बंसी कौल का यूं चले जाना रंगमंच की दुनिया के लिए एक गहरे सदमे की तरह है। अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक और जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने बंसी कौल को कुछ इस तरह याद किया….
♦ अरविंद गौड़
भारतीय रंगमंच के वरिष्ठ निर्देशक बंसी कौल का हिन्दी रंगमंच में अविस्मरणीय और महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, वह कैंसर से जुझ रहे थे, पर उनकी जिजीविषा और जिंदादिली अद्भुत थी। सबको उम्मीद थी कि वह इस स्थिति से उबर कर दोबारा सक्रिय हो जाएंगे। पर ऐसा नहीं हो सका। जिंदगी के नाटक का पटापेक्ष कर बंसी नेपथ्य में चले गए।
श्रीनगर में 23 अगस्त 1949 को जन्में बंसी कौल जी ने 1973 में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से डिप्लोमा लिया था। उसके बाद उन्होंने पूरे देश में थियेटर वर्कशाप के साथ सैकड़ों नाटकों का निर्देशन और स्टेज डिजाइनर के रूप में भी काम किया। बाद मे बंसी कौल ने भोपाल में रंग विदूषक समूह बनाकर रंगमंच के नए मुहावरे को विकसित करने के लिए अभिनेताओं, मसख़रों और कलाबाज़ों के साथ नवीन रंग प्रयोग किये।
दिल्ली के ऐतिहासिक ‘अपना उत्सव’ की परिकल्पना उन्हीं की थी। उन्होंने खजुराहो महोत्सव से लेकर अमेरिका और यूरोप में भारत महोत्सव के कला निर्देशक के रूप में काम किया। दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों में बंसी कौल उद्घाटन और समापन समारोह के शो निदेशक भी थे।
बंसी कौल जी को पद्म श्री (2014), राष्ट्रीय कालिदास सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, शिखर सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार) और सफ़दर हाशमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
बंसी कौल के नाटकों में मुद्राराक्षस लिखित ‘आला अफसर’ काफी चर्चित रहा। निकोलिया गोगोल के इंस्पेक्टर जनरल पर आधारित इस नाटक को उन्होंने नौटंकी में मंचित किया था। अन्य प्रमुख नाटक शर्विलक, सीढ़ी दर सीढ़ी उर्फ तुक्के पे तुक्का, वो जो अक्सर झांपड़ खाता है, केहन कबीर, नीति मनकीरन की, हास्य रसायन, गधों का मेला, रितु गुर्जरी, दरजी की अनोखी बीवी, सौदागर (ब्रेख्त की द एक्सेप्शन एंड द रूल का हिंदी रूपांतर), कलेक्टर, ‘लोमड़ ख़ाँ का वेश’ (Ben Johnson के नाटक Volpone का रूपांतरण ), राजेश जोशी लिखित नाटक टंकारा का गाना, अच्छे आदमी, जिंदगी और जोंक उल्लेखनीय है। Asmita Theatre Group के सदस्यों और सभी रंगकर्मियों की तरफ से आदरणीय अग्रज बंसी कौल जी की स्मृतियों को सादर नमन।
Posted Date:
February 6, 2021
9:08 pm
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