एनजीएमए में दिग्गजों ने कहा – स्कूलों में कला की शिक्षा अनिवार्य हो
नई दिल्ली। कला जगत के तमाम दिग्गज इस बात से खासे चिंतित हैं कि भले ही कला और संस्कृति को बचाने या बढ़ाने के नाम पर तमाम वादे और दावे किए जाते रहे हों, लेकिन ज़मीनी स्तर पर आज भी इसे हाशिए पर ही रखा जाता है। खासकर शिक्षण के क्षेत्र में कला की स्वीकार्यता अब तक नहीं हो पाई है। स्कूलों में जहां इसे एक अतिरिक्त या शौकिया विषय के तौर पर लिया जाता है, वहीं तमाम कला संस्थानों में आने वाले छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। न तो कला को समझने वाले मिलते हैं, न मीडिया में इसके बारे में लिखने वाले बचे हैं और न ही कला के तमाम आयामों को करियर के तौर पर मान्यता मिल पा रही है। नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) के तीसरे आर्ट अड्डा में जिस तरह बड़ी संख्या में कला को समझने वाले, इसकी बारीकियां सिखाने वाले और नई-पुरानी पीढी के कलाकारों ने हिस्सा लिया, इससे कला के भविष्य को लेकर उनकी चिंता साफ दिखाई दी।
एनजीएमए के महानिदेशक और जाने माने कलाकार अद्वैत गणनायक ने आर्ट अड्डा की शुरूआत की। उनका कहना कि दरअसल इस अड्डे का मकसद हाशिये पर पड़े कला और कलाकारों को एक साथ बैठाना, तमाम सवालों पर खुलकर बात करना, सहमति और असहमति के तमाम स्वरों को एक साथ लाकर एक ऐसा माहौल तैयार करना है जिससे लोगों के भीतर कला और संस्कृति को लेकर एक नई जागरूकता आ सके। उन्होंने कहा कि इंडिया गेट, संसद भवन और राष्ट्रपति भवन जैसी तमाम बेहतरीन इमारतों के बीच जयपुर हाउस एक इतना शानदार परिसर हमारे पास है, लेकिन यह एक अंधेरे कोने की तरह है और जहां लोग आना नहीं चाहते। लेकिन अब इसे जीवंत बनाने की कोशिश है, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर अब जयपुर हाउस भी खूबसूरत रौशनी से सजेगा, यहां लगातार ऐसे कार्यक्रम होंगे जिससे लोग यहां आएं और इसे सिर्फ एक संग्रहालय की तरह न देखकर कला के एक दिलचस्प केन्द्र की तरह महसूस करें।
आर्ट अड्डा में इस बार एनजीएमए को एक शैक्षिक मंच की तरह देखते हुए कला शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे दिग्गजों की भूमिका पर खुलकर चर्चा हुई। कई मुद्दे उभरे। जामिया मिलिया इस्लामिया में कला का इतिहास और फाइन आर्ट्स पढ़ाने वाली डॉ नुज़हत काज़मी ने जहां कला को संग्रहालयों से निकालकर आम लोगों से जोड़ने और आम लोगों में कला की समझ पैदा करने की कोशिश करने पर ज़ोर दिया, वहीं एनसीईआरटी से जुड़ी डॉ पवन सुधीर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब तक स्कूलों में बच्चों को कला के बारे में गंभीरता से नहीं बताया जाएगा और इसे एक अनिवार्य विषय नहीं बनाया जाएगा, तबतक इसकी समझ विकसित नहीं होगी और कला संस्थानों में आने वाले छात्रों का नज़रिया साफ नहीं होगा। अभिभावकों के भीतर भी ये आत्मविश्वास लाने की ज़रूरत है कि कला भी एक तकनीकी विषय है और इस क्षेत्र में भी नौकरी के अच्छे मौके हैं तभी वो अपने बच्चों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित भी करेंगे। मशहूर कला समीक्षक उमा नायर ने पढ़ने पर खासा जोर दिया और कहा कि आज कला के बारे में अच्छा लिखने वाले नहीं हैं, मीडिया में इसके लिए जगह नहीं बची है, ऐसे में ये जरूरी है कि कला को समझने वाले हर क्षेत्र में हों। जाने माने कलाकार आनंदमॉय बनर्जी और सवी सावरकर का कहना था कि कला का मतलब केवल पेंटिंग या रंगों के कोलाज को नहीं मानना चाहिए, इसका दायरा बहुत बड़ा है। ये ज़रूरी है कि हम कला के तमाम आयामों को एक सीमित दायरे से बाहर निकालें और दिमाग के खिड़की दरवाज़े खोल दें। वहीं कला शिक्षण के क्षेत्र में सक्रिय कुछ और कलाकारों मामून नोमानी, मृणाल कुलकर्णी और अमरगीत चंडोक ने भी ये माना कि हमें कला को सीमाओं से बाहर निकाल कर आम लोगों सो जोड़ना चाहिए क्योंकि हर आदमी में कला किसी न किसी रूप में मौजूद है। बस ज़रूरत है उसे बाहर निकालने की।
Posted Date:November 7, 2017
11:42 pm