भीष्म साहनी को पढ़ना आज भी क्यों ज़रूरी है
सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार भीष्म साहनी की स्मृतियों का उनके जन्मदिन पर अस्मिता थिएटर ग्रुप के फेसबुक वॉल से ये रिपोर्ट पढ़िए।  अरविंद गौड़ ने उनके तमाम नाटकों का मंचन किया। भीष्म साहनी को बेशक ‘तमस’ के लिए याद किया जाता हो, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत और उल्लेखनीय योगदान के साथ ही इप्टा में उनकी सक्रियता को कभी भूला नहीं जा सकता।  आज भी भीष्म साहनी उतने ही प्रासंगिक हैं।
हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक और नाटककार भीष्म साहनी (8 अगस्त 1915 – 11 जुलाई 2003) का जन्म सन् 1915 में रावलपिंडी में जन्म हुआ था। भीष्म जी ने कहानियां, उपन्यास और नाटक लिखने के साथ कई फिल्मों में अभिनय भी किया।
अस्मिता थियेटर के साथ भीष्म साहनी जी का प्रगाढ़ रिश्ता रहा। हमारी संस्था की शुरुआत ही आपके हानूश नाटक से हुई थी। फरवरी 1993 में शुरू हुए इस नाटक के शो हम आज भी करतें हैं।
हानूश की कहानी एक सृजनात्मक कारीगर की त्रासद भरी दास्तां है। यह नाटक मेरे दिल के बहुत ही निकट है। हानूश की जिजीविषा, जूनून, जीवंतता और संघर्ष, कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत देता है।
भीष्म साहनी के साथ मेरे व्यक्तिगत रिश्ते थे। उन्हे सुनते सैकड़ों शामें गुजरी है। मुझे उनका अपनापन, स्नेह और प्रोत्साहन हमेशा मिला।
भीष्म जी को अस्मिता थियेटर का हानूश नाटक बेहद पसंद आया और वह उसके कई शो देखने भी आए। नाटक के बाद अगली मीटिंग में उनके सुझावों से मुझे काफी सीखने को मिलता।
भीष्म साहनी जी के नाटकों ने हमेशा निर्देशक के रुप में मेरा  विकास किया। हानूश के बाद गार्गी कालेज और जे एन यू  के साथ माधवी किया। माधवी को अलग-अलग प्रयोग के साथ तीन बार निर्देशित किया। भीष्म जी कई बार कहते कि तुम कबिरा खड़ा बज़ार में करो।
हमेशा वादा करता पर उनके रहते, कबीरा नाटक नहीं हो पाया।
उन दिनों हिन्दू कालेज में थियेटर वर्कशॉप की शुरुआत हो रही थी। अभिरंग संस्था के परामर्शदाता Harish Naval जी के सहयोग से  भीष्म जी की स्मृति में 2003 के अंतिम माह में  कबिरा खड़ा बज़ार में हिन्दू कालेज के सभागार हुआ। रंगकर्मी नरेश सिंह और उसके साथियों के कबीर ने कैम्पस थियेटर में एक नया इतिहास रचा।
दिल्ली से मुंबई तक उसके बीसियों शो लगातार हुए। बाद में दौलतराम कालेज की छात्राओं के साथ भी इसे तैयार किया गया। अन्य नाटक मुआवजे और रंग दे बसंती की कई बार क्लास रुम प्रस्तुतियों हुई।
प्रेमचंद, मंटो, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वदेश दीपक और असगर वज़ाहत के साथ भीष्म साहनी अस्मिता थियेटर के अभिनेताओं के प्रिय कहानीकार हैं। अभिनेता प्रशिक्षण से लेकर मुख्य प्रस्तुतियों में भीष्म साहनी की कहानियां पढ़ी और प्रयुक्त होती है। ‘अमृतसर आ गया’ उनकी पांच कहानियों की ही नाट्य प्रस्तुति है। समाधि भाई रामसिंह से लेकर साग-मीट, चीफ की दावत, गंगो का जाया, निमित्त, झुटपुटा, ओ हरामजादे, माता- विमाता, वांगचू जैसी दर्जनों कहानियां हमारे नियमित रंगकर्म का हिस्सा है।
— अरविंद गौड़
Posted Date:

August 8, 2024

2:49 pm Tags: , ,

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