अनिल त्रिवेदी
संसदीय आचरण पर एक निबंध लिखिए। इस प्रश्न के उत्तर में एक छात्र ने जो लिखा वह इस प्रकार है-
संसद में माननीय सभापति की मौजूदगी में सभी माननीय सदस्य जो सम्माननीय आचरण करते हैं उसे संसदीय आचरण कहते हैं। माननीय सदस्यों को जनता ही संसद में भेजती है। चुनाव से पहले हर मतदाता उनके लिए सम्मानित होता है लेकिन सांसद बनते ही सबसे पहले वे खुद माननीय हो जाते हैं।
कहा जाता है कि लोकतंत्र में संसद की एक गरिमा और मर्यादा होती है। चूंकि अपना देश भी आजादी के बाद से ही लोकतंत्र बना पड़ा है, इसलिए हमारी संसद की भी गरिमा, मर्यादा और समृद्ध परंपरा है। संसद में एक सभापति होता है। सदन की कार्यवाही नियम और व्यवस्था से चले इसकी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर रहती है। वह सभी सदस्यों को पहले दिन ही अवगत करा देता है कि संसद की गरिमा बनाए रखना उनका काम है। गरिमा बची रहेगी तो उनका भी सम्मान बना रहेगा।
समय के साथ-साथ संसदीय आचरण में भी परिवर्तन आया है। अब सभापित को दिन में कई बार सदस्यों को याद दिलाना पड़ता है कि बस करो संसद की गरिमा नष्ट हो रही है, सारी मर्यादा धूल धूसरित हुई जा रही है। सदस्य तो माननीय बन चुके होते हैं इसलिए वे संसदीय गरिमा की रक्षा अपने हिसाब से करते हैं। टोकाटाकी का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। वे अपने आचरण से पग भर भी डिगते नहीं हैं।
संसद में माननीयों का मुख्य काम होता है देश के लिए कानून बनाना। हम वहां उन्हें भेजते ही इसीलिए हैं। लेकिन हमने देखा है कि कानून बनाने से पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों को कितनी मारामारी करनी पड़ती है। कानून पर चर्चा के बजाय एकदूसरे को गालियां देनी पड़ती हैं और गालियां खानी पड़ती हैं। तब कहीं जाकर कोई कानून बन पाता है।
संसद में सत्ता पक्ष तो सदैव चाहता है कि विपक्ष पूरी तरह खामोश बैठा रहे। वह जो हो रहा है बस टुकुर-टुकुर देखता रहे। लेकिन खामोश बैठे रहना उसके आचरण के खिलाफ है। आखिर जनता ने उसे चुप बैठने के लिए तो संसद भेजा नहीं है। इसलिए विपक्ष के सदस्यों को हर पल यह जताना पड़ता है कि वे संसद में खाली नहीं बैठे हैं। सत्ता पक्ष की नाक में दम करके मानेंगे। मौका मिलते ही वे बांहें चढ़ा लेते हैं। कुर्सियों पर कुछ ही देर बैठते हैं। अधिकतर समय खड़े होकर या इधर-उधर कूदते-फांदते हुए बिताते हैं। मेजें थपथपाते हैं। सभापति बार-बार चिल्लाते रहते हैं- माननीय सदस्य बैठिए-बैठिए। पर विपक्षी सदस्य अगर बैठ गए तो असंसदीय हो जाएगा।
सुना है कि पहले के समय में संसद में इतनी जागरूकता नहीं थी। ज्यादातर कार्यवाही शांति से निपट जाती थी। एक सदस्य बोलता था, बाकी सब सुनते थे। सदस्यों में जब से जागरूकता आई है, सब बोलते हैं कोई सुनता नहीं। जो बोलता है उसे भी अपनी आवाज सुनाई नहीं देती। होहल्ला, शोरशराबा, चीखा चिल्ली, गालीगलौज कार्यवाही का जरूरी हिस्सा है। अब यह संसदीय आचरण में शामिल है।
अक्सर स्थिति उस वक्त ज्यादा संसदीय हो जाती है, जब सदस्यों में तूतू-मैंमैं, धक्कामुक्की, हाथापाई और गुत्थमगुत्था चलती है। बैठ जाइए प्लीज, माननीय बैठिए की आवाज होती है तो एक-एक कर सब खड़े हो जाते हैं। सभापति के आसन के पास उछलकूद करते हैं। कागज फाड़े जाते हैं। इधर-उधर फेंके जाते हैं। मौका मिले तो विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्य एकदूसरे का मुंह नोच लें। देखें आप क्या कर लेंगे। गुस्साए सभापति अगर किसी को सदन से निलंबित कर दें तो और आनंद। जो सदन के अंदर करते वह बाहर जाकर करेंगे। चीख-चीखकर बताएंगे कि उन्हें संसद में कुछ करने ही नहीं दिया जा रहा है। उनकी आवाज दबा दी गई है।
कुछ शब्दों को लिखित में असंसदीय माना जाता है। पर असल में ये शब्द अब संसदीय परंपरा बन गए हैं। बिना इन्हें बोले-सुने कार्यवाही संसदीय लगती ही नहीं। दोनों पक्षों के सदस्य छाती ठोककर ये शब्द बोलते हैं। केवल यही दिक्कत है कि इन्हें लिखित कार्यवाही से निकाल दिया जाता है। लेकिन निकालने से क्या होगा, जनता तो टीवी पर लाइव देख-सुन ही रही है। बस सदस्य यही तो चाहते हैं। लोग असली संसदीय आचरण तो देख लें।
संसदीय आचरण का पालन स्कूल या घर में नहीं किया जा सकता। एक बार हम छात्रों ने स्कूल में संसदीय आचरण किया तो स्कूल से निष्कासन से बाल-बाल बचे। क्लास में छात्रों के दो गुट बन गए। शिक्षक की मौजूदगी में दोनों गुटों में गालीगलौज, हाथापाई और मारपीट शुरू हो गई। बात हद से ज्यादा संसदीय हो गई। हमने शिक्षक की एक नहीं सुनी कागज फाड़े, कापी-किताबें फेंकीं। शेम-शेम के नारे लगाए। बात प्रिंसिपल के कानों तक गई तो तत्काल कार्रवाई हुई। नोटिस बोर्ड पर नोटिस चिपक गया कि किसी भी क्लास में संसदीय आचरण कतई सहन नहीं किया जाएगा। जो छात्र ऐसा करते हुए पाया गया, उसे स्कूल से निलंबित या निष्कासित कर दिया जाएगा। घर में जब पिताजी को पता चला तो कसकाऊ मार पड़ी। तब से मैंने संसदीय आचरण का पालन छोड़ दिया है। अब मेरे लिए स्कूल या घर में असंसदीय आचरण ही उपयुक्त है।
Posted Date:
July 27, 2024
11:45 am