भारत बसता तो गांवों में है, पर साहित्य, कला और उसकी संस्कृति शहरों में ही क्यों दिखती है। भले ही वह गांवों में प्रफुल्लित होती है। गांवों में भी संस्कृति, साहित्य व कला की खेती होती है। उसकी फसलें भी लहलहाती हैं, लेकिन पक कर यहीं पीढी दर पीढ़ी उगती व मरती रहती है। गांवों के लिए यह सब स्वाभाविक है। बस दिखती नहीं है या लोग देखते नहीं है। लोक कलाओं, परंपराओं, खानपान, वेशभूषा और न जाने क्या
मंगलेश डबराल लगभग अस्सी साल पहले प्रेमचंद ने कहा था कि साहित्य राजनीति के आगे-आगे चलने वाली मशाल होता है. हमारे समय में अगर किसी एक साहित्यकार पर यह कथन लागू होता है तो वे महाश्वेता देवी थीं. उनके जीवन और लेखन के बीच कोई फांक नहीं थी और अपने काम से उन्होंने यह बताया कि तीसरी दुनिया और खासकर भारत जैसे विकासशील देश में एक सच्चे लेखक की भूमिका कैसी होनी चाहिए और उसे किस तरह उस समा
• अनुज श्रीवास्तव, रंगकर्मी कला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावे के नाम पर न जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं | किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं | महानगरों में जो हैं भी वे या त
दीपक रस्तोगी 14 मई 2016 को मशहूर फिल्मकार मृणाल सेन 93 साल के हो चुके हैं। तीन साल पहले एक बातचीत में उन्होंने कहा था, 'नब्बे साल पहले आज के दिन एक दुर्घटना घटी थी। अब मुझे नए एक हादसे का इंतजार है।’ मृणाल सेन जिसे भविष्य का हादसा बता रहे हैं, आखिर वह है क्या? दरअसल, वे एक फिल्म की योजना बना रहे हैं। 2002 से फिल्में बनाना छोड़ चुके मृणाल सेन दोबारा मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। 'मृगय
अगर आप रामायण को महज एक आध्यात्मिक ग्रंथ और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर न देखें तो ये एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमें जीवन और समाज के हर पहलू का बेहद तार्किक और सटीक चित्रण है। इसके हर दृश्य, हर अध्याय और हर कांड का अपना महत्व है। हज़ारों साल बीत गए लेकिन रामायण आखिर आज भी क्यों प्रासंगिक है, क्यों राम से जुड़ी लीलाएं हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की एक नायाब मिसाल हैं, इसे समझना ज
जन्मदिन पर खास • अतुल सिन्हा मुंबई के खूबसूरत बैंड स्टैंड और लैंड्स एंड के एक तरफ समंदर की ऊंची ऊंची लहरें दिखती हैं तो सड़क की दूसरी तरफ फिल्मी सितारों के बंगले। लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ आपको नज़र आएगी शाहरूख खान के बंगले मन्नत के सामने। यहां से चंद कदम दूर हरदिल अज़ीज़, बेहद खूबसूरत और अपनी आंखों से बहुत कुछ कह देने वाली रेखा का ‘बसेरा’ है
28 सितंबर को लता जी के जन्मदिन पर खास 86 साल की उम्र में अगर आज भी लता जी की आवाज़ की वो मिठास बरकरार है तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ उनका रियाज़ है और संगीत के प्रति उनका समर्पण है। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, इंटरव्यू भी कई छप चुके हैं और समाज के प्रति उनका नज़रिया भी बीच बीच में हम सुनते रहते हैं। लेकिन 7 रंग के पाठकों और दर्शकों के लिए हम एक खास पेशकश ला र
दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में पांच दिनों तक देश के तमाम हिस्सों की संस्कृति के कई रंग देखने को मिले। यहां संगीत, नृत्य और कला के तमाम रूपों के साथ खान पान और परंपराओं का अद्भुत संगम दिखा।