गांवों में भी होती है कला, साहित्य व संस्कृति की खेती
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November 25, 2016

भारत बसता तो गांवों में है, पर साहित्य, कला और उसकी संस्कृति शहरों में ही क्यों दिखती है। भले ही वह गांवों में प्रफुल्लित होती है। गांवों में भी संस्कृति, साहित्य व कला की खेती होती है। उसकी फसलें भी लहलहाती हैं, लेकिन पक कर यहीं पीढी दर पीढ़ी उगती व मरती रहती है। गांवों के लिए यह सब स्वाभाविक है। बस दिखती नहीं है या लोग देखते नहीं है। लोक कलाओं, परंपराओं, खानपान, वेशभूषा और न जाने क्या

आदिवासियों और संघर्षशील आम आदमी की जीवन दृष्टि
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November 19, 2016

मंगलेश डबराल लगभग अस्सी साल पहले प्रेमचंद ने कहा था कि साहित्य राजनीति के आगे-आगे चलने वाली मशाल होता है. हमारे समय में अगर किसी एक साहित्यकार पर यह कथन लागू होता है तो वे महाश्वेता देवी थीं. उनके जीवन और लेखन के बीच कोई फांक नहीं थी और अपने काम से उन्होंने यह बताया कि तीसरी दुनिया और खासकर भारत जैसे विकासशील देश में एक सच्चे लेखक की भूमिका कैसी होनी चाहिए और उसे किस तरह उस समा

खस्ताहाल सभागार.. कहां जाएं कलाकार?
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November 18, 2016

photo-1  अनुज श्रीवास्तव, रंगकर्मी कला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावे के नाम पर न जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं | किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं | महानगरों में जो हैं भी वे या त

कहानियां बातें करती हैं — मृणाल सेन
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November 16, 2016

दीपक रस्तोगी 14 मई 2016 को मशहूर फिल्मकार मृणाल सेन 93 साल के हो चुके हैं। तीन साल पहले एक बातचीत में उन्होंने कहा था, 'नब्बे साल पहले आज के दिन एक दुर्घटना घटी थी। अब मुझे नए एक हादसे का इंतजार है।’ मृणाल सेन जिसे भविष्य का हादसा बता रहे हैं, आखिर वह है क्या? दरअसल, वे एक फिल्म की योजना बना रहे हैं। 2002 से फिल्में बनाना छोड़ चुके मृणाल सेन दोबारा मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। 'मृगय

तकनीकी विकास के साथ बदलती ‘रामलीला’
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November 12, 2016

अगर आप रामायण को महज एक आध्यात्मिक ग्रंथ और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर न देखें तो ये एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमें जीवन और समाज के हर पहलू का बेहद तार्किक और सटीक चित्रण है। इसके हर दृश्य, हर अध्याय और हर कांड का अपना महत्व है। हज़ारों साल बीत गए लेकिन रामायण आखिर आज भी क्यों प्रासंगिक है, क्यों राम से जुड़ी लीलाएं हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की एक नायाब मिसाल हैं, इसे समझना ज

क्योंकि रेखा तो बस रेखा हैं …
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October 10, 2016

जन्मदिन पर खास • अतुल सिन्हा मुंबई के खूबसूरत बैंड स्टैंड और लैंड्स एंड के एक तरफ समंदर की ऊंची ऊंची लहरें दिखती हैं तो सड़क की दूसरी तरफ फिल्मी सितारों के बंगले। लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ आपको नज़र आएगी शाहरूख खान के बंगले मन्नत के सामने। यहां से चंद कदम दूर हरदिल अज़ीज़, बेहद खूबसूरत और अपनी आंखों से बहुत कुछ कह देने वाली रेखा का ‘बसेरा’ है

लता जी की आवाज़ का जादू
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September 27, 2016

28 सितंबर को लता जी के जन्मदिन पर खास 86 साल की उम्र में अगर आज भी लता जी की आवाज़ की वो मिठास बरकरार है तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ उनका रियाज़ है और संगीत के प्रति उनका समर्पण है। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, इंटरव्यू भी कई छप चुके हैं और समाज के प्रति उनका नज़रिया भी बीच बीच में हम सुनते रहते हैं। लेकिन 7 रंग के पाठकों और दर्शकों के लिए हम एक खास पेशकश ला र

नृत्य नाटिका उषा परिणय का मंचन
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September 24, 2016

लखनऊ में युवा कलाकारों ने किया मंत्रमुग्ध

• प्रदीप लखनऊ में उत्तर प्रदेश नाटक अकादमी के संत गाडगे सभागार में नृत्य नाटिका ऊषा परिणय का मंचन किया गया। पौराणिक कथा में संगीत नृत्य के अद्भुत संगम ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस नृत्य नाटिका में वाणासुर, कृष्ण और शिव के मन में ऊषा और अनिरुद्ध कोे परिणय को लेकर चल रहे अंतर्द्वंद की कहानी को दर्शकों

राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में बिखरे कई रंग
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September 11, 2016

दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में पांच दिनों तक देश के तमाम हिस्सों की संस्कृति के कई रंग देखने को मिले। यहां संगीत, नृत्य और कला के तमाम रूपों के साथ खान पान और परंपराओं का अद्भुत संगम दिखा। dance

नामवर सिंह का जन्मदिन और महाश्वेता देवी की विदाई
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August 29, 2016

साहित्य को सियासत से दूर रखें

  एक अजीब संयोग है। जीवन के 90 साल पूरे करने और साहित्य जगत में अहम मुकाम पाने वाली दो शख्सियतें आज की तारीख में खबर बन गईं। सबसे जुझारू और आम जीवन से जुड़ी कहानियां और उपन्यास लिखने वाली महाश्वेता देवी हमें हमेशा के लिए छोड़ गईं। कोलकाता में उन्होंने आखिरी सांस ली और उन तमाम संघर्षशील और नए कल की उम्मीदों से भरे साहित्यप्रेमि

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