भई भक्तन की भीर
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनिल त्रिवेदी के व्यंग्य बहुत मारक होते हैं। राजनीति हो या नेतागण, समाज के तमाम चरित्र हों या पत्रकारिता की बात उनकी कलम हर दिशा में चलती है। और वह भी ऐसी कि आप मुद्दे की गहराई को हंसते हंसाते और मन को गुदगुदाते समझ सकते हैं। व्यंग्य की इस विधा को 7 रंग के साथ साझा करते हुए अनिल त्रिवेदी ने इसकी शुरुआत जिस अंदाज़ में की है, वह बेशक हमारे पाठकों को रास आएगी… 
अनिल त्रिवेदी
चूंचूं अंकल में रातोंरात बदलाव हो गया। रात में अच्छे भले खा-पीकर सोए थे लेकिन सुबह आंख खुली तो हृदय परिवर्तित मिला। जगने के बाद से भक्तिरस में सराबोर हैं। बार-बार कह रहे हैं कि मैं भक्त बनूंगा। किसी का भी बनूं लेकिन भक्त बने बिना नहीं रह पाऊंगा। थोड़ी देर में पूरे मोहल्ले को खबर हो गई कि चूंचूं अंकल भक्त बनने की रट लगाए हैं। सभी चकित कि उनमें अचानक भक्तिभाव का प्रादुर्भाव कैसे हो गया। रह रहकर भक्ति की हिलोरें उठ रही हैं। घर के लोग परेशान। वे अड़े हैं कि चाय भी भक्त बनने के बाद ही पिएंगे।
मुझ तक खबर पहुंची तो मैं समझ गया कि आजकल भक्तिकाल चल रहा है। भक्त कहने-कहलाने में गर्व महसूस हो रहा है। इसलिए हर कोई भक्त बनने पर उतारू है। हो न हो चूंचूं अंकल को भी इसी का दौरा पड़ा हो। मैं तुरंत उनसे मिलने गया। हालचाल पूछा तो जिद दोहराई- मुझे भी भक्त बनना है। भक्ति भाव से हृदय विदीर्ण होने को है। तुम कुछ उपाय कर सकते हो तो करो।
मैं उनकी मनोदशा समझ गया। कुछ महीने पहले निपटे चुनाव से पूर्व वे बड़े ही भोले-भाले थे। भक्ति जैसी बातें नहीं करते थे लेकिन बीते चुनाव के लंबे दौर के वक्त वे इधर-उधर रैलियों, भाषणों, सभाओं में जाते रहे। चुनाव के बाद खाली थे तो जहां कहीं भी उन्हें पंडाल लगा दिखता, शामिल हो जाते। मुझे लगा कि उनमें भक्ति की रसधार बहने के यही कारण हैं।
मैंने उन्हें हौले से समझाया- भक्त बनना कोई मुश्किल नहीं है। इस समय जिसे देखो वही भक्त का बिल्ला लगाए घूम रहा है। तीन बुलाओ तेरह आ जाएंगे। भक्त हर क्षेत्र में फैले हैं। हर तरह के भक्त हैं-धार्मिक, सांस्कृतिक, समाजसेवी और राजनीतिक। आप जैसी भक्ति करना चाहें करिए। बस अपना एक गुरु, स्वामी या नेता चुन लीजिए। उसे भगवान मानकर चलिए और भक्तिपूर्ण प्रवचन या भाषणों में समय बिताइए। आप भक्त हो गए। आप कैसा भक्त बनना चाहते हैं? वे गहरी सांस छोड़ते हुए बोले- तुम्हीं देख लो मैं कैसा भक्त बन सकता हूं, कैसी भक्ति मेरे लिए फायदेमंद रहेगी।
उनका असमंजस देखकर मैंने उन्हें पते की बात बताई- अंकल, चुनाव के बाद धार्मिक भक्ति का धंधा तो अभी मंदा चल रहा है। फिलहाल राजनीतिक भक्त बनने में काफी स्कोप है। किसी मनपसंद नेता को अपना भगवान मानकर भक्ति करिए। सोशल मीडिया पर भी उसकी जय-जय लिखिए और फारवर्ड करिए। राष्ट्रभक्ति, देशभक्ति, संविधान भक्ति की बातें खूब उड़ेलिए। दिन-रात भक्ति रूपी गंगा में गोते लगाते रहिए। आप सच्चे देशभक्त होने के साथ-साथ नेता और पार्टी भक्त मान लिए जाएंगे।
मेरी सलाह पर वे और कनफ्यूज हो गए। बोले- तो बताइए किस नेता को अपना ’भगवान’ मानकर भक्ति राग गाऊं? मैंने कुछ देर सोचा और उन्हें समझाया कि भक्त पर कोई बंदिश नहीं है, कोई नियम, व्यवस्था, अनुशासन नहीं है। भक्त का भाव परम स्वछंद भाव है। जब जिससे थोड़ा भी फायदा होता दिखे उसी के भक्त बन जाओ। जब लगे कि यह ’भगवान’ डगमगा रहा है तो दूसरे के भक्त बनकर उसके गीत गाने लगो। हां कभी अंधभक्त मत बनना क्योंकि अंधभक्तों के ग्रह दशा आजकल ठीक नहीं चल रहे हैं।
नेक सलाह देने के बाद मैंने उन्हें आगाह करना भी जरूरी समझा- भक्त बनना बहुत आसान है इसीलिए भक्तों का रेला है। चुनाव के बाद भी भक्तों की भक्ति में कमी नहीं आई है। भक्त हैं तो भीड़ है और भीड़ है तो भगदड़ भी होगी। भगदड़ शब्द सुनकर चूंचूं अंकल सहमे। बोले- भगदड़ से तो डर लगने लगा है। कोई उपाय नहीं है इससे बचने का? मैंने कहा- कुछ होता तो हाथरस में हादसा ही क्यों होता।
कुछ देर सोचने के बाद अंकल बोले- सरकार अग्निवीर की तरह भक्तवीर भर्ती करे तो भगदड़ जैसी अव्यवस्था  रोकी जा सकती है। मुझे उनके सुझाव पर हंसी आई- अरे अभी तो अग्निवीर को लेकर ही ले ले-दे दे मची है, अब भक्तवीर भर्ती करके सरकार नई ओखली में सिर क्यों डालेगी। अंकल बोले- ठीक है अब मैं चाय पीता हूं। भक्त बनने की योजना पर नए सिरे से विचार के बाद फैसला लूंगा। फिलहाल भक्त बनने की उनकी योजना टल गई है।
Posted Date:

July 19, 2024

3:59 pm

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