन आदि ने ‘बाइस्कोप’ का क्रेज प्रायः खत्म ही कर दिया। ‘ बाइस्कोप ‘ वालों ने शहर छोड़ दूर – दराज गांवों का रुख करना शुरू किया, लेकिन वहां भी उन्हें देखने वाले मुश्किल से मिलते थे। अब तो यह संग्रहालयों में प्रदर्शित करने वाली वस्तु बन कर रह गई है।
भारत में कलकत्ता के एक श्री हीरालाल सेन ने सन् 1896 ई. में संभवतः पहली ‘ बाइस्कोप ‘ लोगों को दिखाई। लोगों ने , विशेषकर बच्चों ने इसे बहुत पसंद किया और शीघ्र ही ‘ बाइस्कोप ‘ पूरे बंगाल, बिहार और उड़ीसा में छा गया। हीरा लाल सेन ने ” रॉयल बाइस्कोप कम्पनी ” नाम की एक संस्था भी बना ली और देश के अन्य राज्यों में भी इसका प्रचार – प्रसार किया ।
आज ‘ बाइस्कोप ‘ एक यादगार बन कर रह गया है। दिल्ली के स्लम ‘ कठपुतली ग्राम ‘ में आज भी दो – चार परिवारों ने ‘ बाइस्कोप ‘ सहेज कर रखा है और उन्होंने इस विधा का प्रदर्शन विदेशों में भी किया है। इंडिया गेट पिकनिक मनाने आने वाले पैसे वालों के बीच कुछ बाइसकोप वाले और मदारी आपको आज भी दिख जाएंगे। आज के ज़माने के बच्चों को ये अजूबा लग सकता है, लेकिन बाइस्कोप देखना आज भी एक अनुभव से गुज़रने जैसा है। जरूरत है इसे याद रखने की और इन ‘ बाइस्कोप ‘ वालों को सरकारी संरक्षण और सहायता की ।
“आई रे मैं आली, बाइस्कोप वाली,
खेल ख़तम होता है, बच्चों बजाओ ताली।”
October 25, 2017
6:30 pm Tags: Biscope, ajay pandey, heritage, बाइस्कोप, अजय पांडेय, धरोहर बाइस्कोप